कांग्रेस के एक बड़े नेता ने लल्लूराम डॉट कॉम को सुनाया कांग्रेस का दुखड़ा…

कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर लल्लूराम डॉट कॉम को कांग्रेस का दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि जिस तरह से पार्टी का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता कभी भूपेश बघेल की सीडी को लेकर, तो कभी उनके जमीन के विवाद को लेकर तो भी स्टिंग की सीडी को लेकर लड़ाई लड़ रही है और इस लड़ाई में कांग्रेस का वो एजेंडा ही गुम हो गया जो पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए हाईकमान ने बनाया था. उस नेता ने कहा कि  भूपेश बघेल की कोर टीम उन्हें केवल पार्टी हाईकमान की नजरों में सीएम प्रोजेक्ट करने में लगी हुई है. उन्होंने ये भी कहा कि जब सत्ता ही नहीं रहेगी तो कांग्रेस का मुख्यमंत्री कोई कैसे बन पाएगा. कांग्रेस में केवल मुख्यमंत्री के लड़ाई के अलावा जनहित के मुद्दे गायब से हो गए है, ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता निराश नजर आ रहा है. उन्हें भी अब ये डर सताने लगा है कि बीजेपी कांग्रेस के इस अंदरुनी लड़ाई की वजह से सत्ता पर काबिज न हो जाए.

रायपुर. विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. इसके साथ ही नेताओं के पार्टी छोड़ने और दूसरी पार्टी में जाने का सिलसिला भी शुरु हो चुका है. ये कोई नई बात नहीं है, कि चुनाव और टिकटों के आबंटन के बाद कुर्सी का मोह यदि पूरा न हो तो राजनेता अपना वर्षों पुराना करियर दाव पर लगा देते है और अपने प्रशंसकों की आलोचनाओं को सहते हुए अपनी पार्टी का साथ छोड़ देते है. अब ऐसा ही कुछ दौर प्रदेश में भी देखने को मिल रहा है.

छत्तीसगढ़ की राजनीति में पिछले दिनों आई कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पार्टी से सीट दिए जाने वाले स्टिंग के सीडी कांड के बाद कांग्रेस के अंदरुनी खोमें में इसे लेकर काफी नाराजगी है. इतना ही नहीं मंत्री की सीडी का वितरण करने और सीबीआई में उन्हें आरोपी बनाए जाने के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक गुट भूपेश से दूरी बनाने लगा और उन्होंने पार्टी आलाकमान से एक साथ मिलकर ये शिकायत की कि ऐसी ही और सीडी यदि मार्केट में आई तो इससे पार्टी को काफी नुकसान होगा.

इन दोनो सीडी कांड का ही ये नतीजा है कि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राम दयाल उइके ने कांग्रेस से नाता तोड़ कमल के साथ जाने का फैसला कर लिया है. राजनीतिक गलियारों से अब जो बाते छनकर आ रही है वो कांग्रेस के नजरियें से अच्छी नहीं है. सूत्र बताते है कि कुछ और बड़े कांग्रेसी नेता भाजपा प्रवेश की तैयारी कर रहे है. हालांकि अफवाहों के इस बाजार में इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो चुनाव के नजदीक आने वाला वो समय ही बताएंगा कि कौन किस पार्टी को छोड़कर कहा जाता है और उसे अपने इस फैसले से कितना लाभ मिलता है. हालांकि प्रदेश के राजनीति का इतिहास बताता है कि जिसने भी अपनी पार्टी छोड़ी उसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराया है अब वो चाहे विद्याचरण शुक्ल जैसे बड़े नेता हो या भाजपा छोड़ नई पार्टी बनाने वाले ताराचंद साहू.