रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक ने रायपुर कार्यालय में महिला उत्पीड़न से संबंधित प्रकरणों पर सुनवाई की। एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि विवाह के केवल 15 दिन के बाद ही पति ने उसे घर से निकाल दिया था। पति वर्तमान में तेलीबांधा थाना में कार्यरत है और 40 हजार रुपए महीना कमाता है, लेकिन अब तक आवेदिका को कोई भरण-पोषण नहीं दे रहा है। आयोग ने आरक्षक पति को विवाह का सामान वापस देने एवं प्रति माह 15 हजार रुपए भरण-पोषण आवेदिका को देने का फैसला सुनाया। प्रकरण की निगरानी आयोग द्वारा की जाएगी।
एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि पिछली सुनवाई में अनावेदक (पति) को आदेशित किया गया था कि वह आवेदिका को नियमित भरण-पोषण देगा। अनावेदक ने आयोग के आदेश का पालन नहीं किया है। अनावेदक रेलवे में नौकरी करता है। उसकी पहली पत्नी से तलाक हो गया है। आवेदिका उसकी दूसरी पत्नी है, अनावेदक ने अब तक आवेदिका और उसकी पुत्री का नाम अपनी सर्विस बुक में दर्ज नहीं कराया है। आयोग ने अनावेदक को समझाइश दी की यदि वह आवेदिका व उसकी पुत्री को भरण पोषण नहीं देगा तो आयोग की ओर से डीआरएम को पत्र प्रेषित कर नौकरी से निलंबन की अनुशंसा की जाएगी।


सुनवाई के दौरान एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि अनावेदकों ने आवेदिका का विवाह झूठ बोलकर कराया। आवेदिका के पति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी फिर भी जानबूझकर विवाह कराया गया। विगत 7 वर्षों से आवेदिका के पिता द्वारा दामाद का पालन-पोषण किया गया और ईलाज भी कराया गया। अनावेदकों ने अब तक अपने पुत्र के ईलाज व पालन-पोषण के लिए खर्च नहीं किया है। दोनों पक्षों को सुनने पर यह ज्ञात हुआ कि आवेदिका के पति को मानसिक इलाज की जरूरत है। इसके लिए आयोग ने आवेदिका के पति के इलाज के लिए मानसिक रोग चिकित्सालय ग्राम सेंद्री जिला बिलासपुर को पत्र लिखकर अनुशंसा की, ताकि वह स्वस्थ्य हो सके। आवेदिका के पति के ईलाज के दौरान अनावेदक महिला को 6 माह के भरण-पोषण के लिए 12 हजार रुपए देंगे। इस मामले में 6 माह के बाद रिपोर्ट के आधार पर निर्णय किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि आवेदिका की दो बेटियां होने के बाद से ही अनावेदक का आवेदिका के प्रति व्यवहार पूरी तरह से बदल गया है। पति की दूसरी शादी करने के लिए आवेदिका की सास ने आवेदिका को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और आवेदिका के खिलाफ अनावेदक ने षड्यंत्र कर जबरदस्ती आवेदिका को मानसिक रोग की दवा खाने को मजबूर किया। आवेदिका के इंकार करने पर आवेदिका को घर से निकाल दिया और दोनों बेटियों को उससे छीन लिया। इस मामले में आयोग ने आवेदिका को निर्देशित किया कि वह थाना में अनावेदकों के खिलाफ क्रूरता एवं प्रताड़ना का अपराध दर्ज करा सकती है व एफआईआर दर्ज करवा सकती है। इस निर्देश के साथ प्रकरण नस्तीबध्द किया गया।
एक अन्य प्रकरण में आवेदिका (सास) ने अपनी बहू व अपने पोते को अपने साथ रखने के लिए प्रकरण प्रस्तुत किया। अनावेदक (बहू) वर्तमान में 10 हजार रुपए कमाती है और बच्चे का पालन-पोषण नहीं कर पा रही है। बच्चे को अपने माता-पिता के पास छोड़ रखी है, जबकि आवेदिका और उसके पति आज तक अपने पोते (4वर्ष) को देखने के लिए तरस गए हैं। चूंकि अनावेदिका (बहु) बच्चे का पालन-पोषण नहीं कर पा रही और अपने ससुराल में भी नहीं रहना चाहती है। ऐसी स्थिति में आयोग ने दोनों पक्षों को आपसी राजीनामे से तलाक लिए जाने की समझाइश दी, इस स्तर पर प्रकरण नस्तीबध्द किया गया और आयोग ने आवेदिका के पुत्र को समझाइश दिया कि वह अपने पुत्र का पालन-पोषण करने के लिए नैसर्गिक संरक्षण के लिए कानूनी माध्यम से पुत्र को प्राप्त कर सकता है। इस स्तर पर प्रकरण नस्तीबध्द किया गया।
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