दिल्ली. तिब्बत में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाईलामा ने एक बड़ा एलान करते हुए कहा है कि उनका अगला अवतार भारत से हो सकता है।

अपने उत्तराधिकारी पर बयान देने वाले 14वें दलाईलामा ने भारत में अपने जीवन के 60 साल निर्वासित होकर बिताए हैं। उन्होंने आगाह किया कि चीन द्वारा घोषित अन्य उत्तराधिकारी को सम्मान न दिया जाए।

दलाईलामा ने अपने निर्वासन के 60 साल पूरे होने के ठीक एक दिन बाद यह बात कही। 1959 में भारत ने दलाईलामा को शरण दी थी। उस वक्त वह एक सैनिक के लिबास में हिमालय को पार कर गए थे। तिब्बत में सराहनीय कामों के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

उन्होंने कहा, ‘चीन दलाईलामा के पुनर्जन्म की महत्ता समझता है। बीजिंग अगले दलाईलामा को लेकर चिंतित भी है। भविष्य में यदि दो दलाईलामा अस्तित्व में आते हैं, एक यहां स्वतंत्र देश से और दूसरा जिसे चीन चुने, तो ऐसे में चीन द्वारा चुने गए दलाईलामा को कोई सम्मान नहीं देगा। यह चीन के लिए बड़ी समस्या है और यह संभव है।’

दलाईलामा ने कहा कि उनके और चीनी अधिकारियों के बीच आधिकारिक मुलाकात 2010 तक हुई थी। हालांकि अब सेवानिवृत्त चीनी अधिकारी और कारोबारी समय-समय पर मिलते हैं। उन्होंने कहा, मेरी मृत्यु के बाद दलाईलामा की भूमिका के लिए इस वर्ष के अंत में तिब्बती बौद्धों के बीच बैठक में होगी। उन्होंने कहा, यदि उन्हें वापस मातृभूमि जाने का मौका मिले तो वह चीनी यूनिवर्सिटी में भाषण देना चाहेंगे। लेकिन चीन में कम्युनिस्टों की सरकार होने तक उनकी वापसी की कोई गुंजाइश नहीं है।

चीन सरकार कहती है कि उसे अगले दलाईलामा के चयन का अधिकार है। लेकिन तिब्बत के लोग मानते हैं कि बौद्ध साधु की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा एक बच्चे में समा जाती है और वह पुनर्जन्म लेता है। चीन के 60 लाख से भी अधिक तिब्बती लोग दलाईलामा का सम्मान करते हैं जबकि सरकार ने उनकी तस्वीरों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर पाबंदी लगा रखी है।