रायपुर- राज्य में ऐसा पहली बार हुआ है कि उद्योगों ने बिजली बिल के भुगतान से इंकार कर दिया है. मार्च महीने का भुगतान 16 अप्रैल तक किया जाना था, लेकिन उद्योगों ने एक राय बनाते हुए बिजली का बिल नहीं पटाया. दरअसल उद्योगपति आर्थिक तंगी को इसकी बड़ी वजह बता रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना वायरस एक संकट बनकर आया है. लाॅकडाउन होने की वजह से व्यापार बीते एक महीने से पूरी तरह ठप्प है. उत्पादन बंद है. ऐसे में बिजली बिल का भुगतान किया जाना संभव नहीं है. बिजली कंपनी की रिवेन्यू का बड़ा हिस्सा उद्योगों से आता है. ऐसे में बिजली बिल नहीं पटाने के वजह से इस पर बुरा असर पड़ा है. दोनों पक्षों को हो रहे इस नुकसान के बीच माना जा रहा है कि सरकार इस पर जल्द कोई बड़ा निर्णय लेगी.
छत्तीसगढ मिनी स्टील प्लॉांट एसोसिएशन, उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, छत्तीसगढ़ स्पंज आयरन मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन समेत तमाम औद्योगिक संगठनों ने एक राय बनाते हुए अप्रैल महीने में दिए जाने वाले बिजली बिल को पटाने से मना कर दिया है. माना जा रहा है कि इससे बिजली कंपनी को मिलने वाला करीब चार सौ करोड़ का राजस्व प्रभावित हुआ है. उद्योगों का कहना है कि कोरोना की वजह से लाॅकडाउन घोषित होने के बाद सरकार ने फैक्टरियों को बंद करने का आदेश दिया था. 23 मार्च को यह आदेश जारी किया गया. इसके तुरंत बाद ही फैक्टरियों को बंद कर दिया गया. लेकिन बिजली कंपनी ने 31 मार्च तक का बिल जनरेट किया है. छत्तीसगढ़ मिनी स्टील प्लांट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष पंकज अग्रवाल ने कहा कि-
हमारी सरकार से बातचीत हुई थी. हमने अपनी डिमांड रख दी थी. हम हर दिन इसे फालो कर रहे हैं, लेकिन आज तक कोई सकारात्मक जवाब सामने नहीं आया है. 23 मार्च को आदेश मिलने के बाद से ही हमने फैक्टरी बंद कर दिया था, फिर भी बिजली बिल 31 मार्च तक का जनरेट किया गया है. जब हमने सरकार का ही आदेश मानकर फैक्टरी बंद किया है, तो फिर 31 मार्च तक बिल जनरेट करना उचित नहीं है. हमने तीन प्रमुख मांगे रखी है, जिनमें मिनिमम डिमांड चार्जेस, 30 मई तक बिजली बिल के भुगतान की अनुमति देने और लोड फैक्टर की वास्तिक गणना किया जाना शामिल है.
दरअसल उद्योगपतियों को इस बात पर ही आपत्ति है कि मार्च महीने में 9 दिन प्लांट बंद रहे, लेकिन इस दौरान भी मिनिमम डिमांड चार्ज और लोड फैक्टर बिल में जोड़ा गया. इससे उद्योग मुश्किल में हैं कि जिस वक्त उत्पादन प्रभावित हुआ. काम बंद रहा, उस वक्त का बिल भी आखिर क्यूं जोड़ा जा रहा है. जबकि सरकार के आदेश के बाद ही यह किया गया था. उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विन गर्ग ने कहा कि-
हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. एक महीने से व्यापार बंद है. पैसे की आवक नहीं है. मजदूरों को भी पैसा देना पड़ा रहा है. बिजली का टैरिफ बहुत ज्यादा होता है. इसकी डेट को आगे बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे. सरकार को हमने अपनी डिमांड भेजी है. सरकार ने निम्न ताप उद्योगों के लिए 30 अप्रैल तक छूट दी है, लेकिन उच्च ताप उद्योगों को राहत नहीं दी है. बड़े उद्योगों में राॅ मटेरियल बिजली होता है. बिजली कंपनी को मिलने वाले राजस्व का करीब 70 फीसदी हिस्सा बड़े उद्योगों से मिलता है, जबकि छोटे उद्योग से महज 25 से 30 फीसदी ही मिल पाता है. मुख्यमंत्री ने हमे वीडियो कांफ्रेसिंग के दौरान आश्वासन दिया था कि हमारी मांगों पर उचित निर्णय लिया जाएगा.
इधर छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी के एमडी मो.अब्दुल कैसर हक ने कहा कि-
फिलहाल राज्य सरकार ने किसी तरह की छूट दिए जाने संबंधी कोई दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं. मार्च महीने का बिल हमने उद्योगों को भेज दिया है. सरकार जैसा निर्णय लेगी, आगे की कार्यवाही की जाएगी.