अजयारविंद नामदेव, शहडोल। मध्य प्रदेश के शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है। यहां आज भी झाड़ फूक, अंधविश्वास और दगना जैसे कुप्रथा के शिकार लोग जिंदगी और मौत से जूझते हैं। एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है। जहां गर्म सलाखों से दागने पर 3 माह की बच्ची की मौत हो गई।

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आदिवसी बाहुल्य शहडोल जिले में मासूम बच्चों को गर्म सलाखों से दागने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है। ताजा मामला जिला मुख्यालय से लगे सोहगपुर के पटासी गांव का है। यहां 3 माह की मासूम बच्ची रागनी को गर्म सलाखों से दागने पर मौत हो गई। दरअसल, निमोनिया और सांस की तकलीफ होने पर मासूम बच्चे को उसी के माता पिता ने गांव की ताई से अनगिनत बार गर्म सलाखों से दगवाया। जब उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उपचार के दौरान बच्ची की मौत हो गई।

डॉक्टर ने बताया कि, बच्ची को इतनी बार गर्म सलाखों से दागने के निशान इतने है की गिन पाना भी मुश्किल हो गया। बतादें कि, हाल में ही एक और मासूम बच्चे को 51 बार गर्म सलाखों से दागने का मामला आया था। जिस पर गांव की ताई सहित बच्चे के दादा व मां के खिलाफ शहडोल पुलिस ने मामला भी दर्ज किया था।

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बता दें कि इस तरह से बच्चों को शरीर पर जलाने को ग्रामीण-आदिवासी अंचल इलाकों में डॉम कहा जाता है, और यह एक अंधविश्वास है। जिसमें ग्रामीण मानते हैं कि यदि बच्चे को कोई बीमारी हो तो उसे डॉम लगा देने यानी गरम सलाखों या सुइयों से जलाने से बीमारी चली जाती है और ऐसे मामले शहडोल में पहले भी कई बार सामने आ चुके है। गर्म सलाखों या सुइयों से जलाने के अंधविश्वास में कई बार बच्चों की जान आफत में आ चुकी है, लेकिन यह अंधविश्वास अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।

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