एक बड़े जिले के एसपी इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. तबादले में जब इन्हें बड़ा जिला मिला था, तब भी सुर्खियों में छाये थे. समकक्ष आईपीएस ने जमकर आंखें तरेरी थी. अब अपने काम को लेकर चर्चा में है. सुनाई पड़ा है कि एक औद्योगिक जिले में पदस्थ एसपी साहब ने खदानों पर पहरेदारी बिठा दी. अपने अधीनस्थ थानों को फरमान जारी कर दिया कि खदान से निकलने वाले ट्रकों से 50 रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब पर ट्रांजिट चार्ज लिया जाए. हिसाब जोड़ने पर मालूम हुआ कि एसपी साहब तो 25 रूपए प्रति क्विंटल वाले चर्चित सिस्टम से भी आगे की सोच रहे थे. उनके चाहने वाले कुछ करीबियों ने इसकी शिकायत ऊपर भेज दी. बस फिर क्या था. हिसाब में जुटे एसपी साहब के हिस्से कुछ आया या नहीं, मालूम नहीं, लेकिन उन्हें फटकार जरूर मिल गई. एक सीनियर आईपीएस ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा- ”उंगली पकड़कर पोछा लगाना” इसे ही कहते हैं. वैसे इस कहावत का अर्थ है कि, थोड़ा सहारा पाकर पूरे पर दाव जमा लेना.
हम भी पीछे नहीं
सुर्खियों में सिर्फ बड़े जिले के एसपी साहब ही नहीं है. सूखे में गला तर करने वाला हुनर तो इस साहब ने बखूबी ढूंढ निकाला. जिले में कोई बड़ा उद्योग तो नहीं, लेकिन यहां से गुजरने वाले ट्रकों की रफ्तार पर नियंत्रण तो इनके हिस्से है ही. सुनने में आया है कि साहब ने ट्रकों की ओवरलोडिंग पर अपना रेट तय कर रखा है. वैसे यह आरटीओ का दायरा है, लेकिन एसपी साहब की दिलेरी ने सारे दायरे तोड़ दिए हैं. बताते हैं कि जिले के भीतर ओवरलोडिंग ट्रकों के परिवहन पर प्रति ट्रक सालाना 5000 रुपए का रेट फिक्स हुआ है. 5000 रुपए में पूरे साल मनमानी की पूरी छूट देने की गारंटी तय है. वैसे आरटीओ का अपना सालाना 3200 रूपए प्रति ट्रक का रेट अलग फिक्स है. ट्रांसपोर्ट के कारोबार से जुड़े लोग कहते हैं कि पिछली सरकार में एक रेट फिक्स था, 1200 रुपए प्रति ट्रक. खैर तब और अब में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है. मोदी जी ने महंगाई बढ़ा दी है.
”ठेके” पर वसूली
किसी विभाग में वसूली और वह भी ”ठेके” पर…सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन यह सच है. सरकार के एक विभाग में वसूली का काम बाहरी लोग कर रहे हैं. ऊपर के लोगों को सुपोषित करने की जिम्मेदारी बरसो संभालने वाले अधिकारी- कर्मचारी मायूसी से सब कुछ देखते रह गए. घुट-घुट कर जीने के अलावा जब कोई चारा नहीं बचा. तब एक जिले के कार्यक्रम अधिकारी सुरमा बनकर उभरे. करीब दर्जन भर अधिकारियों को इकट्ठा किया और शिकायतों का पुलिंदा लेकर मंत्री बंगले पहुंच गए .बंगले में ठेका सिस्टम का खुला विरोध दर्ज कराया गया. मौके की नजाकत के बीच मंत्री ने सबकी सुनी और व्यवस्था दुरूस्त करने का भरोसा दिलाया. अधिकारियों को लगा कि अब अच्छे दिन आएंगे. अच्छे दिन के ताक में बैठे ही थे कि सुरमा बनकर नेतृत्व करने गए कार्यक्रम अधिकारी सुकमा पहुंच गए. अब वह उस दिन को कोस रहे हैं, जिस दिन उन्होंने सुरमा बनने की ठानी थी.
RTI एक्टिविस्ट के हाथ मंत्री की ”कुंडली”
पिछली सरकार के नाक में दम करने वाले एक आरटीआई एक्टिविस्ट के हाथों एक मंत्री की कुंडली लग गई है. माने, मंत्री बनने के बाद लाखों-करोड़ों का निवेश कहां-कहां किया गया? कितनी जमीन खरीदी गई? वगैरह-वगैरह. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इसी आरटीआई एक्टिविस्ट के दिए दस्तावेजों के आधार पर रमन सरकार पर आरोपों के खूब तीर चलाए थे, पर जब सत्ता मिली, तो इन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया गया. समय बड़ा बलवान रहा. दस्तावेजों के माहिर खिलाड़ी रहे इस एक्टिविस्ट के हाथों जब मंत्री की पूरी की पूरी कुंडली लग गई, तो इन्होंने अपने तरकश में बचे तीर की धारी तेज करनी शुरू कर दी. दावा कर रहे हैं कि अभी कुछ और मंत्रियों का काला चिट्ठा इनके हाथ लग सकता है.
एमडी साहब का जुगाड़
कहीं चर्चा चल रही थी कि एमडी साहब जुगाड़ ढूँढ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि आवक नहीं है, लेकिन कलेक्टरी के वक़्त की बात कुछ अलग थी. जब कलेक्टरी चल रही थी तो कर्मचारियों में इनके क़िस्सों के क़सीदे गड़े जाते थे. तब कहा जाता था कि कलेक्टर साहब कर्मचारियों का अच्छा सीआर लिखने तक का पैसा माँगते थे. अब एक बड़े निगम के एमडी हैं. बताते हैं कि एमडी के निगम चेयरमेन से अच्छे संबंध हैं. चेयरमेन उनकी कलेक्टरी वाले पुराने इलाक़े से ही ताल्लुक़ रखते हैं, सो मामला जम गया है, वैसे भी फ़्रीक्वेंसी सेट होना बहुत ज़रूरी है. ना हुई तो गड़बड़ी होना तय है. अच्छी पारी के लिए दोनों को बेस्ट आफ़ लक.
इट्स नॉट ओवर टिल इट्स ओवर
अब तक मैथ्स और केमेस्ट्री के कठिन फार्मूले से ही पाला पड़ा था कि अब पाॅलिटिकल फार्मूले ने दिमाग खराब कर रखा है. जो देखो, यही पूछ रहा है कि ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले का क्या हुआ? वैसे ये फार्मूले बड़े खतरनाक होते हैं. सही से इस्तेमाल नहीं किया, तो दांव उल्टे पड़ जाते हैं. ढाई ढाई साल का जब फार्मूला इजाद किया जा रहा था, तब कैल्कुलेशन में कहीं कोई गड़बड़ी रह गई होगी, जिससे रिजल्ट नहीं मिल रहा. वैसे दाऊजी साइंस के स्टूडेंट रहे हैं. साइंस कॉलेज के लैब में खूब वक्त बिताया है. जानते हैं कि रासायनिक क्रियाओं के वक़्त कब, कहां और कितनी क्वांटिटी में चीजों का इस्तेमाल करने पर रिजल्ट मिलेगा. इधर बाबा आर्ट्स और इकोनॉमिक्स का फार्मूला पढ़ते थे. सो उनके फ़ार्मूला थोड़ा सोफ़िस्टिकेटेड क़िस्म का है. धीरे-धीरे असर दिखाता है. फ़िलहाल परखनली में सब कुछ डालकर हिलाया जा रहा है. देखते हैं कब पक्का रंग छोड़ेगा.
छत्तीसगढ़ का चन्नी कौन?
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर और नवजोत सिंह सिद्दु के बीच के झगड़े का फ़ायदा तीसरे को मिल गया. दलित समाज से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन गए. कहावत सुनी गई कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना इसे ही कहते हैं. छत्तीसगढ़ में भी सरकार के भीतर सियासी तनातनी ख़त्म नहीं हुई है. यहाँ भी एक चरण हैं, जो दूर बैठे खूब मज़े ले रहे हैं. राज्य बनने के बाद कई बार ऐसा हुआ है कि दो की लड़ाई में उन्हें मलाई मिली है. सामाजिक समीकरण भी उनके पक्ष में हैं, आलाकमान से नज़दीकी सो अलग. उनके क़रीबियों से पूछने पर पता चला कि किसी ने यह टिप्पणी कर दी कि दो के झगड़े में कहीं आप को कुर्सी ना मिल जाए, तो झट से चेहरे पर मुस्कान बिखरी नज़र आई. वैसे भी पिछले दिनों अपने बयान को लेकर खूब सुर्ख़ियाँ बटोरी थी. बेझिझक कहा था, दावेदारों में मैं भी था.