नई दिल्ली . दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को दिल्ली स्कूली शिक्षा संशोधन (अधिनियम) विधेयक 2015 को मंजूरी देने या वापस लौटाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया. इसमें नर्सरी में दाखिले के लिए बच्चों की स्क्रीनिंग प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है.
उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालतें विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं. उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी समय सीमा के भीतर किसी विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने को लेकर राज्यपाल को रिट जारी करना उसके लिए उचित नहीं है. अदालत ने कहा कि कानून चाहे कितना भी वांछनीय क्यों न हो, यह हमेशा राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वह किसी विधेयक को मंजूरी दे या नहीं.
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस विवेक का प्रयोग करते समय राज्यपाल अपने मंत्रियों के कार्य और सलाह को लेकर बाध्य महसूस नहीं कर सकता और अदालतें भी इस प्रक्रिया को नियंत्रित या इनमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं. अदालत ने कहा कि अगर किसी विधेयक को मंजूरी नहीं मिलती है, तो संविधान का अनुच्छेद 200 कहता है कि राज्यपाल को जितना जल्दी संभव हो सके, इस संदेश के साथ विधेयक सदन/सदनों को वापस लौटा देना चाहिए कि विधेयक या किसी विशिष्ट प्रावधान पर विचार किया जाए.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने पारित अपने फैसले में कहा कि इस अदालत का मानना है कि भले ही विधेयक सदन द्वारा पारित कर दिया गया हो, लेकिन राज्यपाल के पास हमेशा इसे मंजूरी देने या न देने का अधिकार होता है. यह अदालत राज्यपाल को कोई कार्य करने का निर्देश देने के लिए रिट जारी नहीं कर सकती.