वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. कांस्टेबल ने पत्नी और बेटी द्वारा दायर भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश पूरी तरह वैध है, उसमें हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि कांस्टेबल अपनी पिता की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता, उसे अपनी बेटी को भरण-पोषण देना होगा।
बता दें कि याचिकाकर्ता वर्तमान में कोण्डागांव जिला पुलिस बल में कांस्टेबल के पद पर पदस्थ है। उसकी पत्नी ने न्यायालय में धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। पत्नी ने पति पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, छोड़ देने और बेटी की देखरेख से मुंह मोड़ने जैसे आरोप लगाए और 30,000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की थी।

इस याचिका पर फैमिली कोर्ट अम्बिकापुर ने 9 जून 2025 को फैसला सुनाते हुए पत्नी की भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया था, लेकिन 6 वर्षीय बेटी के पक्ष में 5,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग बच्ची की परवरिश और शिक्षा के लिए यह सहायता आवश्यक है। कांस्टेबल ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका लगाई। याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि बच्ची उनकी बेटी नहीं है, याचिकाकर्ता एचआईवी संक्रमित हैं और उनके इलाज में भारी खर्च आता है। इससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है इसलिए भरण-पोषण की राशि देना उनके लिए व्यवहारिक नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के सभी तर्कों को सुनने के बाद अपने फैसले में कहा कि फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों और बयानों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाया है। आदेश में कोई कानूनी त्रुटि या तथ्यात्मक गलती नहीं है। याचिकाकर्ता के आरोप प्रमाणित नहीं हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि बेटी को भरण-पोषण देना पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा है।
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