27 मई 1964 का वो दिन जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने अंतिम सांस ली थी. बच्चों के प्रिय चाचा नेहरु की आज 58वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. पंडित नेहरू भले ही आज इस दुनिया में ना हो लेकिन आज भी वो लोग उन्हें याद करते है. इतिहास का पन्ना पलट कर देखें तो 58 साल पहले 26 मई की शाम उन्हें आखिरी बार सार्वजनिक तौर पर देखा गया था जब वो बेटी इंदिरा गांधी के साथ हेलिकॉप्टर में चढ़े, इसके बाद 27 मई की सुबह उनकी सांसे थम चुकी थी.

नेहरु की अंतिम यात्रा

भारत की धरती पर बिखेरी गई थी नेहरू की अस्थियाँ

रिपोर्ट के मुताबिक नेहरू ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनकी अस्थियों को हवाई जहाज़ से भारत के हर राज्य में गिरा दिया जाए. कश्मीर में इंदिरा गांधी उन अस्थियों को खुद लेकर गईं. श्रीनगर में वो एक छोटे विमान पर चढ़ीं और भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी के एन शास्त्री की मदद से उन्होंने उस धरती पर वो सारी अस्थियाँ बिखेर दीं जहाँ नेहरू के पूर्वजों का जन्म हुआ था और जिसको नेहरू बहुत प्यार करते थे.

बाकी अस्थियों को भारतीय वायुसेना के विमानों ने सभी राज्यों की उस धरती पर छितरा दिया जहाँ भारत के किसान काम करते थे.

नेहरु के अस्थि दर्शन के लिए ट्रेन हर स्टेशन में रुकती थी

लेखिका ऊषा भगत ने अपनी किताब ‘इंदिराजी’ में लिखा है कि अंतिम संस्कार के तेरह दिनों बाद नेहरू की अस्थियों को एक विशेष ट्रेन से संगम में प्रवाहित करने के लिए इलाहाबाद ले जाया गया. ट्रेन ने आमतौर से दस घंटों में पूरे हो जाने वाले सफ़र को 25 घंटों में तय किया. ट्रेन हर स्टेशन पर रुकी जहाँ हज़ारों लोग नेहरू को अंतिम विदाई देने आए थे.