पढ़िए-कांग्रेस के भीतर दर्द पाले उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दर्द, जो आलाकमान से कह रहे हैं…?
बैठक पे बैठक, बैठक पे बैठक और कितनी बैठक लोगे हाईकमान ? नतीजा कब आएगा ? ये दर्द सन्नी देवल का नहीं, बल्कि पूरी तरह से टूट चुके छत्तीसगढ़ के उन कांग्रेसियों का है, जो हर बार एक उम्मीद कर बैठते है कि अब की बार बैठक में हाईकमान कोई सख्त निर्णय लेगा।  शायद १३ सालों से टूटते जा रहे उन मासूम काग्रेसियो का दर्द समझेंगे। लेकिन हाईकमान को क्या ?  वह भी दर्द सुनते है, तो उनका जिनका दर्द उनके खुद का दर्द है।  महोदय अगर दर्द सुनना ही है, तो सुने उन कांग्रेसियों का जिनका हाल उन अकाल के वक़्त के किसान की तरह है, जो जरा सी बदली आने पर सारा दिन आसमान की ओर ताकते रहता है, इस उम्मींद से कि शायद अब बारिश आएगी और उनके सूखे पड़े खेतों में हरियाली होगी, पर ये उम्मीद है कि उनकी पूरी ही नहीं होती। महोदय अगर आपको हाल-ए-कांग्रेस जानना है, तो बैठक लीजिए उन कार्यकर्ताओं की, जो १३ वर्षो से एक उम्मीद के सहारे जी रहे हैं कि अबकी बार उनकी मेहनत रंग लाएगी।  महोदय आप तो उनकी बैठक ले रहे है जिन्हे न कार्यकर्ताओं की चिंता है न रिजल्ट की।  उन्हें तो बस चिंता है खुद की, कि कब वे इस प्रदेश की बागडोर अपने हाथो में लेंगे।  इस प्रदेश के कोंग्रेसी कार्यकर्ता ये जानना चाहता है कि अबकी बार बैठक का नतीजा क्या हुआ ? या फिर हर बार की तरह इस बार भी वही हुआ जो हमेशा होता आया है,मसलन सभी सम्मानित सदस्य एक दूसरे की खिचाई किये, फिर फोटो सेशन का दौर चला और फिर वापस घर को लौट आये। महोदय प्राचीनकाल से राजा महराजा अपने राज्य की जनता का हाल-चल जानने खुद रात में अकेले भेष बदलकर निकल जाते थे, आप भी कुछ ऐसा ही क्यों नहीं करते हमारे जैसे कांग्रेसियों का हाल जानने के लिए।  लेकिन महोदय के आपके रवैये और नजर अंदाज के चलते लोग धीरे धीरे आपका साथ छोड़ते जा रहे है।  महोदय बैठक लेना है तो उस जमीनी कार्यकर्ता की लीजिए जो पार्टी के लिए जी भी रहें और मर भी। आखिरी में उसी कांग्रेसी ने अपना दर्द एक शायरी के साथ समाप्त किया कि….
                                           न पूछो यारो दौरा-ए-जिंदगी का आलम, कि दिल रो रहा है और आँखे आंसू पी रही है,
                                           और जिंदगी इतनी बदजल है हमारी, की हँसते हँसते जिंदगी के कांटे सी रही।