
रायपुर। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 28 जून 2022 को जारी अधिसूचना क्रमांक 459 को निरस्त करने की मांग की है. तिवारी ने अपने पत्र में बताया कि इस अधिसूचना से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और उनके मौलिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे.
राजेश तिवारी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे अपने पत्र में उन्हें देश के दलित, शोषित, पीड़ित अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का संरक्षक बताते हुए कहा कि केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 28 जून 2022 को जारी अधिसूचना क्रमांक 459 से इस वर्ग के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इसके लागू होने से न केवल आदिवासी एवं दलितों के मौलिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे, बल्कि उन्हें बेघर होना पड़ेगा और उनको वन अपराधी बना दिया जाएगा.
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव ने अपने पत्र में बताया कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 एक ऐसा ऐतिहासिक कानून है, जिसे संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था. यह देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी, दलित और अन्य परिवारों को व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तर पर भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है.
इस कानून के अक्षरशः अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए अगस्त 2009 को तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय ने एक परिपत्र जारी किया था. परिपत्र में कहा गया था कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों का सर्वप्रथम निपटान नहीं कर लिया जाता है.
उन्होंने बताया कि पारंपरिक रूप से वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों के हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह प्रावधान किया गया था. इसके अनुसार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन और पर्यावरण मंजूरी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले आदिवासी और अन्य समुदायों के अधिकारों का निपटान करना जरूरी होगा. परिपत्र में कहा गया है कि इस तरह के किसी भी प्रयोजन को कानून संवत होने के लिए प्रभावित परिवारों की स्वतंत्र, पूर्व और सुविज्ञ सहमति प्राप्त करना बाध्यकारी होगा.
तिवारी ने बताया कि 28 जून 2022 को मोदी सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार अंतिम रूप से वन मंजूरी मिलने के बाद वन अधिकारों के निपटारे की अनुमति दे दी है. जाहिर तौर पर यह प्रावधान कुछ चुनिंदा लोगों को जंगल बेचने या जंगल का निजीकरण करने के नाम पर किया गया है. लेकिन यह निर्णय उस विशाल जन समुदाय के लिए ‘जीवन की सुगमता’ को समाप्त कर देगा, जो आजीविका के लिए वन भूमि पर निर्भर है.
उन्होंने कहा कि यह वन अधिकार अधिनियम, 2006 के मूल उद्देश्य और वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के प्रस्तावों पर विचार करते समय इसके सार्थक उपयोग के उद्देश्य को नष्ट कर देता है. एक बार वन मंजूरी मिलने के बाद, बाकी सब कुछ एक औपचारिकता मात्र बनकर रह जाएगा, और लगभग अपरिहार्य रूप से किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा और उसका निपटान नहीं किया जाएगा. वन भूमि के अन्यत्र उपयोग की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र की ओर से और भी अधिक दबाव होगा.
राजेश तिवारी ने कहा कि नए नियमों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समितियों सहित अन्य संबद्ध हितधारकों से बिना कोई विचार विमर्श और चर्चा किए प्रख्यापित कर दिया गया है. यह अधिसूचना देश के पेसा कानून (अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत उपबंध का विस्तार) का भी उल्लंघन करता है, जिसमें यह प्रावधान है कि ग्राम सभा की अनुमति के बगैर जल, जंगल और जमीन का अधिग्रहण केन्द्र या राज्य की सरकार नहीं कर सकती है.
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