अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में तेन्दूपत्ता संग्रहण और विक्रय का कारोबार लघुवनोपज संघ के माध्यम से किया जाता है. अन्य अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपजों का संग्रहण, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन ही लघु वनोपज संघ में सहकारिता के तीन स्तरों वाले ढांचे के अंतर्गत किया जा रहा है. तेन्दूपत्ता राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज है, छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में इसका उत्पादन होता है। जहां तक तेन्दूपत्ते के व्यवसाय का संबंध है, यह प्रदेश के 12 लाख से ज्यादा संग्राहक परिवारों के लिए हर साल अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा माध्यम है. छत्तीसगढ़ देश का पहला और इकलौता राज्य है, जिसने इस वर्ष 2018 में वनोपज समितियों के माध्यम से तेन्दूपत्ता संग्राहकों को ढाई हजार रूपए प्रति मानक बोरे की दर से पारिश्रमिक देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है.
अधिकारियों ने यह भी बताया कि वर्तमान में राज्य शासन की नीति के अनुसार संग्रहित किए जाने वाले तेन्दूपत्ते का अग्रिम विक्रय अखिल भारतीय स्तर पर ई-निविदा के माध्यम से किया जाता है. यह प्रक्रिया आॅनलाइन होने के कारण जहां पूर्ण रूप से पारदर्शी है, वहीं इसमें निविदाकारों के बीच प्रतिस्पर्धा रहती है. निविदाओं पर प्रस्तुत की जाने वाली दरें मुख्यतः बाजार की मांग और आपूर्ति पर आधारित रहती है. वर्तमान में प्रदेश की 901 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से संग्रहित होने वाले तेन्दूपत्ते की 951 लाटों का अग्रिम निविदा के माध्यम से अग्रिम विक्रय किया जा रहा है, चूंकि तेन्दूपत्ते के अग्रिम विक्रय की कार्रवाई वर्तमान में प्रक्रियाधीन है. इसलिए यह अनुमान लगाना नितांत जल्दबाजी है कि निविदा स्वीकार किए जाने के फलस्वरूप लघु वनोपज संघ की आमदनी में 300 करोड़ रूपए की कमी होगी। इस तरह की अटकलें तथ्यों से परे और निराधार हैं.
लघु वनोपज संघ के अधिकारियों का यह भी कहना है कि अग्रिम निविदा के माध्यम से तेन्दूपत्ता बेचने के लिए शासन द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुरूप प्रत्येक निविदाकर्ता द्वारा अपनी क्रय क्षमता के अनुसार दरें प्रस्तुत की जाती हैं. इस प्रकार क्रय क्षमता के आधार पर अधिकतम प्रस्तुत दरों पर ही क्रेता को लॉट आवंटित करने का निर्णय लिया जाता है. इसका तात्पर्य यह है कि हमेशा सर्वोच्च दर पर ही समस्त लॉटों का निवर्तन हो सके, यह संभव नहीं है, क्योंकि अन्य मापदण्डों का भी परीक्षण किया जाता है. अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के सीमावर्ती मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और तेलांगाना राज्यों में भी तेन्दूपत्ते के विक्रय की वर्तमान में जो दरें प्राप्त हई हैं, वो छत्तीसगढ़ राज्य हेतु प्राप्त औसत दर रूपए 5847 प्रति मानक बोरा की तुलना में कम है. इस तथ्य से यह स्पष्ट है कि वस्तुओं के बाजार में मांग और आपूर्ति के सिद्धांत के अनुसार वस्तु के प्रचलित दर के अनुरूप ही निविदाकारों द्वारा तेन्दूपत्ते की अग्रिम खरीदी हेतु दरें प्रस्तुत की गई हैं.
पड़ोसी राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ को मिली सबसे ऊंची दर
अधिकारियों ने बताया कि यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सीमावर्ती मध्यप्रदेश में वर्तमान वर्ष 2018 के सीजन के लिए औसतन 4847 रूपए प्रति मानक बोरा की दर से तेन्दूपत्ते का अग्रिम विक्रय किया गया. महाराष्ट्र में औसत विक्रय मूल्य 2177 रूपए प्रतिमानक बोरा और तेलांगाना में औसत विक्रय मूल्य 1839 रूपए और झारखण्ड राज्य में वर्ष 2018 के लिए यह औसत 1217 रूपए प्रति मानक बोरा विक्रय मूल्य प्राप्त हुआ है। आंध्रप्रदेश में यह औसत विक्रय मूल्य 3858 रूपए प्रतिमानक बोरा है. इस प्रकार देखा जाए तो छत्तीसगढ़ राज्य में लघु वनोपज सहकारी संघ की तेन्दूपत्ते की अग्रिम विक्रय दर रूपए 5847 रूपए प्रति मानक बोरा अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है. तेलांगाना राज्य में जहां औसत विक्रय मूल्य 1839 रूपए प्रतिमानक बोरा है, वहां तेन्दूपत्ता संग्राहकों को पारिश्रमिक भुगतान रूपए 1500 प्रति मानक बोरे की दर से क्रेताओं द्वारा किया जाता है.
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के अधिकारियों ने यह भी बताया गया है कि तेलांगाना राज्य में तेन्दूपत्ते का औसत विक्रय मूल्य इस वर्ष 1839 रूपए प्राप्त हुआ है और वहां संग्राहकों को भुगतान क्रेताओं द्वारा 1500 रूपए प्रति मानक बोरे की दर से किया जाता है। इसी तरह आंध्रप्रदेश में औसत विक्रय मूल्य 3858 रूपए है और वहां संग्राहकों को 1650 रूपए प्रति मानक बोरा क्रेताओं द्वारा दिया जाता है. झारखण्ड राज्य में वर्ष 2018 के लिए अग्रिम विक्रय हेतु तेन्दूपत्ते की औसत दर 1217 रूपए प्रति मानक बोरा प्राप्त हुई है और वहां तेन्दूपत्ता संग्रहण दर 1175 रूपए निर्धारित किया गया है, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले वर्ष तेन्दूपत्ता संग्राहकों को 1800 रूपए प्रति मानक बोरा की दर से पारिश्रमिक भुगतान किया और नये तेन्दूपत्ता सीजन 2018 में संग्राहकों को 2500 रूपए प्रति मानक बोरे की दर से संग्रहण पारिश्रमिक का भुगतान करने का निर्णय लिया गया है.
अधिकारियों ने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में प्राप्त दरों की तुलना सीमावर्ती राज्यों में प्राप्त तेन्दूपत्ते की दरों से किए जाने पर यह स्पष्ट होता है कि निविदाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ में प्रस्तुत दर सर्वाधिक है और उसके अनुरूप दी गई उनकी स्वीकृति सर्वथा उपयुक्त है. तेन्दूपत्ता लॉटों का विक्रय आनलाइन अग्रिम निविदा द्वारा किया जाता है, बोली लगाकर नहीं. उन्होंने यह भी बताया कि तेन्दूपत्ते की लॉटों का अग्रिम विक्रय निर्धारित अवरोध मूल्य से ज्यादा दर पर किया गया है. अतः कम कीमत पर विक्रय करने का सवाल ही नहीं उठता.
दरों के अनुमोदन के लिए होती है अंतर्विभागीय समिति
उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश सरकार के निर्देशों के अनुरूप तेन्दूपत्ते के विक्रय की दरों की स्वीकृति के लिए शासन के विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की एक अंतर्विभागीय समिति गठित की गई है, जिसके द्वारा राज्य के सीमावर्ती प्रदेशों तथा बाजार दरों का, विक्रय के लिए निर्धारित आॅफसेट दर के अनुसार गहन अध्ययन और परीक्षण करने के बाद दर स्वीकृति का अनुमोदन किया जाता है. समिति द्वारा अब तक प्राप्त निविदा दरों के आधार पर आगामी बाजार दरों की दशा और दिशा का भी अनुमान लगाया जाता है और लॉटों का निर्वर्तन शासन और संग्राहकों के व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. तेन्दूपत्ते के विक्रय की प्राप्त दरों में उतार-चढ़ाव चक्रिय प्रकृति का होता है.
इस वर्ष तेन्दूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक 2500 रूपए प्रति मानक बोरा
उन्होंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में वर्तमान तेन्दूपत्ता सीजन में संग्राहकों को शासन द्वारा निर्धारित दर के अनुसार प्रति मानक बोरा 2500 रूपए के मान से संग्रहण पारिश्रमिक का भुगतान किया जाएगा. यह देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। इस प्रकार संग्राहक, तेन्दूपत्ते के अग्रिम विक्रय में किसी भी दर के कारण कतई प्रभावित नहीं होते, लेकिन जहां तक निविदा की कम दर स्वीकृति के फलस्वरूप लघु वनोपज संघ को कम आमदनी होने की आशंका प्रचारित की जा रही है, अतः इस संबंध में लघु वनोपज संघ का कहना है कि छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती प्रदेशों में प्राप्त दरें इसका स्पष्ट परिचायक है कि वर्तमान में प्रचलित दर के अनुरूप ही अंतर्विभागीय समिति की अनुशंसा के आधार पर दर स्वीकृत की गई है, जो सीमावर्ती राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा हैं. यद्यपि तेन्दूपत्ता संग्राहकों को मिलने वाले बोनस का उसके विक्रय की राशि से संबंध है, तथापि विक्रय दरों का नियंत्रण प्रचलित बाजार की ताकतों द्वारा होता है. इसलिए आनुपातिक रूप से बोनस राशि का कम अथवा ज्यादा होना स्वभाविक है.