रायपुर. लोक स्मृति इतिहास से भी मज़बूत ज़रिया है. किसी व्यक्ति या व्यवस्था को जीवित रखने का. कंडेल के कमलवंशी जी ने कंडेल के नहर सत्याग्रह और बापू के छत्तीसगढ़ आगमन की उस घटना को लोककथा और लोक स्मृति में बसाने के लिए अथक प्रयास किया. यह गांधी जी के लिए एक लीला विग्रह की रचना जैसी है. पिछले 20 वर्षों से रिटायरमेंट के बाद स्कूलों में जाकर बच्चों के बीच इस चेतना का विकास एक अनूठा प्रयास है-गांधी को लोकचेतना में स्थापित करने का.

बात 1920 की है जब महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ स्थित धमतरी के ग्राम कंडेल में नहर सत्याग्रह के लिए पहुंचे थे, उनकी पदयात्रा को 100 वर्ष से भी अधिक का समय गुजर गए लेकिन छत्तीसगढ़ के कंडेल गांव के लोग आज भी महात्मा गांधी को महसूस करते है. ऐसा इसलिए क्योंकि गांव के 82 वर्ष के रिटायर्ड शिक्षक मुरहा राम कमलवंशी ने आज भी महात्मा गांधी को लोगों के दिलो-दिमाग में जीवंत बनाए रखा है. कमलवंशी को  कंडेल सत्याग्रह की बातें याद है. वे स्कूलों में जाकर उसका प्रचार प्रसार करते हैं. गांव के लोग उनमें गांधी की छवि देखते हैं.

कमलवंशी का जन्म 1939 में हुआ. बचपन से गांधी के कंडेल आने और नहर सत्याग्रह के किस्से सुनते हुए वे बढ़े हुए. उन पर गांधी का गहरा प्रभाव था. 1947 में देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ 1948 में जब बापू को गोली मारी गई तब वे विद्यार्थी थे. मुरहाराम कमलवंशी की जब 1958 में शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई. तब से वे बच्चों में गांधी मूल्यों का अलख जगाते रहे हैं. वे बच्चों के मन मस्तिष्क में कंडेल और नहर सच्याग्र की कहानियां सुनाते थे. रिटायर होने के बाद भी कमलवंशी ने इस सिलसिले को बदस्तूर जारी रखा है. वे रिटायरमेंट के बाद स्कूल-स्कूल जाते हैं और लोगों को कंडेल और नगर सत्याग्रह की कहानियां सुनाते हैं. उन्होंने इसके लिए कविताएं भी लिखी हुई हैं. बीस साल से ज़्यादा समय से उन्होंने गांधी का प्रचार प्रसार किया है. लोगों के दिल में गांधी मूल्यों को प्रतिष्ठित करने का असर है कि कंडेल में लोग शांतिप्रिय हैं. आपस में लड़ाई नहीं करते.

कमलवंशी पर व्यक्तित्व पर गांधी का खासा असर देखने को मिलता है. वे सादगीपसंद हैं. कम संसाधनों से अपना काम चलाते हैं. बच्चों से उनके रिश्ते बेहद आत्मीय और मीठे हैं. गांव में जहां पर भी कार्यक्रम होता है. वहां बच्चे उनके साथ जाते हैं. मुरहा राम कमलवंशी कहते है कि महात्मा गांधी ने कंडेल गांव में नहर सत्याग्रह किया, उस वक्त सड़के नहीं थी ना ही संचार के कोई साधन थे, इसके बावजूद भी महात्मा गांधी ने कंडेल में ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी लोग महात्मा गांधी के संघर्षों को याद करते है.

एक बार का उनका किस्सा है कि जो गांव वाले सुनाते हैं कि जब कमलवंशी की मां की तबियत काफी खराब हो गई. वे बिस्तर से उठने लायक नहीं थी तब माता को पीठ पर लादकर गांव का भ्रमण कराते थे. बहरहाल जब तक वे जिंदा है कंडेल के लोग खुशकिस्मत हैं कि वे आज के गांधी के साथ हैं.