बिलासपुर– भोरमदेव वन्यप्राणी अभयारण्य को टाईगर रिजर्व घोषित करने के लिए जनहित दायर की गई है. इस याचिका के संबंध में आज छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा न्यायामूर्ति पीपी साहू की पीठ ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक, सचिव भारत सरकार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा सदस्य सचिव, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को नोटिस जारी करके 6 सप्ताह में जवाब मांगा है.

NTCA द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व घोषित करने की 28 जुलाई 2014 को की गई अनुशंसा तथा राज्य वन्यजीव संरक्षण बोर्ड की 14 नवम्बर 2017 की सहमति के बावजूद राज्य सरकार द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व को घोषित करने के प्रस्ताव को 9 अप्रैल 2018 को रद्द कर देने के विरूद्ध रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने जनहित याचिका दायर दायर की है. उन्होंने बताया है कि वन्यजीव प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 38V के अनुसार NTCA की अनुशंसा मानने के लिए राज्य बाध्यकारी है.

भोरमदेव अभ्यारण्य का क्षेत्र राज्य विभाजन के पूर्व कान्हा नेशनल पार्क का महत्वपूर्ण बफर जोन होने के कारण पूर्णतः सुरक्षित था, बाघों की आवजाही इस क्षेत्र में तभी से होती रही है। यह क्षेत्र इन्द्रावती टाईगर रिजर्व, महाराष्ट्र के नवेगांव-नागझीरा और तडोबा-अंधेरी टाईगर रिजर्व तथा कान्हा से अचानक मार्ग टाइगर रिजर्व आने जाने का बाघों का महत्वपूर्ण कोरिडोर है. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद इसे वर्ष 2001 में भोरमदेव अभ्यारण्य बनाया गया. वन्यजीवों की आवाजाही को देखते हुए वर्ष 2007 में इसका क्षेत्रफल बढ़ा दिया गया.

सिंघवी ने बताया कि राज्य शासन द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिवर्ज के प्रस्ताव को रद्द करने के कारण उन्होंने 1 जुन 2018 को NTCA को आवश्यक कार्यवाही करने के लिए पत्र लिखा था, जिसके जवाब में NTCA ने 7 जून 2018 को मुख्य वन्यजीव संरक्षक छत्तीसगढ को विधि अनुसार कार्यवाही कर तत्काल ही भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व घोषित करने के लिए पत्र लिखा पर आज तक कोई कार्यवाही न करने के कारण जनहित याचिका दायर की गई है.

टाईगर रिजर्व के फायदे

बाघों सहित अन्य वन्यजीवों एवं वनों के सरंक्षण के अलावा विस्थापित किये जाने वाले ग्रामीणों को 5 एकड़ कृषि भूमि, 50 हजार नगद इन्सेन्टिव, 1 मकान, आधारभूत सुविधाऐं जैसे मार्ग, शाला, बिजली-सिंचाई साधन, शौचालय, पेयजल व्यवस्था, सामुदायिक भवन आदि प्रदान की जाती है. शासन, जंगल के प्रत्येक गांव में यह सुविधा नहीं पहुंचा पाता है. अतः विस्थापन बाद ग्रामीणों का जीवन स्तर बहुत उठ जाता है तथा उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करते है. अगर ग्रामीण यह पैकेज नहीं चाहता हो तो उसे रूपये 10 लाख विस्थापन का मुआवजा दिया जाता है.