रायपुर। खबरों के मुताबिक लाभ के पद मामले में दिल्ली की आप सरकार के 20 विधायकों की सदस्यता चुनाव आयोग द्वारा रद्द कर दी गई है. चुनाव आयोग के इस फैसले का छत्तीसगढ़ पर भी बड़ा असर हो सकता हैं. प्रदेश में भाजपा के 11 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया है. मुख्य चुनाव आयुक्त के इस फैसले का छत्तीसगढ़ पर क्या असर पड़ेगा इसका लोगों को बेसब्री से इंतजार है. हालांकि प्रदेश में संसदीय सचिवों का मामला हाईकोर्ट में अंतिम चरण में है.

इस मामले में मोहम्मद अकबर ने कहा कि उन्होंने विधिवत इस मामले में राज्यपाल से इन नियुक्तियों को अवैध बताते हुए रद्द करने और  विधायकी खत्म करने के 22 आवेदन दिया था. राज्यपाल ने जब 15 दिन तक कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने चुनाव आयोग को लिखा. चुनाव आयोग ने इसका जवाब दिया. जिसे वो तब सार्वजनिक करेंगे जब चुनाव आयोग का दिल्ली के मामले में रुख सामने आएगा.

उन्होंने कहा कि नियम के मुताबिक राज्यपाल को इस मामले को चुनाव आयोग को भेजना था. लेकिन जब राज्यपाल ने सुनवाई नहीं की तो वे हाईकोर्ट गए. जहां सुनवाई अंतिम दौर में है. अकबर ने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही इस मामले में फैसला आएगा.

हाईकोर्ट में फैसला है पेंडिंग

संसदीय सचिवों के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट में तीन याचिकाएं लगाई गई है. दो याचिका पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोहम्मद अकबर की ओर से लगाई गई है वहीं एक याचिका आरटीआई कार्यकर्ता राकेश चौबे ने दायर किया है. अपनी याचिकाओं में मोहम्मद अकबर और राकेश चौबे ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती दी है.

मोहम्मद अकबर की याचिका सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. अपनी दूसरी याचिका में मोहम्मद अकबर ने मांग की है कि संसदीय सचिवों को लाभ का पद मानते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता ख़त्म की जाए.

छत्तीसगढ़ में मिल रही है मंत्रियों की तरह सुविधाएं

दिल्ली सरकार का दावा है कि वहां के संसदीय सचिवों को किसी तरह का कोई लाभ नहीं दिया जा रहा था, न उन्हें गाड़ी मिली थी और न ही बंगला. लेकिन छत्तीसगढ़ में मामला ठीक इसका उल्टा है यहां के संसदीय सचिवों को एक मंत्रियों की तरह ही सारी सुविधाएं प्राप्त हैं. उन्हें गाड़ी, बंगला, वेतन-भत्ता, स्टाफ सहित वो सभी सुविधाएं दी जा रही हैं जो कि किसी मंत्री को प्राप्त होती है.

हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना

हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देकर संसदीय सचिवों को राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त सभी अधिकारों पर रोक लगा दी थी. ये आदेश 1अगस्त को दिया था. प्रदेश में संसदीय सचिवों को शासकीय वाहन, निज सचिव, अतिरिक्त वेतन व भत्ते देने का प्रावधान है. हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए यहां बकायदा अभी तक संसदीय सचिवों को वो सारी सुविधाएं दी जा रही है.

ये हैं संसदीय सचिव

अंबेश जांगड़े, लाभचंद बाफना, लखन लाल देवांगन, मोतीराम चंद्रवंशी, रूपकुमारी चौधरी, शिवशंकर पैकरा, सुनीति सत्यानंद राठिया, तोखन लाल साहू, चंपा देवी पावले, गोवर्धन सिंह मांझी, राजू सिंह क्षत्रिय.

सुप्रीम कोर्ट ने भी अवैधानिक करार दिया

इसके पहले सिक्किम और असम में संसदीय सचिव पद को अवैधानिक करार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्यों की विधानसभाओं को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने आसाम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के जे चेलेमेश्वर,आर. के अग्रवाल और अभय मोहन सप्रे की तीन जजों की पीठ ने अपने 39 पेज के फैसले में कहा कि राज्य की विधानसभाओं को संविधान के अनुच्छेद 194(3) और एंट्री 39 के तहत संसदीय सचिवों की नियुक्ति का अधिकार नहीं है.

क्या गिर सकती है रमन सिंह सरकार ?

मोहम्मद अकबर की मांग अगर कोर्ट ने मान ली तो 11 विधायकों को गंवाने के बाद रमन सिंह सरकार अल्पमत में आ सकती है. लेकिन तब भी इस फैसले के खिलाफ दोनों पक्षों के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला रहेगा.