नई दिल्ली। टेरी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में DDC के उपाध्यक्ष जस्मिन शाह ने ‘दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए आर्थिक रूप से प्रभावी विकल्प’ विषय पर संबोधित किया. उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण पर रोकथाम के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई, लेकिन उत्तर भारत के अन्य राज्यों ने ऐसा नहीं किया. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी यानि TERI) की ओर से आज रिपोर्ट जारी में कहा कि सर्दियों के दौरान दिल्ली के पीएम 2.5 के स्तर को कम करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता योजना और क्रियान्वयन जरूरी है. रिपोर्ट ने लागतों के संबंध में उनके आर्थिक और स्वास्थ्य लाभों का आकलन करने के लिए विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों की क्षमता की जांच की.
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ब्लूमबर्ग के सहयोग से टेरी की ओर से पेश की गई ‘दिल्ली में वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए कार्यों की लागत-प्रभावशीलता’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में पाया गया कि प्रदूषण नियंत्रण के प्रभावी विकल्पों में एलपीजी/इंडक्शन स्टोव, इलेक्ट्रिक दुपहिया और तिपहिया वाहन, पावर प्लांट नियंत्रण, जिग-जैग ईंट भट्ठा प्रौद्योगिकी हैं. कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन के उपाध्यक्ष जस्मिन शाह ने प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में दो प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वायु प्रदूषण के बारे में अच्छे आंकड़ों की कमी के साथ जो आंकड़े मौजूद हैं, उनके संचार की भी कमी है. उन्होंने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण एक क्षेत्रीय एयरशेड की समस्या है, ना कि दिल्ली की समस्या है. 2016 के आंकड़ों पर आधारित टेरी की 2018 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि कैसे दिल्ली का अधिकांश वायु प्रदूषण स्थानीय स्रोतों से नहीं बल्कि क्षेत्रीय स्रोतों से आता है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एजेंसी सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) द्वारा नवंबर के हालिया विश्लेषण से पता चला है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लगभग 70 फीसदी स्रोत दिल्ली के बाहर स्थित हैं. एआई और सैटेलाइट डेटा से यह भी पता चला है कि दिल्ली, उत्तर भारत के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में भी नहीं है. ऐसे परिदृश्य में आम जनता को वायु गुणवत्ता से संबंधित आंकड़ों के बारे में लगातार ज्यादा सूचना देने की जरूरत है, ताकि नागरिक इसके लिए सरकारों को जवाबदेह बना सकें. उन्होंने कहा दिल्ली ने प्रदूषण के स्रोतों पर कार्रवाई करने के लिए अधिकतम राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई है, लेकिन उत्तर भारत के अन्य राज्यों में ऐसा नहीं है.
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24×7 बिजली आपूर्ति के साथ पिछले पांच वर्षों में लगभग 5 लाख प्रदूषण फैलाने वाले डीजल जनरेटर बेकार हो गए हैं. जस्मिन शाह ने कहा कि हमने थर्मल पावर प्लांट बंद कर दिए हैं, लेकिन पड़ोसी राज्य प्रदूषण पर लगाम लगाने के कड़े मानदंडों को लागू करने में भी विफल रहे. हमने दिल्ली की इलेक्ट्रिक वाहन नीति के तहत सब्सिडी के माध्यम से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर फोकस किया है, जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहन पहले से ही कुल नए पंजीकरण का 9 फीसदी हो गए हैं, जबकि इसके लिए अखिल भारतीय औसत 1.6 फीसदी है. पराली निस्तारण के लिए दिल्ली के किसानों को प्रभावी पूसा बायो डिकंपोजर मुफ्त दिया गया, जबकि हमारे पड़ोसी राज्य इस तरह के समाधान या पूरी तरह से सब्सिडी देने में विफल रहे हैं. जिसके कारण इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले 5 साल के मुकाबले चरम पर पहुंच गई है. प्रदूषण नियंत्रित करने के इन उपायों को प्रदूषण में बढ़ावा देने वाले राज्यों द्वारा अपनाया नहीं जाता है, तो उन्हें बाध्य कर देना चाहिए.
जस्मिन शाह ने आगे कहा कि दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण के खिलाफ समझ बढ़ाने और कार्रवाई के लिए आंकड़ों और विज्ञान के जरिए आगे बढ़ने में बहुत उत्सुक है. दिल्ली में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) के स्रोत के बंटवारे के बारे में टेरी की 2018 की रिपोर्ट के बाद दिल्ली सरकार एडवांस्ड रीयल-टाइम स्सोर्स एपोर्शनमेंट सिस्टम में निवेश कर रही है. हम दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्रोतों का हर घंटे विश्लेषण करने के लिए टेरी के साथ साझेदारी में IIT कानपुर के नेतृत्व में एक अध्ययन कर रहे हैं.
टेरी की महानिदेशक डॉ. विभा धवन ने सुझाए उपाय
टेरी की महानिदेशक डॉ. विभा धवन ने कहा कि इस रिपोर्ट के माध्यम से हमारा उद्देश्य विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को संवेदनशील बनाना और नीति निर्माताओं को सही निर्णय लेने में सक्षम बनाना है. दिल्ली में वायु प्रदूषण नवंबर से जनवरी तक हमारा ध्यान खींचता है और उसके बाद हम इसे ऐसे भूल जाते हैं, जैसे कि समस्या हल हो गई है. इस प्रवृत्ति को देखते हुए भारत के कई अन्य शहर दिल्ली के अनुरूप होंगे और उनकी वायु गुणवत्ता खराब होगी. हमें कम से कम एनसीआर सहित दिल्ली में व्यापक वायु गुणवत्ता मूल्यांकन की आवश्यकता है. ब्लूमबर्ग फिलैनट्रॉपीज से प्रिया शंकर ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया की 90 फीसदी से अधिक आबादी खराब हवा में सांस लेती है. इस तरह के एक गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए सरकारों को नागरिक-समाज, व्यापार संघों, विशेषज्ञों और नागरिकों का सहयोग चाहिए.
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