रायपुर। मोदी सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि विधेयक बिल को प्रदेश कांग्रेस ने अन्नदाता विरोधी करार दिया है. प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मोदी सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भी अच्छे दिन आएंगे की नारा की तरह ही है जिसका इंतजार बीते छः साल से देश की एक अरब तेंतीस करोड़ जनता आज तक कर रही है.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार किसानों के धान को जब 2500 रुपए क्विंटल के दाम पर खरीदी की, तब जिस मोदी भाजपा की सरकार ने धान खरीदी में आपत्ति की धान खरीदी में नियम शर्ते थोप कर अड़ंगा लगाया. संघीय व्यवस्थाओं को दरकिनार कर सेंट्रल पुल में चावल लेने से इंकार किया, वह मोदी भाजपा की सरकार असल मायने में देश के एक बड़े वर्ग किसान को पूंजीपतियों के सामने झुकने के लिए मजबूर बना रही है. किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का नारा लगाने वाले कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों पर निर्भर कर किसानों को गुलाम बनाने की लोमड़ी चाल चल रही है.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि मोदी भाजपा की सरकार देश की जनता की भावनाओं को अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल साबित हो चुकी है. वन नेशन वन टैक्स का नारा लगाकर जिस प्रकार से देश के व्यापार व्यवसाय उद्योग रोजगार को तबाह किया गया. 20 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई. जीडीपी में हुई भारी गिरावट से 40 साल पहले की स्थिति निर्मित हो गई. बेरोजगारी के मामले में देश 45 साल पहले की स्थिति में खड़ा है. अब मोदी सरकार नेशन वन मार्केट का नारा लगाकर कृषि क्षेत्र को बर्बाद करने में तुली हुई है.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि नए कृषि विधेयक बिल से अब किसान पूंजीपतियों पर आश्रित होंगे पूंजीपति चाहेंगे तो किसानों के फसल को खरीदेंगे पूंजीपति नहीं चाहेंगे तो किसानों की फसल खड़े-खड़े वहीं पर खराब हो जाएगी. कुल मिलाकर अब देखेंगे तो बर्बादी के अलावा इस बिल में कोई ऐसा लाभ किसानों को नहीं दिखता है. मोदी सरकार किसानों से किए वादे को पूरा करने में असफल सिद्ध है अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है किसानों के साथ धोखा छल कपट किया जा रहा है. कृषि विधेयक बिल भारत के आत्मा पर प्रहार है.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह का ठाकुर ने कहा कि अतीत में जहाँ भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लागू हुआ उसका नतीजा अच्छा नही रहा है. किसानों के हित के साथ समझौता नही होना चाहिए।इसका उदाहरण गुजरात और पंजाब में देखने को मिला है. 30 साल पहले पंजाब के किसानों ने पेप्सिको के साथ आलू और टमाटर उगाने के लिए समझौता किया था. एफपीओ को किसान भी माना गया है और किसान तथा व्यापारी के बीच विवाद की स्थिति में बिचौलिया भी बना दिया गया है. इसमें अगर विवाद हुआ तो नुकसान किसानों का ही होगा.
गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसानो के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस लिया था. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं, लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है, तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है.