रायपुर. गांधी ने यंग इंडिया में लिखा था कि आदमी जितनी बुराइयों के लिए जिम्मेदार है. उनमें सबसे घटिया नारी जाति का दुरूपयोग है. गांधीजी शिक्षा के माध्यम से महिलाओं कि मुक्ति में विश्वास रखते थे. सामाजिक निरंकुशता और पुरुष प्रधानता की वजह से महिलाओं की जो दुर्दशा हुई, उसका गांधीजी को भलीभाँति ज्ञान था. वे जानते थे कि आधी आबादी को बिना साथ लिए बेहतरी की बात बेमानी है. महिलाओं को आगे लाने के लिए एक गांधीवादी धरमपाल सैनी करीब पचास साल से काम कर रहे हैं. धरमपाल सैनी ने महिलाओं को स्वालंबी और आत्मनिर्भरत बनाने और उनकी शक्ति का समुचित इस्तेमाल करने में अहम योगदान दिया है. सैनी निजी जिंदगी में गांधी की तरह कई तरह के प्रण का पालन कर रहे हैं. 92 साल की उम्र में भी वे इंद्रावती को बचाने के लिए नापने का साहस रखते हैं.
धर्मपाल सैनी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी है. भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के शिष्य रहे सैनी को लोकहित के कामों के कारण बस्तर का गांधी भी कहा जाता है. साथ ही प्यार से स्थानीय लोग उन्हें ताऊजी भी कहते हैं. मध्यप्रदेश के धार जिले के धर्मपाल सैनी ने आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था और शानदार एथलीट हुआ करते थे. पद्मश्री धर्मपाल सैनी 60 के दशक में एक अखबार में बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ी थी. जिसमें दशहरा के आयोजन से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे.इसके बाद लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी. इस खबर ने उन्हे अंदर तक झकझोर कर रख दिया. उन्होंने फैसला किया कि वे बच्चियों की ऊर्जा को सही स्थान पर लगाएंगे और उन्हें इसके लिए प्रेरित करेंगे. जब वे बस्तर जाने के लिए तैयार हुए और अपने गुरू विनोबा भावे से परमिशन लेने पहुंचे, तो भावे नहीं माने. परंतु सैनी जिद पर अड़े रहे. इसके बाद भावे ने उन्हें अनुमति दे दी और एक शर्त भी रख दी कि वे कम से कम 10 साल तक बस्तर में ही रहेंगे. इसके बाद 1976 में सैनी बस्तर आए.
धरमपाल सैनी ने बस्तर आकर डिमरापाल में कन्या आश्रम खोला. इस आश्रम में बस्तर की लड़कियां पढ़ती और खेलती हुई बढ़ी होती हैं. बस्तर में शिक्षा की अलख जगाने में धर्मपाल सैनी ने अहम योगदान दिया है. सैनी के बस्तर आने से पहले तक आदिवासी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं, आज सैनी की स्टूडेंट्स बस्तर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं.
सैनी अब तक हज़ारों डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासनिक अधिकारी तैयार कर चुके हैं.बालिका शिक्षा में योगदान के लिए धर्मपाल सैनी को साल 1992 में पदमश्री सम्मान से नवाजा गया.धरमपाल सैनी बिनोवा के भूदान, आदिवासी सेवा, नशाबंदी पर काम कर चुके हैं.बस्तर में जो भी समस्या रही है, धरमपाल सैनी ने उसे लेकर काम किया है.चाहे वो पर्यावरण का मसला हो या फिर इंद्रावती का. उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने इंद्रावती को बचाने के लिए 128 किलोमीटर नाप लिया. नक्सलियों के कब्जे से कोबरा कंमाडर राकेश्वर सिंह मिन्हास को छुड़ाने में उनकी अहम भूमिका रही.
धरमपाल सैनी कक्षा 8वीं में रहते हुए अपने जीवन में 3 प्रण लिए थे. उन्होंने तय किया था की वे जीवन में कभी सरकारी नौकरी नहीं करेंगे, वे ब्रह्मचारी रहेंगे और देश सेवा करेंगे.आज भी वे तीनों प्रण पर कायम हैं.