Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को लेकर बड़ा आदेश दिया है। एक मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले लोगों को पुनर्वास की मांग करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अतिक्रमणकारी केवल इस आधार पर सरकारी जमीन पर कब्जा जारी रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते कि उनके पुनर्वास दावों का समाधान नहीं हुआ है, क्योंकि इससे सार्वजनिक परियोजनाओं में अनावश्यक बाधा उत्पन्न होगी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस धर्मेश शर्मा ने दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) को अनुमति दी कि वह कालकाजी के भूमिहीन कैंप में कानूनी रूप से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कर सकता है।
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लगातार कब्जा बनाए रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने कहा कि रिट याचिकाएं न केवल कई पक्षों के गलत तरीके से जुड़े होने के कारण त्रुटिपूर्ण थीं, बल्कि दिल्ली झुग्गी और झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति द्वारा निर्धारित आवश्यक मानदंडों को भी पूरा नहीं करती थीं, जिसके आधार पर पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए पात्रता तय की जाती है। अदालत ने छह जून को सुनाए गए अपने आदेश में कहा, “किसी भी याचिकाकर्ता को जेजे. क्लस्टर पर लगातार कब्जा बनाए रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जिससे आम जनता को नुकसान हो।”
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क्या है पूरा मामला?
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 1,200 लोगों से जुड़ी थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि DDA को किसी भी तरह की तोड़फोड़ गतिविधि को रोकने, स्थल पर यथास्थिति यानी मौजूदा स्थिति बनाए रखने और याचिकाकर्ताओं को उनकी झुग्गियों से जबरन बाहर नहीं निकालने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) को प्रभावित निवासियों का उचित और व्यापक सर्वेक्षण करने तथा 2015 की नीति के अनुसार उनका पुनर्वास करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।
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पुनर्वास को लेकर क्या बोला हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने यह भी अनुरोध किया गया था कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) की ओर से प्रभावित निवासियों का उचित और सर्वे करके 2015 की नीति के तहत उनका पुनर्वास करने का निर्देश दिया जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि याचिकाकर्ताओं को पुनर्वास की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि यह उनके जैसे अतिक्रमणकारियों के लिए कोई पूर्ण संवैधानिक अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा, “पुनर्वास का अधिकार पूरी तरह से उस प्रचलित नीति से उत्पन्न होता है, जो उनपर लागू होती है। पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण एक अलग प्रक्रिया है, जो सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से भिन्न है।”
फैसले में कहा गया, “अतिक्रमणकारी लागू नीति के तहत अपने पुनर्वास दावों के समाधान तक सार्वजनिक भूमि पर कब्जा बनाए रखने का अधिकार नहीं जता सकते, क्योंकि इससे सार्वजनिक परियोजनाओं में अनावश्यक बाधा उत्पन्न होगी।” अदालत ने हालांकि, उनमें से कुछ के पुनर्वास की अनुमति दे दी और डीडीए को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के फ्लैट आवंटित करने का निर्देश दिया। भूमिहीन कैंप में लगभग तीन दशक पुरानी झुग्गी बस्ती है, जहां उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों से आए प्रवासी रहते हैं।
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