दिल्ली. सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता से इनकार नहीं किया जा सकता. इससे कई मामलों में लोगों तक राहत पहुंची है लेकिन क्या आपने कभी किसी आपराधिक केस में व्हाट्सएप के माध्यम से मुकदमा चलाते सुना है. ये सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा. पर यह सत्य है. ऐसा ही एक मामला सु्प्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जिस पर हैरानी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत की किसी अदालत में इस तरह के मजाक की कैसे अनुमति दी गई.
मामला झारखंड के पूर्व मंत्री और उनकी विधायक पत्नी से जुड़ा हुआ है. यह वाकया हजारीबाग की एक अदालत में देखने को मिला, जहां न्यायाधीश ने व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये आरोप तय करने का आदेश देकर इन आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा. झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपी हैं. उन्हें शीर्ष अदालत ने पिछले साल जमानत दी थी. उसने यह शर्त लगाई थी कि वे भोपाल में रहेंगे और अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने के अतिरिक्त झारखंड में प्रवेश नहीं करेंगे. हालांकि, आरोपियों ने अब शीर्ष अदालत से कहा है कि आपत्ति जताने के बावजूद निचली अदालत के न्यायाधीश ने 19 अप्रैल को व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये उनके खिलाफ आरोप तय किया.
सु्प्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल एन राव की पीठ ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए कहा, झारखंड में क्या हो रहा है. इस प्रक्रिया की अनुमति नहीं दी जा सकती है और हम न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं दे सकते.