हेमंत शर्मा, रायपुर- कोरोना महामारी संक्रमण के दौर में लोगों की दिनचर्या भले ही आम दिनों की तरह क्यों न हो गई हो, लेकिन इस आपदा से जेल प्रशासन अब भी उबर नहीं पाया है. छह महीने से ज्यादा का वक्त बीत गया, लेकिन रायपुर सेंट्रल जेल के कैदी अब अपने परिजनों को गले लगाने बेताब हैं. कैदियों से मुलाकातियों पर अब भी प्रतिबंध लगा हुआ है. कोरोना संक्रमण का फैलाव रोकने जब लाॅकडाउन लागू किया गया, तब से जेलों में कैदियों से मुलाकात करने वालों पर प्रतिबंध लगाया गया था, जो अब तक नहीं हटाया जा सका है.
जेल में बंद कैदियों को अब उम्मीद है कि दीपावली के इस बड़े त्यौहार में वो उनसे मिल पायेंगे, हालांकि प्रतिबंध हटाने को लेकर जेल प्रशासन अब तक निर्णय नहीं ले पाया है.लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में जेल डीआईजी के के गुप्ता ने कहा कि प्रतिबंध मार्च से ही लागू है और परिजनों की कैदियों से मुलाकात बंद है. पैरोल और जमानत पर छूटे लोगों के लिए इस महीने के अंत में हाईकोर्ट निर्णय लेगा, उसके बाद हम इसकी समीक्षा करेंगे. इसके बाद जो भी सुरक्षात्मक उपाय होंगे, उसके आधार पर मुलाकात के कार्यक्रम तय किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि जेल में अभी प्रेजेंट कॉलिंग सिस्टम लगा है जिसके माध्यम से कैदी अपने परिजनों या अधिवक्ता से बात कर सकते है.
इधर मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जेल में बंद कैदियों की लंबे समय से अपने परिजनों से मुलाकात नहीं करने के कारण उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा होगा. शहर की मनोवैज्ञानिक डाॅ.शिम्मी श्रीवास्तव कहती हैं कि कोरोना की वजह से
सभी पर प्रभाव पड़ा है. मार्च से जो गतिविधियां हो रही है, वह नकारात्मक ही ज्यादा साबित हो रही है. इसका प्रभाव स्वास्थ्य पर भी पड़ा है. कैदियों को उनके परिजनों से लंबे अरसे तक मिलने से प्रतिबंध लगाने से निश्चित तौर पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ रहा है. खासतौर पर यह त्यौहार का वक्त है. ऐसे दौर में यदि परिजनों से मिलने न दिया जाए, तो मानसिक उत्तेजना पर इसका असर पड़ सकता है. डाॅ.श्रीवास्तव ने कहा कि लाॅकडाउन खुलने के साथ ही यदि यह जेलों से भी प्रतिबंध हटा दिया जाता, तो हालात ऐसे नहीं होते. सामान्य व्यक्ति जब माॅल जाकर शाॅपिंग कर रहा है, तो मुझे नहीं लगता कि कैदियों को परिजनों से मिलने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.