कर्ण मिश्रा,ग्वालियर। 300 करोड़ की लागत से तैयार होने वाली ग्वालियर की पहली स्मार्ट सड़क के काम से स्मार्ट सिटी ने हाथ खींच लिए हैं. खराब फीजिबिलिटी और गलत प्लानिंग के चलते स्मार्ट सिटी अब सिर्फ 5.5 किमी लम्बी सड़क का ही निर्माण कार्य पूरा करेगी, जबकि उसे अनुबन्ध के तहत 18 महीने में 16 किलोमीटर लंबी स्मार्ट सड़क तैयार करनी थी. बीजेपी और कांग्रेस ने शहर के ड्रीम प्रोजेक्ट में लापरवाही और रुपयों की बर्बादी पर जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदार पर कार्रवाई की मांग की है.

साल 2012 में गुलाबी पत्थरों से शहर की पहली थीम रोड का निर्माण तत्कालीन महापौर समीक्षा गुप्ता ने करवाया था, उस वक्त यह खूबसूरत रोड महज दो करोड़ रुपए की लागत में तैयार हो गई थी, लेकिन सितम्बर 2020 में उसी थीम रोड की जगह पर शहर की पहली स्मार्ट रोड बनाने का सपना स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने शहर वासियों को दिखाया. 300 करोड़ की लागत से 15.62km लंबी सड़क बनाने के लिए दिसंबर 2020 में एलएनटी कंपनी के साथ अनुबंध हुआ, जिसके तहत 18 महीने में ग्वालियर शहर की पहली स्मार्ट रोड का काम पूरा किया जाना था, लेकिन 28 महीने बीतने के बावजूद महज 2 किलोमीटर की सड़क निर्माण का काम हो सका है.

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इस 2 किलोमीटर लंबी सड़क पर अभी भी सौंदर्यकरण से जुड़ा हुआ काफी काम अधूरा है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कामकाज में लेटलतीफी और गुणवत्ता विहीन काम को लेकर ठेकेदार सहित स्मार्ट सिटी पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. ग्वालियर के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अल्टीमेटम दिया था कि इस रोड का पूरा काम 30 मई तक होना है. लेकिन काम मैं पेंडेंसी होने के चलते अब स्मार्ट सिटी ने इस रोड के काम से ही हाथ खींच लिए हैं. स्मार्ट सिटी ने 16 किमी लम्बी सड़क निर्माण न करने की जगह महज 5.5 किमी सड़क निर्माण कर रही हैं. जिसके पीछे स्मार्ट सिटी का तर्क है कि पूरी सड़क निर्माण में काफी परेशानियां है जिनमें सबसे ज्यादा परेशानी नाला नालियां, बेतरतीब बिजली के खंभे, इलेक्ट्रिकसिटी डीपी सहित अन्य कारण है.

शहर के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही स्मार्ट सिटी के जिम्मेदार अधिकारियों के साथ ठेकेदार कंपनी को दोषी मान रही है. कांग्रेस की ओर से नगर सरकार में काबिज ग्वालियर नगर निगम में MIC सदस्य अवधेश कौरव का कहना है कि स्मार्ट रोड का जो काम हो रहा है. वह शासन के अधीन है. इसमें नगर निगम का ज्यादा हस्तक्षेप नहीं है लेकिन स्मार्ट सिटी की कमेटी में नगर निगम के कमिश्नर शामिल है. ऐसे में यह जिम्मेदारी काम करने वाले अधिकारियों की जरूर होती है कि वह जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उस इलाके के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि से चला ली जाए. आज अच्छी सड़कों को उखाड़ कर फिर सड़क बनाई जा रही है. दो करोड़ की लागत में बनने वाली सड़क पर 200 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं. यह जनता के पैसों की बर्बादी की जा रही है इसमें बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है.

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नगर निगम में बीजेपी से नेता प्रतिपक्ष हरिपाल का कहना है कि जो भी सीनियर लीडर है. वह यही चाहते हैं कि सरकार की हर एक योजना का लाभ अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचे, लेकिन अधिकारियों और ठेकेदारो के निकम्मेंपन की चलते यह योजनाये विफल हो रही हैं. हमारी सरकार ने तो हजारों करोड़ों रुपए दिए हैं लेकिन यह लोग उन काम को कर नहीं पा रहे हैं. पीएम मोदी और सीएम शिवराज सड़क पर खुद तो काम करने के लिए आएंगे नहीं, ऐसे में इन दोषियों पर कार्रवाई होना चाहिए.

इस पूरे मामले पर स्मार्ट सिटी सीईओ नीतू माथुर का कहना है कि जब हमने स्मार्ट रोड बनाने का निर्णय लिया था, उस वक्त सबसे मुख्य उद्देश्य था कि अंडर ग्राउंड केबलिंग की जाए, लेकिन जब मौके पर काम करने गए तो बहुत सारी पाइप लाइनों के बीच से नई और पुरानी केबलिंग को गुजारना बहुत चैलेंजिंग हुआ. इसके साथ ही सीवर प्रोजेक्ट भी परेशानी बना, इसके चलते जनता को भी परेशानी हो रही थी और हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा था. लिहाजा निर्णय लिया गया कि सिर्फ रोड ही बनाया जाए. लेकिन मौके पर फिजिबिलिटी नहीं दिख रही थी मौके पर स्थिति के अनुसार सड़क का काम भी संभव नहीं हो पा रहा था इसलिए सड़क निर्माण न करने का भी निर्णय लिया.

ग्वालियर शहर का स्मार्ट रोड देखने का सपना अब पूरा नहीं हो सकेगा, क्योंकि स्मार्ट सिटी भी साफ कह चुकी है कि अब वह स्मार्ट रोड नहीं महज सामान्य रोड तैयार करेगी. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि दो करोड़ की लागत से साल 2012 में तैयार की गई. शहर की खूबसूरत गुलाबी पत्थर से बनी थीम रोड को तोड़कर एक ओर स्मार्ट रोड बनाने के लिए जनता का करोड़ों रुपया बर्बाद भी किया गया. दूसरी ओर अब ना शहर की थीम रोड बची और ना ही स्मार्ट रोड बन सकी.

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