नई दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने युद्धस्तर पर यमुना नदी की सफाई में तेजी लाने के उद्देश्य से यमुना क्लीनिंग सेल का गठन किया. यह सेल संबंधित विभागों की ओर से किए जा रहे कार्यों पर नजर रखेगा. दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) को सेल का अध्यक्ष बनाया गया है और सभी संबंधित विभागों के प्रतिनिधि सदस्य होंगे. फरवरी 2025 तक यमुना को साफ कराने की जिम्मेदारी सेल के पास होगी. यमुना की सफाई के संबंध में दिल्ली सचिवालय में शुक्रवार को संपन्न समीक्षा बैठक की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अंतर-विभागीय निर्णय लेने और कार्य निष्पादन में तेजी लाने के लिए हमने यमुना क्लीनिंग सेल का गठन किया है. उन्होंने कहा कि एक जिम्मेदार सरकार होने के नाते यमुना की सफाई हमारी पहली प्राथमिकता है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यमुना सफाई के संबंध में औद्योगिक क्षेत्रों और जेजे क्लस्टरों से अपशिष्ट जल के प्रबंधन पर एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की. बैठक में उद्योग मंत्री और दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष सत्येंद्र जैन, मुख्य सचिव विजय कुमार देव और दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ उदित प्रकाश राय के साथ-साथ संबंधित विभागों के कई उच्च पदस्थ अधिकारी मौजूद रहे. बैठक में यमुना नदी की सफाई को लेकर आने वाली विभिन्न चुनौतियों और उससे निपटने के समाधानों पर गंभीरता से चर्चा हुई.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आगे कहा कि यमुना नदी को साफ करने में हम जिस बड़ी बाधा का सामना कर रहे थे, वह यह थी कि यह कई निकायों द्वारा शासित होने की वजह से एक जटिल प्रणाली से त्रस्त थी. इस समस्या को दूर करने के लिए हम यमुना क्लीनिंग सेल बना रहे हैं, जो सभी निकायों के कामकाज की निगरानी करेगा. इस सेल के गठित होने के बाद एक ही जगह जिम्मेदारी तय हो जाएगी और परियोजनाओं में तेजी आएगी.
DJB, DUSIB, DSIIDC, DPCC और आई एंड एफसी विभाग के प्रयासों को मजबूती देगा यमुना क्लीनिंग सेल
यमुना क्लीनिंग सेल का गठन यमुना की सफाई में तेजी लाने के उद्देश्य से किया गया है. इस सेल में जेजे क्लस्टर और औद्योगिक क्लस्टर, सीईटीपी, प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों, यमुना सफाई परियोजनाओं और इन-सीटू ट्रीटमेंट के सीवरेज की देखभाल करने वाले डीजेबी, डीयूएसआईबी, डीएसआईआईडीसी, डीपीसीसी और आई एंड एफसी विभाग के 6 वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे. यह अधिकारी दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ को रिपोर्ट करेंगे, साथ ही यह अधिकारी यमुना क्लीनिंग सेल की ओर से लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन के लिए भी जिम्मेदार होंगे और इससे इनके प्रयासों को मजबूती मिलेगी.
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यमुना क्लीनिंग सेल जेजे क्लस्टर, औद्योगिक क्लस्टर और सीईटीपी के सीवरेज सिस्टम की जिम्मेदारी संभालेगा. यह यमुना सफाई के सभी कार्य बिंदुओं के लिए भी संयुक्त रूप से जिम्मेदार होगा, जिसमें नए एसटीपी, डीएसटीपी का निर्माण, मौजूदा एसटीपी का 10/10 तक उन्नयन और क्षमता वृद्धि, 1799 अनधिकृत कॉलोनियों में सीवरेज नेटवर्क बिछाना, सेप्टेज प्रबंधन, ट्रंक/परिधीय सीवर लाइनों की गाद निकालना, पहले से अधिसूचित क्षेत्रों में सीवर कनेक्शन उपलब्ध कराना, आईएसपी के तहत 108 नालों की ट्रैपिंग, नालियों का इन-सीटू ट्रीटमेंट शामिल हैं.
यमुना के प्रदूषण को रोकने के लिए जेजे क्लस्टरों से ड्रेनेज को ट्रैप कर एसटीपी में भेजा जाएगा
मौजूदा समय में दिल्ली के अंदर करीब 675 जेजे क्लस्टर हैं, जो बिना सीवर के हैं. इन जेजे क्लस्टर्स का अनुपचारित गंदा पानी यमुना नदी में गिरता है. डूसिब ने इन-सीटू जेजे क्लस्टर में सार्वजनिक सामुदायिक शौचालयों को बनाकर सुविधाएं दी हैं. इनमें से कुछ सामुदायिक शौचालय अपने गंदे पानी को करीब के बरसाती नाले में बहा देते हैं, जो यमुना नदी के पानी को प्रदूषित करता है. जेजे क्लस्टर्स से बरसाती पानी के नाले में आने वाले इस गंदे पानी की समस्या से निपटने के लिए ऐसे सभी जेजे क्लस्टर्स को बरसाती पानी के ड्रेनेज सिस्टम से अलग किया जाएगा और वहां से निकलने वाले गंदे पानी को आसपास के एसटीपी में ट्रीट करने के लिए भेजा जाएगा. इससे यह सुनिश्चित होगा कि जेजे क्लस्टर्स से बिना ट्रीट हुआ पानी यमुना नदी में नहीं गिरेगा. दिल्ली जल बोर्ड की देखरेख में डूसिब द्वारा ट्रैपिंग व्यवस्था की कार्रवाई की जाएगी.
दिल्ली के सभी औद्योगिक क्लस्टर को सीईटीपी से जोड़ा जाएगा
दिल्ली में 13 सीईटीपी हैं, जो वर्तमान में 17 औद्योगिक क्लस्टर्स की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. डीएसआईआईडीसी दिल्ली में यमुना को प्रदूषित करने वाले औद्योगिक कचरे की संभावना को खत्म करने के लिए औद्योगिक क्षेत्रों में जहां भी आवश्यक है, वहां पर सीईटीपी स्थापित करने पर काम कर रहा है. डीपीसीसी, उद्योग विभाग और डीएसआईआईडीसी इस परियोजना पर काम कर रहे हैं, ताकि इसके रास्ते में आने हर तरह की खामियों को दूर करने के लिए रास्ता निकाला जा सके.
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दिल्ली जल बोर्ड सीईटीपी की क्षमता बढ़ाने के लिए उनके संचालन व प्रबंधन की जिम्मेदारी लेगा
दिल्ली में ऐसे 11 सीईटीपी हैं, जिनका प्रबंधन सीईटीपी समितियों द्वारा किया जाता है. यह समितियां सीईटीपी के संचालन और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं. अध्ययनों ने इन समितियों द्वारा सीईटीपी के कुप्रबंधन की ओर इशारा किया है और इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि दिल्ली जल बोर्ड उनके संचालन और रखरखाव को अपने हाथ में ले लेगा. डीजेबी सीईटीपी की क्षमता को अधिक से अधिक बढ़ाने की दिशा में काम करेगा. साथ ही यह भी सुनिश्चित करेगा कि औद्योगिक कचरे को यमुना में डालने की बजाय इसे इन प्लांट्स में डायवर्ट कर उसको ट्रीट किया जाए.
दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई के लिए बनाया है 6 स्तरीय एक्शन प्लान
1- चार नए एसटीपी बना रही केजरीवाल सरकार, पुराने की क्षमता में होगा विस्तार
केजरीवाल सरकार दिल्ली के अंदर सीवेज ट्रीटमेंट के लिए 279 एमजीडी क्षमता के चार नए ट्रीटमेंट प्लांट बना रही है. इसमें 40 एमजीडी की रिठाला एसटीपी, 70 एमजीडी की कोरोनेशन एसटीपी, 45 एमजीडी की कोडली एसटीपी और 124 एमजीडी की ओखला एसटीपी शामिल है. इसके अलावा दिल्ली में मौजूदा 19 एसटीपी को अपग्रेड किया जा रहा है, जिसके बाद सीवेज को ट्रीट करने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी.
2- चार ड्रेनों का इन-सीटू सफाई
यमुना में प्रदूषण बढ़ाने वाली चार प्रमुख ड्रेन हैं. यह चार ड्रेन नजफगढ़ ड्रेन, सप्लमेंट्री ड्रेन, बारापुला ड्रेन और शाहदरा ड्रेन हैं. इन चारों ड्रेन के अंदर दिल्ली सरकार सीवेज को इन सीटू ट्रीट कर रही है. अर्थात ड्रेन के अंदर ही चलने पानी को साफ किया जा रहा है. एसटीपी बाहर बनते हैं और दूर होते हैं, जिन्हें एक्स सीटू कहते हैं, जबकि ड्रेन के अंदर सीवेज की सफाई को इन सीटू कहते हैं.
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3- औद्योगिक कचरे के खिलाफ कार्रवाई
दिल्ली के अंदर 33 इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स हैं. इन इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स के अंदर से काफी सारा औद्योगिक कचरा निकलता है. इसमें से 17 इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स ऐसे हैं, जिनका पानी 13 सीईटीपी में जाता है और बाकी सीईटीपी में नहीं जाता है. जिनका पानी सीईटीपी में नहीं जाता है, उनके पानी को अलग-अलग जगहों पर सीवर लाइन में टैप कर लिया जाएगा और उसे सीईटीपी में साफ होने के लिए भेजा जाएगा. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) दिल्ली जल बोर्ड के अधीन काम करता है और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) डीएसआईडीसी के अधीन काम करता है. सारी इंडस्ट्री डीएसआईडीसी के अंतर्गत आती है. काफी सारी ऐसी भी इंडस्ट्री हैं, जो अपना वेस्ट उस पाइप लाइन में नहीं डालती हैं, जो पाइप लाइन सीईटीपी में जाती है. अगर वो सीईटीपी में पानी नहीं डालती है, तो उन इंडस्ट्री को बंद करा दिया जाएगा. कुछ इंडस्ट्री ऐसी भी हैं, जिनको कुछ प्राथमिक उपचार के बाद पानी सीवर लाइन में डालना होता है, लेकिन कुछ इंडस्ट्री प्राथमिक उपचार किए बिना ही सीवर लाइन में पानी डाल देती हैं, जिस वजह से सीवर लाइन भी चोक होती है और सीईटीपी भी चोक होती है. इसलिए जो पानी का प्राथमिक उपचार नहीं करेगा, उस इंडस्ट्री को भी बंद करेंगे.
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4- जेजे क्लस्टर की नालियों को सीवर लाइन से जोड़ा जाएगा
दिल्ली में काफी सारे जेजे क्लस्टर्स हैं. इनके अंदर डूसिब ने टॉयलेट क्लस्टर्स बनाए हैं. उन टॉयलेट क्लस्टर्स का डूसिब की तरफ से रखरखाव किया जाता है, लेकिन उसका वेस्ट वॉटर बारिश वाली नालियों से कनेक्ट होता है. अब दिल्ली सरकार ने निर्णय लिया है कि जेजे क्लस्टर्स से जो भी छोटी से छोटी नाली निकलती है, उसे पास की सीवर लाइन से जोड़ा जाएगा, ताकि सीवर लाइन के जरिए एसटीपी में जाकर ट्रीट कर पानी को साफ किया जा सके. दिल्ली के अंदर 1799 अनधिकृत कालोनी हैं, जिनको 2024 तक सीवर लाइन डालने का लक्ष्य रखा गया है.
5- केजरीवाल सरकार खुद 100 फीसदी घरों को सीवर से जोड़ेगी
दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली के 100 फीसदी घरों तक सीवर का कनेक्शन खुद लगाएगी. यह सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है. सरकार योजना के तहत बहुत बड़े-बड़े सीवर नेटवर्क डालती है, लेकिन सीवर नेटवर्क से जब तक एक-एक घर कनेक्ट नहीं होंगे, तब तक उस सीवर नेटवर्क के मायने नहीं हैं. जैसा कि ईस्ट दिल्ली 100 फीसदी सीवर नेटवर्क से जुड़ा हुआ है, फिर भी वहां पर बहुत सारे छोटे-बड़े नाले निकलते हैं, जिनका पानी बारिश वाले नालों में जाता है. इसके बाद वह पानी बड़े नालों में होकर यमुना में गिरता है. इसके काफी सारे नुकसान भी हैं. सबसे पहला नुकसान यह है कि इससे यमुना प्रदूषित होती है. इतना इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के बाद भी सीवर लाइन काम में नहीं आती है और बड़े-बड़े एसटीपी भी काम में नहीं आते हैं, क्योंकि उसमें इन घरों से निकलने वाला 50 से 60 फीसदी पानी ही पहुंचता है. दूसरा, जब नालियों में गंदा पानी बहता है, तो उसमें दुर्गंध आती है. उससे मक्खी और मच्छर पनपते हैं, तो इससे स्वास्थ्य और सैनिटेशन संबंधित समस्या पैदा होती है. तीसरा, अनधिकृत कॉलोनी के अंदर जब भी ऐसा होता है, तो यह पानी रिसता है और रिस कर भूमिगत जल को दूषित करता है. चौथा, अनधिकृत कॉलोनियों में अधिकतर घर पूरी तरह से स्ट्रक्चरली डिजाइन नहीं होते हैं. यह पानी जब घर के पास से बह रहा होता है, तो उससे बिल्डिंग की नींव कमजोर होती है.
6- सीवर लाइन की डी-सिल्टिंग
दिल्ली के अंदर 9,225 किलोमीटर का सीवर नेटवर्क है. जब घर से गंदा पानी निकलता है, तो उसमें गाद होती है. विभिन्न तकनीकी कारणों से सीवर लाइन के अंदर गाद बैठती रहती है, जिसकी वजह से अगर पाइप लाइन बीच में कहीं पर भी चोक हो जाती है, तो पीछे से आ रहा पानी आगे नहीं जा पाता है और इस वजह से वह पानी ओवर फ्लो करके पास के बरसाती नाले के जरिए नदी में आता है. सीवर लाइन की डी-सिल्टिंग के लिए अगले 6 महीने का लक्ष्य रखा गया है. अगले 6 महीने में दिल्ली के पूरे सीवर नेटवर्क को डी-सिल्ट कर दिया जाएगा. जिस भी एरिया में सीवर लाइन 10 फीसदी या 50 फीसदी चोक हो रहा है, तो वह डी-सिल्टिंग के बाद साफ हो जाएगा. जिसके बाद सीवर लाइन से होकर पानी आसानी से एसटीपी तक पहुंच जाएगा और उसे साफ किया जा सकेगा.
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