मनीष सोनी, अंबिकापुर। सरगुजा की जानी-मानी समाज सेविका और स्कॉलर पिछले सात साल से सरकारी विभाग की लापरवाही के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं. दरअसल, वंदना दत्ता आदिम जनजाति पहाड़ी कोरबा पर दक्षिण मध्य संस्कृति केंद्र नागपुर द्वारा 2010 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा संरक्षित जनजाति सरगुजा जिले के पहाड़ी कोरवा  पर शोध प्रलेखन के लिए अनुबंधित किया गया था. लेकिन जब सालों की मेहनत के बाद इस शोध को वंदना दत्ता ने पूरा किया तो उसे छाप नहीं रहा है.

वंदना दत्ता का कहना है कि शोध का ये काम काफी मुश्किल था. सैकड़ो फीड ऊंचे पहाड़ों में पहाड़ी कोरवा रहते हैं. उन्हें शोध करने के लिए बार-बार पैदल ऊपर चढ़ना पड़ता था. कई साल की  लगातार और कठिन मेहनत के बाद उन्होंने अपना काम पूरा करके सभी आलेख और सम्बंधित दस्तावेज भारत सरकार  के सम्बंधित कार्यालय को भेज दिया गया। अनुबंध के मुताबिक़ शोध कार्य के लिए तय राशि में से 11 हज़ार 750 रु का चेक भी इन्हे प्राप्त हुआ और लगभग इतनी राशि किताब के प्रकाशन के बाद विभाग को प्रदान करनी थी।

 

लगभग 2 वर्ष बीत जाने के बाद वंदना दत्ता ने अपने शोध के किताब के प्रकाशन के बारे में जानना चाहा तो मध्य भारत क्षेत्र संस्कृति केंद्र नागपुर के पास इसकी कोई जानकारी नहीं थी. इन्हें जब लगा कि इनका काम घोर सरकारी तंत्र की भेंट चढ़ गया है तो इन्होंने विभाग से पत्राचार करना शुरु किया. विभाग से लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को इन्होंने चिट्ठी लिखा तो उन्हें काम के बदले बकाया शेष राशि को चेक से भेज दिया गया. लेकिन वंदना दत्ता ने चेक को यह कहकर  वापस कर दिया कि इन्होने पैसों के लिए काम नहीं किया था.

इसके बाद पिछले साल अक्टूबर में फिर से पीएमओ चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी के बाद संस्कृति केंद्र नागपुर से जवाब आया कि ” सरगुजा के पहाड़ी कोरवा विनिबंध के सबंध में निवेदन किया गया है।  किसी कारणवश आपका विनिबंध प्रकाशित नहीं हो पाया जिसका हमे ख़ेद है ,और चूँकि इस विषय को काफी देर हो चुका है इसलिए आपका विनिबंध विशेषज्ञों की समिति  के पास समीक्षा के लिए भेजा जा रहा है , और उचित निर्णय होने पर आपको सूचित किया जायेगा।

 

लेकिन इतना कहकर विभाग ने एक बार फिर अपना पल्ला झाड़ लिया. जब वंदना दत्ता को समझ में आया कि ये भी समय टालने की एक चाल थी तो उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत विशेषज्ञों की समिति से सारी जानकारियां मांगी लेकिन तीन महीने बाद तक उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली है.

वंदना दत्ता का कहना है कि ये लड़ाई उन्होंने अपने हक के लिए लड़ी है. अब वे कुछ और दिन इंतज़ार करेंगी नहीं तो विभाग के खिलाफ कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगी.