लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में मध्यप्रदेश में चुनावों की हलचल जोरों पर है। एमपी में चुनाव के इतिहास से जुड़े ऐसे कई दिलचस्प किस्से भी हैं… साथ ही कई हस्तियां ऐसी भी थीं जो चुनावों को प्रभावित करने के रूप में भी जानी जाती थी। प्रदेश में एक समय डकैतों का बोल-बाला था और वह चुनावों को प्रभावित करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ते थे। आज हम आपको मध्यप्रदेश के उन डकैतों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने चुनाव के समय अपनी धाक से इलाके में दहशत का माहौल बना डाला था।
फूलन देवी
दस्यु सुंदरी के नाम से मशहूर फूलन देवी एक जमाने में डर का दूसरा नाम हुआ करती थीं। कई बार गैंगरेप, अत्याचार और फिर डाकू से सांसद बनी फूलन की जिंदगी का सफर किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकता है। फूलन देवी को बीहड़ में कुख्यात डकैत कहा जाता है। जिसे वक्त और हालात ने एक डाकू बनने पर मजबूर किया था। उनके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था। जिसके बाद महज 16 साल की उम्र में वो डाकू बन गई थी। जिसके बाद दुष्कर्म का बदला लेने के लिए राजपूत समाज के करीब 22 लोगों को सरेआम कत्ल कर डाला था।
साल 1983 में फूलन देवी ने सिलेंडर कर दिया था। लगभग साल भर बाद जब जेल से छूटी तो फूलन देवी ने राजनीति का रुख अपनाया। सपा के टिकट पर उसने मिर्जापुर से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा और वहां सांसद बनी। लेकिन साल 2001 में फूलन देवी की दिल्ली में उनके सरकारी आवास के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी और उनका किस्सा यही खत्म हुआ।
मलखान सिंह
एक ऐसा बागी, जो गांव के मंदिर की 100 बीघा जमीन के लिए डाकू बन गया। मलखान सिंह चंबल का पहला डकैत था, जिसके पास ऑटोमैटिक अमेरिकन राइफल थी। उसका ऐसा खौफ था कि कोई डाकू किसी महिला का रेप नहीं कर सकता था। डाकू मलखान सिंह और डाकू मोहर सिंह गुर्जर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में जमकर चुनाव प्रचार किया।
25 साल से अधिक समय तक चंबल घाटी में आतंक मचाने के बाद मलखान सिंह ने करीब साढे तीन दशक पहले अर्जुन सिंह सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। अब वह बंदूक छोड़ आध्यामिक मार्ग अपना चुका था। बड़ी बड़ी मूंछ रखने वाला मलखान सिंह ने एक दौरे में पंचायत चुनाव भी लड़ा।
मोहर सिंह गुर्जर
मोहर सिंह गुर्जर पान सिंह तोमर का पहला वर्जन था। चंबल का बागी, जिसे कभी दद्दा, कभी रॉबिन हुड तो कभी जेंटलमेन डाकू के नाम से बोला जाता था। एक और विशेषण भी उसके नाम से जुड़ा था- ‘इंडिया का सबसे महंगा डाकू’। जिसपर 3 लाख का इनाम था। 1960 के दशक में उसने सिर्फ एक किडनैपिंग से 26 लाख रुपए की फिरौती हासिल की थी।
आतंक ऐसा था कि कहते हैं जब 1972 में जेपी ने चंबल के डाकुओं के सरेंडर की स्कीम बनाई। मोहर सिंह ने राजनीति का दामन भी थामा और कांग्रेस में शामिल हो गए। नगर पंचायत का चुनाव लड़ा और इसमें जीते भी। बाद के दिनों में वो समाज सेवी बन गए थे और पुराने टूटे मंदिरों के बनवाने का काम करने लगे। वहीं साल 2020 में मोहर सिंह ने अंतिम सांस ली। तारीख थी 5 मई। 92 साल की जिंदगी के बाद एक डाकू की कहानी खत्म हुई।
प्रेम सिंह
मध्य प्रदेश में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में डकैत प्रेम सिंह कांग्रेस की टिकट पर प्रदेश के सतना जिले की चित्रकूट सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। उन्होंने भाजपा के सुरेंद्र सिंह गहरावर को करीब 10 हजार वोटों से पराजित किया था।
दस्यु जीवन से राजनीति का सफर करने वाले प्रेम सिंह इस सीट से तीन बार विधायक रहे। सन 1998 और 2003 में भी कांग्रेस की टिकट पर ही जीत कर विधायक बने थे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कट्टर समर्थक रहे प्रेम सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।
ददुआ
मध्य प्रदेश के चित्रकूट बांदा क्षेत्र के पाठा के जंगलों में खौफ का नाम ददुआ हुआ करता था, उसने पूर्व डकैतों के साथ मिलकर राजनीति का खेल शुरू किया। लेकिन उसी राजनीति के चलते मौत का शिकार भी बन गया। हालांकि उस समय अपने पक्ष में वोट डलवाने के लिए डकैत दिलचस्प तरीके से फरमान जारी करते थे।
गैंग के डकैत सिर्फ एक मुकरीर के सहारे करीब 100 से अधिक गांव तक संदेश पहुंचा देते थे कि किस पार्टी ने निशान और प्रत्याशी को वोट देना है। बता दें कि ददुआ उत्तर प्रदेश का चित्रकूट और मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में चुनाव को प्रभावित करता था। भले ही वो विधायक और सांसद नहीं बन सका, लेकिन उसने अपने पूरे परिवार को राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया था।
Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H
Read More:-
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक