मुंबई. बंबई उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक मामले में 19 वर्षीय एक युवक की दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया और उसे बरी करते हुए कहा कि सिर्फ पीड़िता के बयान को ही हमेशा पर्याप्त साक्ष्य नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की एकल पीठ ने कहा कि इस तरह के मामलों में पीड़िता के बयान को अवश्य ही ठोस और विश्वसनीय होना चाहिए।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि और यदि इस तरह का बयान भरोसा नहीं दिलाता है,तब व्यक्ति संदेह का लाभ दिए जाने का हकदार है। उन्होंने पिछले महीने इस मामले में अपना फैसला सुनाया था लेकिन उनके आदेश का ब्यौरा इस हफ्ते की शुरूआत में सार्वजनिक किया गया। महाराष्ट्र के ठाणे जिला स्थित एक गांव के निवासी सुनिल शेलके की अपील पर वह सुनवाई कर रही थी।

गौरतलब है कि शेलके ने एक स्थानीय अदालत के 2014 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उन्हें बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था और सात साल कैद की सजा सुनाई गई थी। शेलके ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया था कि किसी कारणवश उन दोनों (शेलके और पीड़िता) की शादी की योजना सफल नहीं हो सकी, इसलिए पीड़िता और उसके परिवार के लोगों ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि पीडिता कथित बलात्कार की घटना के दिन क्या हुआ था उस बारे मे ठोस जानकारी देने में नाकाम रही है और मेडिकल रिपोर्ट में भी उसे किसी तरह की चोट पहुंचने का खुलासा नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि कानूनन, पीड़िता के एकमात्र बयान के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराने में कोई बाधा नहीं है लेकिन यह देखे जाने की जरूरत है कि क्या पीड़िता का बयान भरोसे लायक है।