नई दिल्ली- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के जवान तभी जंगलों के भीतर सर्चिंग पर जाएंगे, जब राज्य पुलिस का एक तिहाई बल फोर्स के साथ होगा। सुकमा में एक महीने के अंतराल में हुए दो माओवादी हमले में 37 जवानों की शहादत के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय लगातार रिव्यू में जुटा है।  8 मई को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में देश के 10 नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और सुरक्षा बलों के आला अधिकारियों की हुई बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। राजनाथ सिंह ने माओवाद ग्रस्त इलाकों में अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस के बीच समन्वय को लेकर चिंता भी जाहिर की थी।

 

इधर सीआरपीएफ के आला अधिकारियों का कहना है कि देश के 10 नक्सल प्रभावित राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों में सीआरपीएफ प्राइमरी फोर्स बन गया है। इस तथ्य के बावजूद कि सीआऱपीएफ के जवान बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों की भौगोलिक परिस्थितियों, संस्कृति और स्थानीय जनजातीय भाषा से पूरी तरह अपरिचित हैं। ऐसे में स्थानीय हालात को समझे बगैर किसी अज्ञात इलाकों में जाकर सीआऱपीएफ का आपरेशन बड़ा रिस्क उठाने जैसा है। यही अधिकारियों की दलील है कि इन बुनियादी चुनौतियों की वजह से ही सीआरपीएफ के जवान माओवादियों का बडी ही आसानी से लक्ष्य बन जाते हैं। सीआऱपीएफ को इसका खामियाजा जवानों की शहादत के रूप में उठाना पड़ता है।

 

सीआऱपीएफ के सूत्र कहते हैं कि माओवाद प्रभावित इलाकों में जंगलों के भीतर राज्य पुलिस की ऐसी कोई इकाई नहीं है, जिसका सहयोग मिले। अधिकारियों का कहना है कि अगर फोर्स के आपरेशन में स्थानीय पुलिस के ऐसे प्रशिक्षित जवानों की भागीदारी बढ़ेगी, जो उन इलाकों का बेहतर ज्ञान रखते हैं, जंगलों को बखूबी समझते हैं, स्थानीय जनजातीय भाषा के जानकार हैं, तो फोर्स का आपरेशन ज्यादा बेहतर नतीजे देने वाले होंगे। फोर्स ज्यादा सतर्क होगी।