Karnataka Assembly Election Result 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम दिवस कर्नाटक में 36 मतगणना केंद्रों पर 224 विधानसभा मतों की गिनती जारी है. अब तक के रुझानों में कांग्रेस सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हराकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आती दिख रही है. अब तक के रुझानों में बीजेपी 70 सीटों से नीचे सिमटती नजर आ रही है. वहीं कांग्रेस 125 पार कर चुकी है, तो JDS में 24 सीटों में आगे है, जबकि 6 सीटों पर निर्दलीय आगे चल रहे हैं. वहीं PCC चीफ डीके शिवकुमार 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीते हैं.
कर्नाटक चुनाव के रुझानों में कांग्रेस के पूर्ण बहुमत के साथ-साथ जीत-हार के कारणों पर भी चर्चा शुरू हो गई है. कर्नाटक में बीजेपी की शर्मनाक हार के पीछे एक मजबूत चेहरे की कमी और राजनीतिक समीकरणों को संभालने में विफलता मुख्य कारण रहे हैं.
कर्नाटक में क्यों हारी बीजेपी ?
- कर्नाटक में दमदार चेहरा नहीं होना
कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह किसी मजबूत चेहरे का न आना रहा है. बीजेपी ने भले ही येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहने के बावजूद बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा. जबकि, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। बोम्मई को आगे खड़ा करना भाजपा को महंगा पड़ा.
2- भ्रष्टाचार
भाजपा की हार का मुख्य कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा था. कांग्रेस ने शुरुआत से ही भाजपा के खिलाफ ’40 प्रतिशत वेतन-मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार’ का एजेंडा रखा और धीरे-धीरे यह एक बड़ा मुद्दा बन गया. एस ईश्वरप्पा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और बीजेपी के एक विधायक को जेल जाना पड़ा था. राज्य ठेकेदार संघ ने इसकी शिकायत पीएम से भी की थी. यह मुद्दा चुनाव में भी बीजेपी के गले की फांस बना रहा और पार्टी इसका हल नहीं निकाल पाई.
3- बीजेपी नहीं संभाल पाई सियासी समीकरण
बीजेपी कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण को सीधा नहीं रख पाई. बीजेपी न तो अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने पास रख सकी और न ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंग समुदायों का दिल जीत सकी. दूसरी ओर, कांग्रेस मुसलमानों, दलितों और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही है.
4- काम नहीं आया ध्रुवीकरण का दांव
कर्नाटक में एक साल से बीजेपी नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक का मुद्दा उठा रहे हैं. पिछले चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हुई थी, लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं. जब कांग्रेस ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया तो भाजपा ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरे मामले को भगवान का अपमान बताया. बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला, लेकिन यह दांव भी काम नहीं आया.
5- येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा
कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस चुनाव में साइडलाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को भाजपा ने टिकट नहीं दिया, जबकि दोनों नेता कांग्रेस में शामिल हो गए और मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ा.
6- सत्ता विरोधी लहर झेल नहीं सकी BJP
कर्नाटक में भाजपा की हार का प्रमुख कारण सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने में उसकी अक्षमता भी रही है. भाजपा के सत्ता में होने के कारण लोगों में इसके खिलाफ नाराजगी थी. बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर चली, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से नाकाम रही.
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