चारधाम यात्रा में इस वक्त बड़े हादसे की आंशका जताई जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जगह जगह चट्टानों में दरारें आ रही है, चट्टानों में एकत्रित मलबा किसी भी वक्त ढह सकता है, उत्तराखंड के वरिष्ठ सरकारी वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंता जाहिर की हैं, इस वक्त चारधाम यात्रा में केदारनाथ बदरीनाथ में करीब लाखों श्रध्दालु दर्शन के लिए पहुंचे है.

ऋषिकेश-बद्रीनाथ रोड के चौड़ीकरण के दौरान कई जगह पानी के प्राकृतिक स्रोत मलबे में दब गए थे, अब वो पानी चट्‌टानों के बीच जमा हो रहा है, इससे किसी भी वक्त चट्‌टानें गीली होकर ढहनी शुरू हो सकती हैं. और किसी भी वक्त सड़को पर गिर सकती है. कई जगहों पर ओवर हैंगिंग वाली चट्‌टानों में बड़ी बड़ी दरारें भी आ गई हैं. दरअसल, चारधाम रूट पर ऑल वेदर रोड यात्रा को सुगम बनाते समय कुछ गलतियां हुई थी जिसके कारण ये सब हो रहा है.

चार धाम यात्रा मार्ग

इस तरह की चट्‌टानें ऋषिकेश-बद्रीनाथ रूट पर तोता घाटी, पाताल गंगा, विष्णु प्रयाग, बलदौडत्रा, लामबगड़, हनुमान चटटी आदि में साफ देखी जा सकती हैं. उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर वरिष्ठ भूगर्भीय वैज्ञानिक प्रो. एमपीएस बिष्ट का कहना हैं कि चारधाम यात्रा शुरू करने से पहले ही इन चट्‌टानों को गिरा देना चाहिए था. इसके लिए कुछ समय पहले डेंजर जोन चिह्नित किए गए थे, लेकिन ध्यान नही दिया गया.

हर दिन आ रहे छोटे भूकंप, चट्‌टानों में दरारें

हिमालयी रेंज में रोज 10-20 छोटे भूकंप आते हैं, ये रिक्टर स्केल पर 3 से कम होते हैं, इसलिए महसूस नहीं होते इनसे जमीन में कंपन होता है. ऐसे में चट्‌टानें ढहती रहती हैं. शोध में ये बात सामने आई है कि इन इलाकों में ऑल वेदर रोड का जो काम हुआ है, उसमें कुछ गलतियां हुई हैं, चट्‌टानों में पड़ी दरारें साफ संकेत दे रही हैं कि वे कभी भी नीचे गिर सकती हैं, ये कभी भी बड़े हादसों का कारण बन सकती हैं.

वैज्ञानिकों ने दिए उत्तराखंड सरकार को 3 सुझाव

  • जिन चट्‌टानों पर दरारें नजर आ रही हैं, उन्हें समय रहते गिरा दिया जाए.
  • ऐसे सभी इलाकों को तुरंत चिह्नित किया जाए, वहां चेतावनी बोर्ड लगाई जाए.
  • ढालों से निकलने वाली जल धाराओं को रास्ता दें, ताकि खतरा टले.

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