कांग्रेस पार्टी पहलगाम हमले पर अपने रुख को लेकर असमंजस में दिखाई दे रही है. पिछले सप्ताह में दो बार पार्टी को अपने नेताओं के लिए निर्देश जारी करने पड़े, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी बैकफुट पर आ गई है. पहलगाम हमले पर नेताओं के बयानों के बाद कांग्रेस ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें कहा गया कि केवल अधिकृत नेता ही बयान देंगे, और निर्देशों का पालन न करने वाले नेताओं के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई. इसके अलावा, कांग्रेस ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक विवादास्पद पोस्टर जारी किया, जिसे विवाद बढ़ने के बाद हटा दिया गया. इस पोस्ट के माध्यम से कांग्रेस ने पहलगाम आतंकवादी हमले के संदर्भ में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया था.

कांग्रेस ने पहलगाम हमले के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए निशाना बनाया था, लेकिन बीजेपी के तीखे प्रतिरोध के बाद उसने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से एक तस्वीर साझा की गई थी, जिसमें लिखा था “जिम्मेदारी के समय गायब.” जैसे ही बीजेपी नेता अमित मालवीय ने इस पोस्टर पर कांग्रेस पर हमला किया, कांग्रेस ने उसे तुरंत हटा लिया.

पहलगाम हमले के संदर्भ में सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट को बीजेपी ने भी हटाया था, लेकिन कांग्रेस स्थिति को संभालने में असफल रही, क्योंकि वह पहले से ही बचाव की मुद्रा में थी. छत्तीसगढ़ बीजेपी ने एक्स पर एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा था, ‘धर्म पूछा, जाति नहीं… याद रखेंगे’, जिसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने सवाल उठाया, जिससे बीजेपी को पोस्ट हटानी पड़ी. हालांकि, अमित मालवीय और अन्य बीजेपी नेताओं के हमले के बाद कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने पोस्ट को डिलीट कर दिया.

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PM मोदी पर कांग्रेस पार्टी हमलावर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्वदलीय बैठक में अनुपस्थित रहने पर कांग्रेस ने उन पर लगातार हमले किए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकालर्जुन खरगे ने भी पीएम मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि जब देश की सुरक्षा पर खतरा था, तब प्रधानमंत्री बिहार में चुनावी भाषण दे रहे थे. इस बीच, भाजपा के कई नेताओं ने कांग्रेस के इस बयान को रीपोस्ट करते हुए उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस के पोस्टर पर सवाल उठाते हुए कहा कि कांग्रेस द्वारा ‘सर तन से जुदा’ की तस्वीर का उपयोग करना केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने और प्रधानमंत्री के खिलाफ उकसाने की एक छिपी हुई कोशिश है. यह पहली बार नहीं हुआ है, जिससे इस मुद्दे की गंभीरता और बढ़ जाती है.

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कांग्रेस ने पहलगाम हमले पर एक राजनीतिक रुख तो अपनाया है, लेकिन इसके पीछे काफी भ्रम दिखाई देता है. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि कांग्रेस सरकार के हर निर्णय के साथ खड़ी है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के विभिन्न नेताओं के बयानों में असंगति देखने को मिलती है. सिद्धारमैया से लेकर सैफुद्दीन सोज तक, और महाराष्ट्र के विजय वडेट्टीवार भी ऐसे बयान देते हैं जो कांग्रेस की स्थिति को कमजोर करते हैं. इस बीच, खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस आलाकमान नेताओं के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की योजना बना रहा है, साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि आलाकमान को कुछ पोस्टर भी अप्रिय लगे हैं.

जब कांग्रेस ने पोस्‍ट डिलीट कर दी है तो बाद में बचाव क्‍यों?

कांग्रेस के कन्‍फ्यूजन का सिलसिला ‘गायब’ पोस्‍ट को डिलीट करने के बाद भी जारी रहा. कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत्र ने ट्विटर पर स्पष्ट किया कि ‘गायब’ फिल्म के पोस्‍टर से प्रेरित उनकी पोस्‍ट में प्रधानमंत्री मोदी का नाम नहीं था, फिर भी उनका जिक्र क्यों किया गया? सुप्रिया की बात में एक तर्क है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि पोस्‍ट को डिलीट करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? कांग्रेस पार्टी अपने आरोपों पर अडिग है और प्रधानमंत्री मोदी पर जिम्मेदारी से भागने का आरोप लगा रही है. क्या कांग्रेस नेतृत्व ने बीजेपी की तरह इस पोस्‍टर को विवादास्पद मान लिया? ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रिया श्रीनेत्र द्वारा उठाए गए मुद्दे पर जयराम रमेश भी अपनी बात रख सकते थे. इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि वर्तमान में देश का ध्यान प्रधानमंत्री की आलोचना करने के बजाय पाकिस्तान पर केंद्रित है, और कांग्रेस नेतृत्व इस स्थिति को भली-भांति समझ रहा है. प्रधानमंत्री पर सवाल उठाने और उन्हें घेरने का समय अभी बाकी है. हालांकि, कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम ने इस संदर्भ में थोड़ी जल्दबाजी दिखाई है.

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क्यों कांग्रेस में इतना कन्फ्यूजन?

कांग्रेस का ‘गायब’ वाला पोस्टर हटाना और 2017 में गुजरात में कैंपेन को रोकना लगभग एक समान प्रतीत होता है, जिससे भारी भ्रम उत्पन्न होता है. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का ‘विकास गांडो थयो छे’ कैंपेन सफल हो रहा था, लेकिन राहुल गांधी के निर्देश पर इसे वापस ले लिया गया. इस दौरान मोदी ने एक रैली में कहा था, ‘हूं विकास छुं, हूं गुजरात छुं’, जिसका अर्थ था कि वह विकास और गुजरात दोनों का प्रतीक हैं. राहुल गांधी का तर्क था कि चूंकि मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए उनका सम्मान आवश्यक है. ऐसे में कांग्रेस को या तो उस कैंपेन पर कायम रहना चाहिए था या फिर उस पोस्टर को जारी ही नहीं करना चाहिए था. राहुल गांधी ने मोदी के खिलाफ विवादास्पद बयान देने के लिए कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और सीपी जोशी से माफी मंगवाई है, लेकिन दिल्ली चुनाव के दौरान उन्होंने एक बार फिर विवादित टिप्पणी की, जिसमें कहा कि छह महीने बाद युवा डंडे मारेंगे.

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ये डबल स्टैंडर्ड क्यों?

2019 के चुनाव में राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि “चौकीदार चोर है.” हालांकि, अमेठी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और इसके बाद कांग्रेस की देशभर में हार के चलते उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उन्हें सलाह देते रहे हैं कि वे बीजेपी या मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करें, लेकिन व्यक्तिगत हमलों से बचें, क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है. फिर भी, राहुल गांधी इस सलाह को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

यह स्थिति कई बार विपक्ष के समर्थन को भी कमजोर कर देती है. चीन के मुद्दे पर सोनिया गांधी को सर्वदलीय बैठक में शरद पवार की सलाह सुननी पड़ी, जिसमें पवार की बातों को उनके रक्षा मंत्री होने के नाते अधिक महत्व दिया गया.

राहुल गांधी को मोदी के संदर्भ में स्पष्ट और एकजुट राय बनानी होगी. एक बार निर्णय लेने के बाद पीछे हटना उचित नहीं होता, और बार-बार ऐसा होना तो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है.