रायपुर. राज्यपाल अनुसुईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज साईंस कॉलेज मैदान में चल रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल हुए. इस अवसर पर राज्यपाल ने देश-विदेश से आए लोक कलाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आदिवासियों की संस्कृति बहुत समृद्ध रही है. हर प्रदेश की संस्कृति वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग है. यहां कई आदिवासी नृत्य देखने को मिले हैं, जो पहले देखने को नहीं मिले थे. इस राष्ट्रीय महोत्सव के दौरान अनेकता में एकता की भावना दिखाई दे रही है, जिससे भाईचारे की भावना बढ़ती है और एक दूसरे की संस्कृति को जानने का अवसर मिला है. उन्होंने इस सुंदर और भव्य राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को धन्यवाद दिया.

राज्यपाल ने कहा कि भारत के अधिकांश प्रदेशों में आदिवासी निवास करते हैं. आदिवासियों की लोक संस्कृति बहुत समृद्ध रही है. भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न प्रदेशों में आदिवासियों के अलग-अलग गीत एवं नृत्य हैं. आदिवासियों की अधिकांश लोक नृत्य प्रकृति पूजा, फसलों और उनके तीज-त्यौहारों पर आधारित होते हैं. आदिवासी महिलाओं में गोदना गुदवाने की पुरानी परंपरा को आज टैटू के रूप में युवा पीढ़ी में प्रचलित देखा जा सकता है. देश और विदेश में प्रचलित लोकप्रिय ‘‘बैले’’ डांस प्राचीन आदिवासी संस्कृति की ही विश्व को देन है.

उन्होंने कहा कि नृत्य-संगीत भारतीय जनजातियों की उत्कृष्ट कला है. यह प्रकृति और संस्कृति के बीच एक सेतु का कार्य करता है. अपने पसंद का नृत्य एवं गीत सुनकर थका हुआ व्यक्ति भी आनंदित होकर पुनः तरोताजा अनुभव करने लगता है. इसलिए जीवन में नृत्य एवं गीत का महत्वपूर्ण स्थान है. अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही वैज्ञानिक जीवन पद्धति आज भी मूल रूप से आदिवासियों में विद्यमान हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति और संस्कृति के बीच सेतु का काम करता है.

राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति का पुजारी होता है और उनकी जीवनशैली प्रकृति के समान सहज और सरल होती है. इस महोत्सव में नई पीढ़ी के आदिवासियों से कहना चाहूंगी कि वो अपने पुराने नृत्य एवं गीत को भावी पीढ़ी को हस्तांतरित एवं संरक्षित करने के लिए सतत् प्रयत्न करें और नृत्य और गीत को समय-समय पर व्यवहार में लाते रहें, अन्यथा ये विलुप्त हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन होते रहना चाहिए, जिससे आदिवासी लोक कलाकारों की कला-संस्कृति को देखने और समझने का अवसर मिलता रहे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव देश में अपनी तरह का पहला आयोजन है. इसमें देश के 25 राज्यों के कलाकारों के साथ ही 6 देशों के कलाकार भी भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस आयोजन के लिए 1300 कलाकारों को निमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 1800 कलाकार इस महोत्सव में शामिल होकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं.

भूपेश बघेल ने कहा कि इस आयोजन में विविधता में एकता के दर्शन हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की भाषा, बोली और संस्कृति में विविधता है. इसके बावजूद उनमें सांस्कृतिक एकता दिखाई दे रही है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की कला एवं संस्कृति समृद्ध है. महोत्सव के माध्यम से लोक कला संस्कृति और परंपरा को देखने और समझने का अवसर मिला है. मुख्यमंत्री ने इस आयोजन में भाग लेने वाले सभी कलाकारों का अभिवादन किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कड़ाके की ठंड में इतनी बड़ी संख्या में दर्शकों की उपस्थिति इस आयोजन की सफलता को दर्शाता है.

महोत्सव को नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भी संबोधित किया. उन्होंने इस विशाल आयोजन के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रशंसा की. कौशिक ने कहा कि छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश के आदिवासी समाज की जीवनशैली एक समान होती है. आदिवासियों की संस्कृति का ही नहीं बल्कि उनकी भाषा, बोली और परंपराओं का भी संरक्षण होना चाहिए. इस विषय पर अनुसंधान और शोध होना चाहिए, ताकि उनकी संस्कृति बोली, और परंपराओं को लिपिबद्ध किया जा सके। संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने स्वागत भाषण दिया और इस आयोजन की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी.

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इस अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंड़िया, उद्योग मंत्री कवासी लखमा, स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, राज्यसभा सांसद छाया वर्मा, लोकसभा सांसद सुनील सोनी, विधायक बृजमोहन अग्रवाल, धनेन्द्र साहू, कुलदीप जुनेजा, लखेश्वर बघेल, विकास उपाध्याय, अनिता योगेन्द्र शर्मा, अनूप नाग, मुख्य सचिव आर.पी. मंडल सहित बड़ी संख्या में नगरवासी उपस्थित थे.