Delhi Digital Rape Case: 2 साल की बच्ची से डिजिटल रेप केस में दोषी को POCSO एक्ट के तहत 25 साल की कठोर कारावास की सजा दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने सुनाई है। कोर्ट ने पीड़िता को 13.5 लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। इस जघन्य अपराध को दिवाली की पूर्व संध्या पर अंजाम दिया गया था। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई इस वारदात ने पूरे देश में सनसनी मचा दी थी।

एडिशनल सेशन जज बबीता पुनिया की कोर्ट ने फैसला सुनाते इसे जघन्य अपराध बताया है। उन्होंने कहा कि कानून डिजिटल प्रवेश और लिंग प्रवेश में कोई अंतर नहीं मानता है। इसलिए इस ठोषी को कोई रियायत नहीं दी जा सकती है।

ट्रायल पूरा होने के बाद कोर्ट ने आरोपी को 19 नवंबर को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया। इतना ही नहीं अगले ही दिन कोर्ट ने इस मामले में सजा सुना दी। कोर्ट ने कहा कि दिवाली की पूर्व संध्या पर नशे की हालत में एक मासूम की जिंदगी अंधकार में धकेलने वाला व्यक्ति दया का पात्र नहीं हो सकता। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि बच्ची अपने घर जैसी सुरक्षित जगह पर थी, लेकिन आरोपी ने उसी घर को उसके लिए भय का स्थान बना दिया। कोर्ट ने दोषी को 25 साल की सजा के साथ-साथ पीड़िता को 13.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी जारी किया।

जानें क्या है पूरा ममाला

दरअसल बच्ची के साथ डिजिटल दुष्कर्म की घटना दिवाली की पूर्व संध्या यानी 19 अक्टूबर 2025 की है। आरोपी पीड़िता के पिता का परिचित था। 20 अक्टूबर को निहाल विहार थाने में FIR दर्ज की गई थी। मामले की गंभीरता देखते पुलिस ने तुरंत आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था. महज कुछ ही दिनों में जांच पूरी करने के बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट जमा कर दी। वहीं, कोर्ट ने केवल 9 दिन में ही ट्रायल पूरा कर लिया।

क्या होता है डिजिटल रेप

  • “डिजिटल” का मतलब यहां टेक्नोलॉजी से नहीं, डिजिटल यानी उंगली या किसी चीज से है। 
  • अगर किसी के प्राइवेट पार्ट्स में ज़बरदस्ती उंगली या कोई ऑब्जेक्ट डाला जाए तो डिजिटल रेप कहते हैं।  
  • किसी पीड़िता को जबरदस्ती यौन गतिविधि में शामिल करना भी डिजिटल रेप के अंतर्गत आता है।
  • बिना अनुमति किसी की निजी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करना भी डिजिटल यौन उत्पीड़न है।

यह हमला किसी भी जगह पर हो सकता है, अस्पताल, घर, सार्वजनिक स्थान, फिर पुलिस हिरासत तक। फिजिकल ट्रॉमा के साथ-साथ भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा भी होता है और ये ट्रॉमा और ज्‍यादा गहरा हो जाता है जब पीड़ित बेहोशी में हो या आईसीयू में हो, जैसे इस मामले में हुआ। 2013 से पहले रेप की परिभाषा ये थी कि “रेप तब तक रेप नहीं है जब तक इंटरकोर्स ना हो। 2013 से पहले आईपीसी में डिजिटल रेप का कोई जिक्र नहीं था। उसे सिर्फ “छेड़छाड़” माना जाता था, लेकिन 2012 के निर्भया केस के बाद, 2013 में डिजिटल रेप को कानूनी मान्यता मिली। नाबालिग की परिभाषा भी धारा 376 सी और धारा 376 डी के लिए 16 साल से कम उम्र में कर दी गई।

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