Deepak Rickshaw Wala: आज के दौर में जहां स्टैंडअप मिमिक्री और स्टैंडअप कॉमेडी को लोग पसंद कर रहे हैं, वहीं बिहार की राजधानी पटना में एक रिक्शाचालक ऐसा भी है जो मिमिक्री तो 50 से ज्यादा कालाकारों और नेताओं की कर लेते हैं, लेकिन अब तक उनकी कला को वह पहचान नहीं मिली, जिसके वे सही मायने में हकदार हैं.
उनकी कला के दीवाने विधानसभा से लेकर गलियों तक के लोग हैं. बचपन से लेकर युवा तक घर की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे रिक्शा चालक को अभी भी आस है कि कोई उसकी कला का कद्रदान जरूर मिलेगा. दीपक बताते हैं कि उन्हें बिहार विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम में पुरस्कार भी मिल चुका है. पेशे से रिक्शा चालक दीपक (Deepak Rickshaw Wala ) मूल रूप से झारखंड के धनबाद जिले के तोपचांची के रहने वाले हैं, लेकिन वे पिछले 15 सालों से पटना में ही रिक्शा चलाकर अपना जीवन यापन करते हैं.
दीपक बताते हैं कि 20 से 25 वर्ष की आयु में कई गांवों और कस्बों में मंच तो मिला, लेकिन उससे परिवार का पेट भरना मुश्किल था. इस कारण फिर रिक्शा को ही अपना हमसफर बना लिया. दीपक न केवल देवानंद बल्कि अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, अमरीश पुरी, अजीत, पृथ्वीराज कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, राजकुमार की आवाज को बखूबी उसी अंदाज में निकाल लेते हैं.
वह चर्चित नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के अंदाज को कुछ इस तरीके से प्रस्तुत करते हैं कि लोग उनके दीवाने हो जाते हैं. दीपक बताते हैं कि जब वह 5 या 6 साल के थे तब उन्होंने पहली बार फिल्म अभिनेता राजकुमार की आवाज को सुना था और उनकी आवाज की नकल करने की कोशिश की और वह उसमें काफी हद तक सफल रहे. इसके बाद तो वह अभिनेताओं की आवाज की नकल कोशिश करने लगे और उनकी क्षेत्र में इसके लिए पहचान बन गई.
वैसे, दीपक को इसका मलाल है कि उनकी कला से उन्हें बहुत लाभ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि प्रारंभ में कई लोग गांव, कस्बों में स्टेज प्रोग्राम के लिए हमें ले जाने लगे, लेकिन नाम मात्र का पारिश्रमिक मिलता. अब तक अविवाहित दीपक बहुत निर्धन परिवार से आते हैं. उनके परिवार में उनके भाई और अन्य लोग भी है. पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधे पर है. वे कहते हैं कि परिवार की जिम्मेदारी के कारण ही वे अब तक अविवाहित है. उन्होंने कहा कि प्रारंभ में मिमिक्री बहुत अच्छी लगी, लेकिन अंदाजा नहीं था कि इस मिमिक्री से कोई फायदा नहीं होगा. उन्होंने कोसते हुए कहा कि बिहार और झारखंड में कला की कद्र नहीं है. उन्होंने कहा कि 1990 में मुंबई जाने को सोचा था, लेकिन परिवार के दायित्व के कारण वह इतना आसान नहीं हुआ.
उन्होंने कहा कि मिमिक्री करना इतना आसान नहीं होता है. उसके लिए रियाज करने की जरूरत पड़ती है. वैसे तो मैं सारे हीरो की आवाज को बखूबी निकाल लेता हूं, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत अमरीश पुरी की आवाज निकालने में हुई थी. तब उसके लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.
वैसे, दीपक को उसकी कला के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है. बिहार विधान परिषद में आयोजित एक कार्यक्रम में दीपक को सम्मानित भी किया गया था. उस वक्त मौके पर राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद के अलावा कई और लोग भी उपस्थित थे, जिन्होंने दीपक की खूब प्रशंसा की थी.
दीपक के लिए उनका परिवार ही सबकुछ है. दीपक अपने भाई को पढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. दीपक खुद पटना में भले ही रिक्शा चलाते हैं लेकिन इसी रिक्शे की कमाई से वह अपने भाई को दिल्ली में पढ़ा रहे हैं. दीपक बताते हैं कि उनका छोटा भाई अभी नई दिल्ली में एमएससी की पढाई कर रहा है. दीपक को हालांकि अपने आप पर भरोसा है कि उसके दिन भी बहुरेंगे.