मार्कण्डेय पाण्डेय, लखनऊ: सियासत और अपराध की दुनिया का घालमेल पिछले चार दशकों से हम देखते आ रहे हैं। जिसने एकतरफ लोकतंत्र के लिए चुनौती पेश की ही है तो दूसरी तरफ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के दावों को खोखला साबित किया है। जिससे सुप्रीम कोर्ट से लेकर संवैधानिक संस्थाओं के माथे पर भी सिकन ला दिया है। आइए राजनीति में अपराधीकरण पर ही एक नजर डालते हैं।

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राजनीति शास्त्र के अनुसार राजनीति के अपराधीकरण को उस स्थिति के रुप में परिभाषित किया जाता है, जब अपराधी सरकार में बने रहने के लिए राजनीति में भाग लेते हैं। अर्थात चुनाव लड़ते हैं। संसद से लेकर राज्य विधानसभाओं के लिए चुने जाते हैं। यह खतरा लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के लिए चुनौती बन चुका है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म के आंकड़ों पर गौर करें तो अपराधियों के सांसद चुने जाने की प्रक्रिया साल 2004 के चुनावों के बाद तेजी से बढ़ी है। 2004 के लोकसभा में 24 फीसद सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज थे जो साल 2019 में बढक़र 43 फीसद हो गए।
यूपी की राजनीति में हिस्सेदारी
2019 के लोकसभा चुनावों में 159 सांसदों ने खुद पर आपराधिक मामलों की घोषणा की थी। जिन पर बलात्कार, अपहरण, हत्या, हत्या का प्रयास, महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज थे। उत्तर प्रदेश देश की आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य है। देश की कुल आबादी में से उत्तर प्रदेश का हिस्सा 17.35 है जबकि क्षेत्रफल 7.33 फीसद है। लोक सभा में उत्तर प्रदेष के सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जहां कुछ 80 सीटें हैं जो लोकसभा की कुल सीटों में से 15 फीसद से अधिक है।
पिछले तीन चुनावों अपराध का हाल
पिछले तीन विधानसभा चुनावों 2007, 2012, 2017 में एडीआर के आंकड़ों के अनुसार चुनाव लड़ रहे 18170 उम्मीदवारों में से 1237 उम्मीदवार ऐसे थे जिन पर हत्या, हत्या के प्रयास, लोकसेवक पर हमला, डकैती जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे। साल 2007 में सत्ता में रही बहुजन समाज पार्टी ने इन 1237 उम्मीदवारों में से अकेले 240 उम्मीदवार उतारे थे। 2012 में सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी ने 214 आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवार उतारे। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 188 उम्मीदवार आपराधिक मामलों में लिप्त उतारे थे। कांग्रेस पार्टी ने 109 उम्मीदवार उतारे थे।
2007 के विधान सभा चुनावों में
6114 आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों में से बसपा 72, सपा 55, भाजपा 42, कांग्रेस 40, रालोद 22 अन्य 72 उम्मीदवार उतारे।
2012 विधान सभा चुनावों में
6840 में से बसपा 53, सपा 82, भाजपा 50, कांग्रेस 45, रालोद 6 अन्य 240 उम्मीदवार आपराधिक छवि के रहे हैं।
2017 के विधान सभा चुनावों में
5253 उम्मीदवारों में से बसपा 122, सपा 88, भाजपा 100, कांग्रेस 25, रालोद 48 अन्य 113 उम्मीदवार उतारे हैं।
जेल में रहकर जीते चुनाव
मउ से बसपा विधायक रहे मुख्तार अंसारी ्रपर 2007, 2012 और 2017 के चुनावों में 13, 15 और 16 आपराधिक मामलों का आरोप लगा था। इसी प्रकार दो बार भाजपा विधायक रहे उपेंद्र तिवारी पर 6 आपराधिक मामले दर्ज थे। कहा जाता है कि यूपी की राजनीति में बाहुबलियों को सत्ता में भागीदार बनाने की शुरुआत पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री रहे बाहुबलि कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी ने किया। जेल में रहकर चुनाव जीतना, गैंगवार और बाहुबलि शब्द भी सबसे पहले हरिशंकर तिवारी के लिए ही प्रयोग किया गया था। राजनीति के अपराधीकरण का सिलसिला बाद के सालों में अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, विजय मिश्रा, धनंजय सिंह, सोनू सिंह और विनीत सिंह जैसे कई हिस्ट्रीशीटर माफियाओं से गुजरता हुआ आज भी कमोबेश फलफूल रहा है।
एक माफिया चार सीटों को प्रभावित करता है
उत्तर प्रदेश के लोकसभा सीटों की बात करें तो यूपी में सक्रिय प्रत्येक माफिया अपनी लोकसभा और आसपास की एक से लेकर चार लोकसभाओं को प्रभावित करता रहा है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म की बात करें तो साल 2014 में चुनकर आए प्रत्येक तीन में से एक सांसद पर आपराधिक मामला दर्ज था। साल 2018 में केंद्र सरकार ने एक सवाल के जबाव में बताया कि देशभर में चुने हुए सांसद और विधायकों में से कुल 1765 पर 3816 मामले दर्ज हैं जिनमें उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक योगदान है।

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गाजीपुर जिले का गैंगवार
गाजीपुर के गैंगवार के परिणाम रहे माफिया सरगना मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह। मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी पहले से राजनीति में थे, इसलिए मुख्तार के लिए राह आसान था। जबकि बृजेश सिंह ने अपने बड़े भाई उदय नाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह को राजनीति में उतारा। पहले चुलबुल सिंह विधान परिषद के सदस्य रहे उसके बाद उनके बेटे और बृजेश सिंह का भतीजा सुशील सिंह विधायक चुने गए। बृजेश सिंह भी निर्वाचित हो गए। पूर्वांचल में अपराधियों के सियासत में प्रवेश की शुरुआत इंदिरा गंाधी का भी नाम लिया जाता है। उन्होंने सबसे पहले गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी से संपर्क साधा तो बिहार में सीवान गोपालगंज इलाके में काली पाण्डेय भी इंदिरा गांधी के संपर्क में रहे। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने माफियाओं की ताकत को पहचानते हुए इसे संस्थागत रुप देना शुरु किया।

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पूर्वांचल में 250 से अधिक गैंग
पूर्वांचल में अब करीब 250 के आसपास गैंगेस्टर बचे हैं। इनमें से कुछ तो राजनीति में आ चुके हैं और जो नहीं आ पाएं हैं वह इसके जुगाड़ में लगे हैं। पांच हजार करोड़ से अधिक संपत्ति रखने वाले माफियाओं में 5-7 नाम हैं। जबकि पांच सौ करोड़ से अधिक संपत्ति के मालिक करीब 50 माफिया है, जो इनसे कम संपत्ति रखे हैं वह भी इस कोशिश में हैं कि उनकी बराबरी कर सकें।

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