अमर मंडल, पखांजूर। 60 साल पहले बांग्लादेश विभाजन के बाद आए बंगबन्धुओं को परलकोट में अलग-अलग 133 गांवों में बसाया गया था. बंगबन्धुओं के रहने और खाने के लिए जमीन देने के साथ रोजगार के लिए रुई से धागा बनाने का कारखाना भी स्थापित किया गया था. इस कारखाने से गांव की महिलाओं और पुरुषों को रोजी-रोटी मिलती थी. लेकिन कालांतर में ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से कबाड़ में तब्दील इस कारखाने को कोरोना काल में फिर से नया जीवन देने की आवाज उठ रही है, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके.

जानकारी के अनुसार, DNK प्रोजेक्ट के तहत केंद्र सरकार ने पखांजूर मिसफार्म (भार्टिकल्चर क्राफ्ट) में रुई से धागा बनाने वाले 118 जापानी मशीनों  वाले कारखाना की स्थापना की गई थी. इससे मिसफार्म के नजदीकी गांवों के महिला एवं पुरुषों को रोजगार का अवसर मिला. गांव की महिलाओं ने बताया कि उस समय परलकोट क्षेत्र में रोजगार का कोई साधन उपलब्ध नहीं था. क्षेत्र के लोगो के पास पारिवारिक खर्च उठाने का कोई साधन नहीं था. ऐसे में धागा बनने का कारखाना ग्रामीणों के लिए वरदान सावित हुआ.

गांव की महिला उषा दास ने बताया कि एक बंडल धागा बनाने पर 25 पैसे मिला करते थे, जिससे महीनेभर 250 से 300 रुपए की कमाई हो जाती थी. इससे उस समय महीना भर का घर खर्च चल जाता था. सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक कारखाना में मजदूर बड़े ही उत्साह के साथ रुई से धागा बनाने का काम करता था. पहले तो रुई को अलग-अलग मशीनों के जरिए धुनाई कर धागा बनाने की मशीन से धागा बनाया जाता था, फिर उसी धागा को बंडलों में पैक कर बाहर भेजा जाता था.

आज कोरोना काल में रोजगार की समस्या से ग्रामीणों महिलाने बताया हैं कि धागा बनाने की कारखाना आज चालू होता तो सैकड़ों ग्रामीणों को रोजी-रोटी के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता. महिलाओं ने बताया कि 30 साल पहले कारखाना के बंद होने से कारखाने में नियमित रूप से रोजी-रोटी कमाने वाले मजदूर महीनों इंतजार के बाद रोजी-रोटी के लिए खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हो गए. महिलाओं ने सरकार से मांग किया है कि ऐसा ही धागा बनाने का कारखाना खोला जाए, जिससे मिसफार्म क्षेत्र के मजदूरों को फिर से मजदूरी मिले.

बंद कारखाना के बारे में मिसफार्म के माली तुलाराम बताते हैं कि वे 34 सालों से मिसफार्म में काम कर रहे हैं. वे बताते हैं कि लगभग 30 साल पहले ये कारखाना केंद्र सरकार द्वारा संचालित किया जाता था. गांव के सैकड़ों महिला व पुरुष धागा बनाने का काम करते थे. रुई बाहर से मंगवाया जाता था, और यहां अलग-अलग विधि से रुई को तैयार कर धागा बनाया जाता था. कारखाना बंद होने के बाद से मशीने जंग खा रही हैं, कोई भी देखने तक नहीं आया. मिसफार्म के कर्मचारियों ने कारखाने में मशीनों को बाँधकर रखा हुआ है. बाहर रखा होता तो अब तक मशीनों पर चोरों ने हाथ साफ कर दिया होता.