शिखिल ब्यौहार, भोपाल। प्रदेश में शिक्षकों की उपस्थिति, छुट्टी, पेंशन और अन्य सेवा संबंधी रिकॉर्ड अब “हमारे शिक्षक” नाम के नए ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म पर डिजिटल रूप से दर्ज होंगे। स्कूल शिक्षा विभाग 23 जून से इस सिस्टम को लागू कर रहा है, जबकि एक जुलाई से यह सभी जिलों में अनिवार्य हो जाएगा। वहीं शिक्षकों की ई-अटेंडेंस को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है।
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शासकीय शिक्षक संगठनों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सरकार शिक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार ना करें। संगठन की दलील है कि सरकार E अटेंडेंस की व्यवस्था सबसे पहले शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से शुरू करें। शिक्षक संगठन ने इसके लिए सरकार को खुला पत्र जारी किया है। शिक्षकों की ई-अटेंडेंस प्रणाली में खामियां और मानवीय दृष्टिकोण से उन्होंने टिप्पणी की है।
सरकार को जारी किया खुला पत्र
डिजिटल युग में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व (accountability) को सुनिश्चित करने हेतु ई-अटेंडेंस जैसे उपायों को आवश्यक माना जा रहा है। परंतु जब इस तकनीकी प्रणाली को मानवीय पेशे, जैसे कि शिक्षण, पर बिना संवेदीता के लागू किया जाता है, तब इससे अनेक व्यवहारिक व नैतिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
1. मोबाइल पर निर्भरता और तकनीकी असहायता
ई-अटेंडेंस प्रणाली मोबाइल उपकरणों पर अत्यधिक निर्भर है। यदि शिक्षक का मोबाइल गुम हो जाए, खराब हो जाए, नेटवर्क न हो या कोई अन्य तकनीकी समस्या आ जाए, तो शिक्षक की उपस्थिति दर्ज नहीं हो पाएगी। ऐसी स्थिति में शिक्षक की वास्तविक उपस्थिति भी अनुपस्थिति के रूप में दर्ज होगी, जो सीधा वेतन कटौती जैसी अन्यायपूर्ण सजा में परिवर्तित हो सकती है। यह न केवल अन्याय है, बल्कि इससे शिक्षकों का मनोबल भी गिरता है।
2. मशीन बनाम मानवीय संबंध
एक शिक्षक विद्यालय में केवल उपस्थित नहीं होता, वह हर दिन विद्यार्थियों की संवेदनाओं, जिज्ञासाओं, और संघर्षों से जुड़ता है। जब शिक्षकों को मशीनों की तरह ट्रैक किया जाने लगेगा, तो यह रिश्ता भी यांत्रिक बन जाएगा। मशीनें मानवीय संवेदना को नहीं समझतीं, और न ही यह महसूस कर सकती हैं कि शिक्षक के कार्य का प्रभाव वर्षों बाद किसी छात्र की सफलता में दिखाई देता है।
3. शिक्षा तृतीयक क्षेत्र का आधार
शिक्षक देश की जीडीपी में प्रत्यक्ष उत्पादन नहीं करता, किंतु वह भविष्य के उत्पादक नागरिकों को गढ़ता है। शिक्षा तृतीयक क्षेत्र का मूल है, और उसमें मानवीयता ही सबसे बड़ी आवश्यकता है। यदि शिक्षकों को मशीनों की तरह मॉनिटर किया जाएगा, तो शिक्षा की प्रकृति ही बदल जाएगी – वह एक “मानव निर्माण” प्रक्रिया न रहकर “डेटा निर्माण” प्रक्रिया बनकर रह जाएगी।
4. केंद्रीकृत मॉनिटरिंग की अव्यावहारिकता
सीधे राजधानी भोपाल से राज्य के लाखों विद्यालयों की मॉनिटरिंग करना न व्यावहारिक है, न ही न्यायसंगत। यह न केवल विकेन्द्रीकरण के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि स्थानीय समस्याओं और वास्तविकताओं की उपेक्षा भी करता है। इसका विकल्प यह होना चाहिए कि जिला या संकुल स्तर पर प्रभावी और मानवीय मॉनिटरिंग व्यवस्था बनाई जाए।
5. सुधार के सुझाव
- ई-अटेंडेंस को वैकल्पिक सहायक प्रणाली के रूप में अपनाया जाए, बाध्यकारी प्रणाली के रूप में नहीं।
- मोबाइल आधारित उपस्थिति के साथ विद्यालय स्तर पर हस्ताक्षरयुक्त उपस्थिति रजिस्टर भी मान्य किया जाए।
- तकनीकी गड़बड़ियों के लिए लचीलापन हो, जिससे शिक्षक मानसिक तनाव से बच सकें।
- शिक्षकों के लिए हेल्पलाइन, फीडबैक सिस्टम, और शिकायत निवारण तंत्र सक्रिय और प्रभावी बनाए जाएं।
शिक्षकों की उपस्थिति पर निगरानी अवश्य होनी चाहिए, लेकिन ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो मानवीय गरिमा को न नकारे। शिक्षक मशीन नहीं, समाज निर्माता होता है। यदि हम शिक्षा को वास्तव में प्रभावी बनाना चाहते हैं, तो शिक्षकों के साथ विश्वास और सम्मान का रिश्ता बनाए रखना होगा। ई-अटेंडेंस का उद्देश्य अनुशासन हो सकता है, लेकिन उस अनुशासन की कीमत संवेदनाओं की हत्या के रूप में नहीं चुकाई जानी चाहिए।
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