रायपुर। 5 अप्रैल की सुबह छत्तीसगढ़ के लिए खुशी की हद तक पंहुचने वाली राहत लेकर आई। इस तारीख की सुबह तक राज्य में कोरोना से कुल 10 संक्रमित मरीज़ों में से 7 डिस्चार्ज हो गए। कोरोना के संक्रमण और उसके रोकथाम के प्रबंधन की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार की इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। जबकि देशभर में कोरोना के मामले 3 हज़ार को पार हो चुका है।

जिस समय ये महत्वपूर्ण उपलब्धि राज्य के खाते में आई है, उसी समय भाजपा के तमाम नेता इस पर कोई सुझाव या प्रतिक्रिया देने की बजाय रात को 9 बजे 9 मिनट तक टॉर्च जलाने की अपील करने में जुट गए हैं।

इस बीच आईटी सेल एक मैसेज प्रसारित कर दिया है। जिसमें हालात को बाकी देशों की तुलना में बेहतर दिखाते हुए इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जा रहा है।

5 की रात को लोग टार्च और दिए के साथ इस बात का संदेश ज़्यादा शिद्दत के साथ देंगे कि वे हर बात पर मोदी के साथ हैं। ये मान रहे हैं कि लॉक डाउन के साथ कोरोना खत्म हो जाएगा। आज जब ये तमाम लोग रोशनी कर रहे हैं तो भारत में कोरोना के संक्रमण की रफ्तार रोज़ाना 500 से ज़्यादा हो चुकी है। ये कब गुणात्मक रूप से बढ़ जाये कोई नहीं जानता। लेकिन इन सबसे बेपरवाह बहुतरे जश्न के अंदाज़ में टॉर्च और दिए जलाने के लिए आतुर बैठे हैं।

ये बात भी गौर करने लायक है कि भाजपा ने इसे बड़ा इवेंट बनाने और उसे राजनीतिक रूप से कैश कराने की तैयारी शुरू कर दी है। जो लोग दिए जलाने की बात गर्वपूर्वक बयान कर रहे हैं उनमें अधिकांश वे लोग हैं, जिन्हें कोरोना की भयावहता का भान तक नहीं है। ये वो परिवार हैं, जिन तक कोरोना पंहुचा नहीं या जो विदेश से कोरोना लेकर आये और मोदी ने उन्हें घर तक जाने दिया।

सोचिये, इस पुरी कवायद में वो राज्य सरकारें कहाँ रह गयी, जिन्होंने हालात की गंभीरता को पहचाना और वक़्त रहते ठोस कदम उठाए। वो डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ कहाँ रह जाएंगे, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी खतरे में डालकर बिना मास्क और पीपीई के कोरोना का इलाज किया।

कोरोना से जंग में उन डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने रेनकोट और प्लास्टिक पहनकर लोगों का इलाज किया है। इनमे से कई अब खुद कोरोना की जद में आना शुरू हो चुके हैं। स्वास्थ्य के जानकार डॉक्टरों के सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम न होने को लेकर पहले ही चिंता जाहिर कर चुके हैं। इन सबके बाद भी वे सेवा के मोर्चे पर डटे हुए हैं।

पिछली बार जब तालियां और थालियां बजवाई गई थीं तो बहुत ने तालियां इसलिए बजाई क्योंकि वो कोरोना से लड़ने वाले को समर्थन देने के लिए बजाई गई थीं। लेकिन इस बार डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के समर्थन की बात गायब है।

इस कवायद में उन राज्य सरकारों की ईमानदार कोशिश का क्या होगा। जिन्होंने कोरोना को रोक दिया। केरल,झारखंड और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने कोरोना से निपटने के लिए बेहद शानदार काम किया है। इन दोनों सरकारों ने वक़्त रहते न केवल ठोस कदम उठाए, बल्कि लॉक डाउन के दौरान लोगों को कोई परेशानी न हो, इसका इंतज़ाम किया। जब व्यवहारिक समस्याएं सामने आईं तो इसका समाधान किया और ज़रूरत के हिसाब से रणनीतिक फेरबदल किये।

केरल देश के सर्वाधिक कोरोना पीड़ित राज्यों में है लेकिन उसने जिस तरह से काबू किया है, उसकी तुलना दुनिया के किसी भी उस देश से की जा सकती है, जिसने कोरोना पर अच्छे से नियंत्रण कर रखा हो। जिस दरम्यान अन्य राज्यों में कोरोना के मामले दोगुनी- तिगुनी रफ्तार से बढ़ रहे हैं। उस दौर में केरल ने इसके संक्रमण को नियंत्रित कर रखा है। 30 मार्च को केरल में कोरोना के 222 मामले थे। 5 अप्रैल को ये बढ़कर 295 तक ही पहुंची है।

देश का पहला मामला केरल में ही 30 जनवरी को ही आया, इससे पहले 26 जनवरी को वहां कंट्रोल रूम खुल चुका था। क्वारेन्टाइन से आइसोलेशन के लिए 18 समितियों का गठन कर दिया गया था। इस वक़्त केंद्र सरकार कोरोना से बेपरवाह अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत में गरीबों की बस्तियों के सामने दीवार उठवा रही थी।

संक्रमण को रोकने के लिए जब केरल ने व्यापक जांच शुरू की तो उसी दौरान 24 फरवरी को मोदी सरकार ने नमस्ते ट्रम्प का आयोजन किया। लेकिन इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने 10 दिन तक गोपनीय बैठकें करके 19 फरवरी को जनता को कोरोना की तैयारियों से अवगत कराते हुए सावधानी बरतने की अपील की। 5 मार्च से 16 मार्च तक भूपेश सरकार ने हेल्पलाइन शुरू कर दिया। विश्वविद्यालय बन्द कर दिए। डोंगरगढ़ मेला, गंगरेल के स्पोर्ट्स गेम बन्द करा दिए। एयरपोर्ट पर कोरोना की जांच शुरू करा दी। आइसोलेशन वार्ड और कोरेन्टीन वार्ड बनवा दिए। जिसका नतीजा है कि कुल कोरोना पीड़ितों की संख्या 10 से घटकर 3 रह गयी है।

जब छत्तीसगढ़ की सरकार ये काम कर रही थी तो भाजपा सिंधिया की मदद से मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराने की कवायद में लग गई और कमलनाथ को सरकार बचाने में उलझा दिया। अगर शिवराज सिंह की सरकार बनवाने की बजाय मध्यप्रदेश की ऊर्जा कोरोना से निपटने में लगी होती तो हालात दूसरे होते। सवाल है कि जिन 11 मरीज़ों की जान कोरोना से गई उन्हें वक़्त रहते पहचानकर इलाज दिया जाता तो क्या उनमे से कुछ को बचाया जा सकता था। क्योंकि केरल में 3 गुना ज्यादा मामला होने के बाद भी सरकार ने सही कदम उठाए जिससे अभी तक 2 लोगों की ही जान गयी है।

कोरोना के खतरे को केंद्र सरकार उस तरीके से भांप नहीं पाई जैसा कुछ राज्य सरकारों ने भांपते हुए कदम उठाए। लॉक डाउन ही मोदी सरकार का एकमात्र सही समय पर उठाया गया कदम था। अगर सरकार कोरोना के खतरे को भाँपती तो 17 मार्च को पीपीई के निर्यात पर रोक लगाने का ख्याल न आता। सबसे दुर्भाग्यजनक बात है कि जब चर्चाओं में ये वास्तविक मुद्दे उभरने लगे तो तब्लीगी जमात छा गया और पूरे देश का अनुसूचित जाति और जनजाति विहीन हिन्दू मध्यवर्ग पूरी मुस्लिम जमात से नफरत की खुलेआम नुमाइश पर उतर आया।

चर्चा स्वास्थ्य सुविधाओं से हटकर मुस्लिमो की होने लगी। पुराने वीडियो नए बनाकर पेश किए जाने लगे। जब देश मे कोरोना पीड़ितों की संख्या 500 थी तो पूरे देश मे जांच और सुरक्षा उपायों की कमी को लेकर चिंतित था। लेकिन आज जबकि रोज़ कोरोना से पीड़ितों की संख्या रोज़ाना 500 की रफ्तार से बढ़ते हुए 3000 तक पंहुच गई है कोई इस पर चर्चा नहीं कर रहा है। आरोप लगे कि नाकामी छिपाने के लिए ही चर्चा को मोडा गया है।

कोरोना आने वाले वक्त में क्या रुख अख्तियार करेगा कोई भी दावे से नहीं बता सकता। लेकिन आज कुछ राज्यो में इसकी रफ्तार सुकून देने वाली है तो राज्य सरकार की ईमानदार कोशिशो की वजह से। जिन्होंने अब तक किसी नुमाइश की अपील जनता से नहीं कि है।