सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने पदभार ग्रहण करने के बाद पहला जाति से जुड़ा एक रेयर फैसला दिया जिसने नई बहस को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक नाबालिग लड़की की शिक्षा को सुगम बनाने के उद्देश्य से उसकी मां की ‘आदि द्रविड़’ जाति के आधार पर अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी करने को मंजूरी दे दी। बावजूद इसके की लड़की की शादी एक गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति से हुई है।

CJI सूर्यकांत की पीठ ने कहा-कानून का सवाल खुला है

मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने से इनकार कर दिया जिसमें पुडुचेरी की लड़की को अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र देने का निर्देश दिया गया था। इस आधार पर इसके बिना उसका शैक्षणिक जीवन प्रभावित हो सकता है। पीठ ने कहा-हम कानून के सवाल को खुला रख रहे हैं।

CJI बोले-मां की जाति के आधार पर जाति प्रमाणपत्र क्यों नहीं

CJI सूर्यकांत ने कहा-बदलते समय के साथ माता की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए? इसका मतलब यह होगा कि किसी अनुसूचित जाति की महिला के उच्च जाति के पुरुष से विवाह से पैदा हुए और उच्च जाति के पारिवारिक परिवेश में पले-बढ़े बच्चे भी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के हकदार होंगे।

मां ने की थी कोर्ट से यह अपील

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार, मां ने तहसीलदार से अनुरोध किया था कि उसके तीन बच्चों दो बेटियों और एक बेटे को उसके जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्रदान किया जाए, क्योंकि उसका पति शादी के बाद से उसके माता-पिता के घर पर ही रह रहा था। अपनी अर्जी में उसने तर्क दिया था कि उसके माता-पिता और दादा-दादी हिंदू आदि द्रविड़ समुदाय से थे।

अभी क्या है बच्चों की जाति तय होने का नियम

5 मार्च, 1964 और 17 फरवरी, 2002 के राष्ट्रपति के अधिसूचनाओं को केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के साथ पढ़ा जाए तो यह कहा गया है कि जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति की पात्रता मुख्य रूप से उसके पिता की जाति के साथ-साथ राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के अधिकार क्षेत्र में उसकी आवासीय स्थिति पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले पिता की जाति को निर्णायक कारक माना था। पुनीत राय बनाम दिनेश चौधरी [(2003) 8 एससीसी 204] में, आरक्षण से संबंधित एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति की जाति के निर्धारण के लिए निर्णायक कारक प्रथागत हिंदू कानून के अनुसार पिता की जाति होगी और वैधानिक कानून की अनुपस्थिति में वे अपनी जाति पिता से विरासत में प्राप्त करेंगे, न कि माता से।

पति से तलाक के बाद भी गैर-दलित महिला के बच्चों को मिलेगी SC की पहचान

इससे पहले दिसंबर, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर-दलित महिला और दलित पुरुष का विवाह रद्द कर दिया था। बच्चों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र दिलाने का आदेश दिया था। छह साल से अलग रह रहे दंपती को तलाक दे दी गई। बच्चे मां के साथ रहेंगे और पिता बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाएगा। शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्पष्ट किया कि गैर-दलित महिला को भले ही शादी के आधार पर एसएसी का दर्जा नहीं मिल सकता, लेकिन एससी से पैदा हुए उसके दोनों बच्चों को तलाक के बाद भी एससी का दर्जा मिलेगा।

धर्मांतरण से जातिगत पहचान खुद ही खत्म

सु्प्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2024 में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय का प्रमाण पत्र जारी करने की अपीलकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि संविधान (पांडिचेरी) अनुसूचित जाति आदेश, 1964 के तहत अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता प्राप्त वल्लुवन जाति से संबंधित होने का उसका दावा टिकने योग्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण से जातिगत पहचान समाप्त हो जाती है और इस स्थिति को बहाल करने के लिए पुनः धर्मांतरण को विश्वसनीय साक्ष्यों के साथ सिद्ध किया जाना चाहिए।

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