रायपुर। देश के प्रबुद्ध वर्गों का आह्वान कर उन्हें ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में सेवा के लिए तैयार करना गांधी जी के अभियान के आंदोलन का सबसे बड़ा काम था. इसकी शुरुआत हम चंपारण सत्याग्रह में देखते हैं. जहां राजेंद्र बाबू जैसे देश के सबसे महंगे वकील खुद अपने कपड़े धोना और खाना बनाना सीखते हैं और किसानों के बीच काम करना सीखते हैं. यह सिलसिला आज तक जारी है. जब एम्स जैसी संस्था से आने वाले प्रोफेशनल आदिवासी और ग्रामीण अंचलों में आकर वहीं अपनी सेवाएं देते है. तो गांधी का आह्वान आज भी सुनाई देता है.
बापू के जीवन में सेवा का बहुत बड़ा स्थान था. वे सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते थे. उनके संदेश से प्रेरणा लेकर समाज में आज भी कई लोग समाज के सबसे वंचित और पिछड़े लोगों की सेवा में जुटी हुए हैं. इन्हीं में से हिंदुस्तान के सबसे अच्छे मेडिकल कॉलेज एम्स से पढ़े हुए 9 डॉक्टर हैं. जिन्होंने बापू की राह पर चलकर जनसेवा की ठानी और बिलासपुर जिले के गनियारी में जन स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र खोला. जहां ज़रुरमंद लोगों का इलाज किया जा रहा है.
दिल्ली एम्स में कार्यरत डॉक्टर रमन कटारिया उनकी पत्नी डॉ. अंजू कटारिया, डॉ. योगेश जैन, डॉ.रचना जैन, डॉ. अनुराग भार्गव, डॉ. माधवी भार्गव, डॉ. विश्वरूप चटर्जी, डॉ. माधुरी चटर्जी और डॉ. सत्या ने प्रोफेशनल लाइफ छोड़कर समाज सेवा व गरीबों को न्यूनतम खर्च में सही और बेहतर इलाज कराने का बीड़ा उठाया. गांधी की राह पर चलकर गांव के गरीब और पहुंच विहीन आदिवासी इलाके में सस्ता, सुलभ इलाज के उद्देश्य को लेकर इन डॉक्टरों ने देश के तात्कालीन मध्यप्रदेश राज्य के बिलासपुर जिले में स्थित गनियारी गॉव का चयन किया. अरपा-भैंसाझार बैराज परियोजना में कार्यरत कर्मचारियों के लिए बने आवास और कार्यालय के जर्जर भवन सहित दस एकड़ जमीन लीज पर लिया और 1999 में बिलासपुर जिले के गनियारी जन स्वास्थ्य सहयोग केंन्द्र की स्थापना की.
जनस्वास्थ्य केंद्र गनियारी में आज कुल 18 डॉक्टर हैं. इनमें चार डॉक्टर संस्थापक हैं. जो शुरु से अपनी सेवाएं रहे हैं. यहां तीन दिन ओडीपी रहती है. इसमें भीड़ इतनी होती है कि ओपीडी पंजीयन के लिए एक दिन पहले कतार लगानी पड़ती है. मात्र 10 रुपए में पंजीयन कर यहां इलाज किया जाता है. 100 बेड के अस्पताल में सिर्फ जनरल वार्ड है, ताकि सभी मरीज़ों को एक समान इलाज मिल सके. बेड का चार्ज मात्र 25 रु है. यहां लैब का चार्ज भी बहुत कम है. मरीज़ों को जेनेरिक दवाइयां खरीदी दाम पर दी जाती हैं. इस केंद्र में एम्स और बाकी बड़े सेंटर्स से भी डॉक्टर आते हैं. यहां के डॉक्टर अब ऑनलाइन कंसल्टेशन भी दे रहे हैं.
जन स्वास्थ्य सहयोग केंन्द्र गनियारी ने 72 गांवों को गोद लिया है, आदिवासी इलाके के हर गांव में 2-3 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इस तरह से ट्रेनिंग दी गई है कि वे सामान्य बीमारियों का इलाज कर सकें. स्थिति गंभीर होने पर उन्हें गनियारी के हॉस्पिटल में रेफर किया जाता है. जिनका तत्काल प्राथमिकता से इलाज किया जाता है. यहां आदिम जाति विभाग के साथ मिलकर एसटी-एससी छात्राओं को जीएनएम (जर्नल नर्सिंग मिड लाईफ ) की ट्रेनिंग दी जाती है. जन स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र द्वारा बच्चों में कुपोषण से लडऩे के लिए फुलवारी नामक योजना चलाई जा रही है. जिसमें बच्चों को डाईट चार्ट अनुसार चावल, दुध, अण्डा सहित अन्य पौष्टिक आहार नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है.
संस्था द्वारा मरीज और उनके परिजनों के लिए 10 रु में खाना उपलब्ध कराया जाता है. मरीज के परिजनों के ठहरने के लिए धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया है. संस्था द्वारा तीन एकड़ जमीन पर धान की जैविक खेती की जा रही है. जिसका बीज आसपास के ग्रामीणों को दिया जाता है, ताकि जैविक खेती को बढ़ावा मिले. बापू की राह पर चलकर इन डॉक्टरों की टीम ने इलाज के लिए पहुंच विहीन आदिवासी इलाके को सेवा के लिए चुना और एक मिसाल बन गए. ना वीआईपी कल्चर ना इलाज के नाम पर पैसों की लूट. यही वजह है, गनियारी के स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों की कतार लंबी होती जा रही है.