रायपुर. गांधी जी के मुख्य अभियानों में आदिवासी हित, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, लोकभाषा और संस्कृति का संवर्धन और आर्थिक स्वराज है. अबिकापुर की रहने वाली आशा शर्मा के कार्यक्षेत्र में इन सभी अभियानों का समावेश होता है. वे आदिवासी अंचल की महिलाओं में भाषा और लोकसंस्कृति के ज़रिए उनके आधुनिक समाज चेतना का विकास और आर्थिक स्वालंबन की इच्छा को प्रेरित करती हैं. ये गांधी के संपूर्ण दर्शन को बिंबित करता है.

शिक्षा, साहित्य और संस्कृति किसी व्यक्ति को बेहतर नागरिक बनाने में बड़ा योगदान देती है. अंबिकापुर की रिटायर प्रोफेसर डॉ आशा शर्मा 45 साल से पिछड़े और आदिवासी बहुल सरगुजा में बेहतर और सशक्त महिला नागरिक तैयार कर रही हैं. उन्होंने शिक्षा, नाटक, साहित्य और शोध की गतिविधियों में छात्राओं को शामिल कराकर उन्हें वैचारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रुप से सशक्त बनाया.

आशा शर्मा का जन्म 18 मार्च 1949 को मुरादाबाद में हुआ. उनकी पढ़ाई स्नातकोत्तर तक हिंदी से पीएचडी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई. उन्होंने अपनी सेवा सहायक प्राध्यापक के रूप में होली क्रॉस वूमेंस कॉलेज अंबिकापुर में दी. गांधी का असर आशा शर्मा के व्यक्तिव पर दिखता है. डॉ आशा शर्मा पूरी ज़िंदगी न्यूनतम संसाधनों के साथ बसर करती रहीं. जब वे कॉलेज पहुंची तो वहां छात्राओं में उन्होंने सामाजिक सद्भाव नहीं देखा. इसे उन्होंने सांस्कृतिक साहित्यिक और दूसरी गतिविधियों से तोड़कर सौहार्द का माहौल तैयार किया.

आशा शर्मा अंबिकापुर की एक शिक्षिका और नाटककार हैं. जो आदिवासी बहुल इलाके में महिलाओं और बच्चों को शिक्षा और नाटकों के ज़रिए सशक्त बना रही हैं. आशा शर्मा रिटायर हो चुकी हैं. लेकिन शिक्षक के रुप में अंचल की आदिवासी महिलाओं को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया.

वे सन् 1981 से मैं आकाशवाणी से जुड़ी रहीं. आकाशवाणी में शुरुआत में कहानियां भी लिखी उनका लिखा एक नाटक भ्रूण हत्या दिल्ली तक प्रतियोगिता में भेजा गया था.  वे अंचल की एकमात्र अकेली ऐसी महिला हैं जो प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ी हुई थी. आशा शर्मा ने महिलाओं के लिए संस्था तैयार की थी. जिसका नाम था इड़ा मंच… इस मंच में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे.

आशा आदिवासी छात्राओं में भाषा, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मौके देती थीं. उन्होंने छात्राओं को पुरुषों की तरह मैदान में रिसर्च और दूसरी गतिविधियों के ज़रिए उतारा और आत्मनिभर्भर बनाया.

डॉ आशा शर्मा ने लोककला और संस्कृति को अपनी लेखनी और गतिविधियों से बढ़ावा दिया. उन्होंने उरांव जनजाति के लोकगीतों को कूड़ूक से अनुवाद करके हिंदी में संग्रहित किया. वे लगातार नाटक लिखती और कराती आई हैं ताकि महिलाओं की झिझक खत्म हो. रिटायरमेंट के बाद भी उनका ये काम जारी है. उन्होंने अपनी जमापूंजी से एक लाइब्रेरी बनवाई. जहां सभी आकर पढ़ाई करते हैं.

आशा शर्मा ने अपने खुद के पैसे से फ्लैट खरीदा लाइब्रेरी तैयार की और वहां सैकड़ों किस्म के किताबें रखी है जो आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान बांट रहे हैं साथ ही बच्चों को नाटक के माध्यम से आगे भविष्य की जीवन कैसे उज्जवल हो इस बारे में भी उन्हें पढ़ाया जाता है. बच्चों को मानसिक रुप से आगे बढ़ाने के लिए वे यहां कई तरह के बौद्धिक कार्यक्रम चलाती हैं.