रायपुर। शहर से 20 किलोमीटर दूर स्थित तुता धरना प्रदर्शन स्थल में सुविधाओं के नाम पर केवल छलावा है. आलम यह है कि लोग स्थल को देखकर ही प्रदर्शन करने से कान पकड़ लें. जिम्मेदार सुविधाओं की ओर से मुंह मोड़ चुके हैं, लिहाजा शासन-प्रशासन की मंशा को केवल जीवट किस्म के प्रदर्शनकारी ही धत्ता बताते हुए स्थल पर डटे रहते हैं.
यह भी पढ़ें : पत्रकारिता की आड़ में वर्षों तक करता रहा यौन शोषण, आदिवासी महिला की शिकायत पर आरोपी गिरफ्तार…
राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था को देखते हुए जिला प्रशासन ने बुढ़ा तालाब से धरना-प्रदर्शन स्थल को करीबन दो साल पहले तुता शिफ्ट किया था. तब भी तमाम संगठनों ने स्थल को लेकर आपत्ति जताते हुए विकल्प भी सुझाए थे, लेकिन शासन-प्रशासन ने किसी की नहीं सुनी. आज तुता में कहने को तो तमाम मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन देखकर आपको ट्रेन का जनरल डिब्बा भी अच्छा लगने लगेगा.

तुता धरना स्थल पर प्रदर्शन के लिए उचित स्थान के साथ-साथ बिजली, पानी और शौचालय जैसे तमाम सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन न तो आपको पानी पीने की इच्छा होगा, और न ही शौचालय में जाने की इच्छा होगी. गंदगी केवल शौचालय और पेयजल स्थल तक ही नहीं, पूरे क्षेत्र में पसरी पड़ी है. किसी गांव-देहात का मैदान स्थल से ज्यादा साफ नजर आता है.
शुरू से ही थी तुता धरना स्थल पर आपत्ति
शालेय शिक्षा संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे सबसे पहले धरना स्थल बनानेे जाने पर आपत्ति किए थे. गंदगी तो स्थल पर है ही, लेकिन उससे पहले सबसे बड़ी बात यह है कि जिस स्थल को धरना स्थल बनाया गया है, वहां न तो नेता-मंत्री पहुंचते हैं, न ही मीडिया, और आम जनता को तो कोई सरोकार ही नहीं रहता है.

प्रदर्शनकारी खाने तो तरस जाए
वीरेंद्र दुबे कहते हैं कि प्रजातंत्र में सबको अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाने का हक है. इसलिए जब तुता का चयन किया गया था, तब भी हमने आपत्ति जताई थी, और गुजारिश की थी, कि शहर के ही भीतर कोई स्थल तय किया जाए, जिससे हम लोग अपनी बात लोगों तक पहुंचा सके. लेकिन तुता तय कर दिया गया. वहां तो आदमी खाने को तरस जाए ऐसी स्थिति है.
जंगल में मोर नाचा किसने देखा
सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सिन्हा कहते हैं कि तुता राजधानी से 20 किमी की दूरी है. प्रदेश के दूर-दराज से लोग आते हैं. जब कोई लंबा आंदोलन होता है, तो ठहरने के अलावा खाने की दिक्कत बढ़ जाती है. बुढ़ा तालाब की बात करें तो आम जनता को पता चलता था कि क्या कर रही है सरकार. तुता में आलम यह है जंगल में मोर नाचा किसने देखा वाली स्थिति है.

सुरक्षा को लेकर सबसे बड़ी चिंता
तुता में केवल रहने-खाने की ही नहीं बल्कि सुरक्षा की भी बड़ी समस्या है. लंबे चलने वाले आंदोलन के लिए प्रदेश के कोने-कोने से महिलाएं भी आती हैं, उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता सताती रहती है. शासन-प्रशासन ने वैसे भी तुता धरना स्थल को वैकल्पिक प्रदर्शन स्थल के तौर पर बनाया था. इस लिहाज से जिम्मेदारों को संघ-संगठनों की समस्या को ध्यान में रखते हुए राजधानी में ही कहीं उपयुक्त जगह तय करनी चाहिए.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें