दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court ) ने एक दुष्कर्म मामले में फैसला सुनाया है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि आरोपी का जबरन डीएनए सैंपल(DNA Sample) लिया जाए ताकि दुष्कर्म से जन्मे बच्चे के पिता की पहचान की जा सके. इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी को निर्देशित किया है कि यदि आरोपी सैंपल देने में सहयोग नहीं करता है, तो पुलिस को उचित बल का प्रयोग करके सैंपल लेने का अधिकार होगा.
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने सत्र अदालत के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें आरोपी की सहमति के बिना उसका डीएनए सैंपल लेने पर रोक लगाई गई थी. बेंच ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि इस मामले के अलावा सभी समान मामलों में पुलिस को यह अधिकार होगा कि वह अपने मामले को मजबूत करने और अजन्मे या जन्मे बच्चे के पिता की पहचान के लिए बल प्रयोग कर सके.
बेंच ने इस मामले में कहा कि एक पूर्व कांग्रेस नेता, जिनका अब निधन हो चुका है, के डीएनए सैंपल के आधार पर उनके बेटे को न्याय मिला था, जो कि दशकों बाद संभव हुआ. इसलिए, बलात्कार के कारण गर्भवती हुई महिला के बच्चे के पिता की पहचान के लिए पुलिस को आरोपी का जबरन डीएनए सैंपल लेने का अधिकार है. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी की इच्छा के कारण जन्मे बच्चे को नाजायज घोषित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
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पति से सात साल पहले तलाक हो चुका है: सुनवाई के दौरान पुलिस ने बताया कि महिला का अपने पति से 2018 में तलाक हो गया था. इस पर बेंच ने कहा कि भले ही महिला ने अन्य व्यक्तियों पर दुष्कर्म का आरोप लगाया हो, लेकिन यह मामला एक बच्चे के पिता की पहचान से संबंधित है, जिसे अदालत हल्के में नहीं ले सकती. बच्चे को नाजायज नहीं कहा जा सकता, और आरोपी को अपना डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल देना होगा. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार, महिला पिछले सात वर्षों से अपने पति से अलग रह रही है, इसलिए पति से बच्चे के होने की संभावना नहीं है.
बेंच ने आरोपी को यह सलाह दी कि यदि उसने कोई अपराध नहीं किया है, तो उसे डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि पितृत्व परीक्षण का नतीजा उसके लिए राहत का कारण बन सकता है. इस मामले में, वर्ष 2021 में साकेत थाने में दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था, जिसके बाद महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया.
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15 दिन में आरोपी को सैम्पल देने का दिया मौका
हाईकोर्ट की बेंच ने सत्र अदालत के आदेश को पलटते हुए आरोपी को निर्देश दिया है कि वह 15 दिनों के भीतर जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर अपना डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल प्रदान करे. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आरोपी स्वेच्छा से सैंपल देने के लिए तैयार नहीं होता है, तो जांच अधिकारी उचित बल का प्रयोग करते हुए उसका रक्त सैंपल लेकर प्रयोगशाला में भेज सकता है, ताकि बच्चे के असली पिता की पहचान की जा सके और आरोपों की सत्यता के लिए ठोस साक्ष्य एकत्रित किया जा सके.
आरोपी ने सैंपल देने से कर दिया था इनकार
पुलिस अधिकारियों ने दुष्कर्म के मामले में आरोपी को मेडिकल जांच के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भेजा, लेकिन आरोपी ने जांच और डीएनए सैंपल देने से मना कर दिया. इसके अलावा, आरोपी ने महिला पर आरोप लगाया कि वह पहले भी कई लोगों पर दुष्कर्म का आरोप लगा चुकी है, जिससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि बच्चा किसी और का भी हो सकता है.
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