वैभव बेमेतरिहा। ये कहानी उस छत्तीसगढ़ की है जिसने एक बार फिर देश के साथ दुनिया को एहसास करा दिया है कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी में बहुत जान है. जी हाँ यहाँ की आबो-हवा से लेकर शामो-सुबह तक सब में बहुत जान है. और यही वजह है कि एक तरफ जहाँ दुनिया भर में कोरोना से जाने जा रही है, वहाँ छत्तीसगढ़ में लोग कोरोना से जंग लड़कर, जीतकर घर लौट रहे हैं. ऐसा नहीं कि छत्तीसगढ़ में कोरोना का असर नहीं हुआ. असर तो हुआ, लेकिन सच में उतना नहीं, जितना देश के अन्य राज्यों में दिख रहा है.
महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो कोरोना कहर की तरह है. और तो और बिल्कुल पड़ोस का मध्यप्रदेश भी कोरोना से कराहने लगा. लेकिन छत्तीसगढ़ में इस तरह के हालात नहीं. ऐसे हालात छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं बने ? जबकि मध्यप्रदेश से पहले कोरोना ने छत्तीसगढ़ में दस्तक दे दी थी. ऐसा इसलिए हुआ कि क्योंकि दूरदृष्टि थी. एक मुखिया की दूरदृष्टि. एक ऐसी दूरदृष्टि जो भविष्य के परिणाम और कोरोना से होने वाले नुकसान को प्रधानमंत्री से पहले ही भाँप चुकी थी. जी हाँ नरेन्द्र मोदी से पहले. पीएम मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील की, 24 मार्च की आधी रात से उन्होंने लॉकडाउन का ऐलान किया था. लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 19 मार्च से राज्यों की सीमाओं को बंद करने के आदेश दे दिए थे. 19 मार्च को ही छत्तीसगढ़ में अंतर्राज्यीय बस सेवाओं को बंद कर दिया गया. भीड़-भाड़ वाले स्थानों को बंद कर दिया गया. धीरे-धीरे फिर बाजार, दुकान, मॉल, चौपाटी बंद करते गए. यह सबकुछ जनता कर्फ्यू से पहले छत्तीसगढ़ में हो गया था.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कोरोना के गंभीर परिणाम को भली-भाँति समझ चुके थे. वे जानते थे कि समय रहते अगर कड़े फैसले नहीं लिए गए तो घातक परिणाम सामने होंगे. लिहाजा उन्होंने स्कूल-कॉलेजों के साथ सभी तरह के शैक्षेणिक संस्थानों को बंद करने के साथ शिक्षकों को छुट्टी भी दी. कर्मचारियों के लिए बायोमैट्रिक्स को बंद कर दिया गया. आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी तरह की सेवाओं को भी बंद कर दिया गया. देश में लॉकडाउन होने के साथ ही सभी तरह की सरकारी संस्थाओं को बंद कर दिया गया. आदेशित किया गया कि कर्मचारी घर से काम करेंगे.
इन सबके बीच मेडिकल सुविधाओं को दुरस्त रखना जरूरी था. इस दिशा में मुख्यमंत्री लगातार अधिकारियों से चर्चा करते रहे. एम्स से लेकर जगदलपुर, अंबिकापुर, बिलासपुर बड़े जैसे जिलों को अलर्ट किया गया. साथ ही तैयार किया सभी जिलों में कोरोना पीड़ितों या उनके संपर्क में आने वाले लोगों के लिए आइसोलेशन वार्ड, क्वाराइंटाइन सेंटर. ये तमाम तैयारियाँ उसी स्थिति में छत्तीसगढ़ में पूरी कर ली गई थी, जब यहाँ पर मरीजों की संख्या महज दो पहुँची थी.
भूपेश बघेल के लिए कोरोना पीड़ितों के लिए इलाज की बेहतर व्यवस्था के साथ चुनौती लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के लोगों और मजदूरों को लेकर भी थी. चुनौतियाँ छत्तीसगढ़ मेें फंसे हुए मजदूरों और अन्य लोगों को लेकर भी थी. चुनौतियाँ उन तबकों को लेकर भी जो दिहाड़ी मजदूर हैं. इन चुनौतियों से निपटने में मुख्यमंत्री ने बहुत संयम और गंभीरता के साथ काम लिया. उन्होंने मंत्रिमंडल के सदस्यों और प्रशासनिक अधिकारियों की बैठकें कर जिम्मेदारियाँ सौंपी. कई नोडल अधिकारी बनाए गए. खुद मुख्यमंत्री वीडियो संदेशों के साथ सामने आए. सोशल मीडिया पर उन्होंने खुद को और ज्यादा एक्टिव किया. उन्होंने लोगों को जागरूक करने के साथ मदद पहुँचाने के लिए खुद ही मोर्चा संभाल लिया.
दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को मुखिया का संदेश मिलते ही यह भरोसा हुआ दिक्कतें दूर हो जाएंगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि जो लोग जहाँ फंसे हुए वे कृपया वहीं रहे. फिलहाल लौटकर अभी छत्तीसगढ़ न आए. उनके लिए खाने-पीने से लेकर पैसे तक की व्यवस्था राज्य सरकार कर रही है. चिंता करने या डरने की जरूरत नहीं है. संकट के समय हम सब साथ खड़े हैं. मुख्यमंत्री के वीडियों संदेशों का बड़ा असर हुआ. उनकी बातें सोशल मीडिया के माध्यम दूर-दूर रहने वाले लोगों तक पहुँची. और वीडियों संदेशों के साथ मदद भी लोगों तक पहुँचती गई.
बतौर मुखिया भूपेश बघेल एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह कोरोना संकट से जुझने में लग गए. वे अब सड़क पर निकलकर व्यवस्था को खुद देखने लगे थे. कभी सब्जी बाजार जाकर ग्राहकों से लेकर विक्रेताओं से चर्चा कर समस्याओं को सुनना, उसका तत्काल निवारण करना, कभी छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जगहों में रुके मजदूरों के बीच जाकर खान-पान से लेकर अन्य सुविधाओं के बारे में पूछना. यही नहीं बुजुर्गों और दिव्यांग बच्चों के बीच जाकर उन्हें उत्साहित भी करना. मुख्यमंत्री के इन प्रयासों से उन सभी कर्मचारियों और समाजसेवियों को बल मिला जो संकट काल में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे हैं.
वैसे किसी भी आपदा से निपटने में आर्थिक मदद सबसे जरूरी है. इस जरूरी के लिए तत्काल मुख्यमंत्री सहायता कोष के साथ मदद मांगी गई. मुख्यमंत्री ने खुद समाज के सभी वर्गों से मदद की अपील की. इस अपील का सकारात्मक असर दिखा. सत्ताधारी दल के मंत्री, विधायकों के साथ विपक्ष के भी सदस्य दान देने आगे आए. साथ ही औद्योगिक घरानों, व्यापारी वर्ग के साथ कर्मचारी, शिक्षक, मीडिया, किसान जैसे वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में मदद करने आगे आए. आर्थिक मदद देने अनेक स्वयं सेवी समूहों के साथ धार्मिक ट्रस्ट वालों ने भी हाथ आगे बढ़ाया.
यही सबसे जरूरी है कि सामूहिकता के साथ किसी भी विपदा, आपदा, संकट से लड़कर जीता जा सकता है. छत्तीसगढ़ के लोगों ने इसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हर मोर्चे पर साथ दिया. आज इसी का परिणाम है कि प्रदेश में कोरोना का संकट अन्य राज्यों की तुलना में नहीं के बराबर है. कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या भी बेहद कम है. आंकड़ा दहाई तक भी नहीं पहुँचा है. 9 में से 4 लोग ठीक होकर वापस घर लौट चुके हैं. किसी भी मरीज की स्थिति गंभीर नहीं है. कहीं भी विवाद की स्थिति नहीं है. सारे कार्य शांति-पूर्ण तरीके प्रदेश में इस विकट स्थिति में संचालित है. सोचिए समय रहते अगर मुख्यमंत्री ने कड़े कदम नहीं उठाए होते तो यहाँ भी हालात दूसरे राज्यों की तरह होता.
ये सब तारीफ की बात नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ में कोरोना के संकट काल में नज़र आने वाली वह साफ-साफ स्थिति है जिसे अन्य राज्यों से तुलना करेंगे तो आप पाएंगे कि वाकई हमारे प्रदेश में सुकून भरी स्थिति है. लेकिन इस सुकून में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का अपना जुनून भी है. वह जुझारूपन है जिसे उन्होंने बतौर मुखिया बखूबी कोरोना के मोर्चे पर दिखाया है. वास्तव में विपरीत परिस्थितियाँ ही किसी को परखने के लिए सबसे अच्छा समय होता है. और इस घड़ी में भूपेश बघेल छत्तीसगढ़वासियों के विश्वास पर बेहद खरे उतरे हैं. यह बातें जब स्वयं से भी पूछेंगे तो कहेंगे हाँ ये सच है ! छत्तीसगढ़ में कोरोना को लेकर दूसरे राज्यों की तरह न डर है, न खौफ है और न चिंताजनक बात. यही है प्रदेशवासियों का मुख्यमंत्री के प्रति विश्वास. और प्रदेशवासियों से ही है भूपेश बघेल का आत्मबल, आत्मविश्वास.