दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि जीवन के अधिकार के दायरे में धार्मिक और व्यक्तिगत कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार भी शामिल है। कोर्ट ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के एक सदस्य को पैरोल पर जाने की अनुमति दी। आरोपी शख्स पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और वित्तपोषण के आरोप में गिरफ्तारी हुई थी। फैसले के अनुसार, आरोपी को अपनी दिवंगत सास के लिए आयोजित फातिहा समारोह (धार्मिक प्रार्थना) में शामिल होने के लिए पैरोल पर छोड़ा गया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की भावनाओं और धार्मिक कर्तव्यों का सम्मान करना न्याय के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है।
दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने हाल ही में आरोपी शाहिद नासिर की याचिका मंजूर की। न्यायमूर्ति डुडेजा ने कहा कि यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक कैदी, चाहे वह दोषी ठहराया गया हो या विचाराधीन हो, संविधान द्वारा प्रदत्त अपने मूल अधिकारों (जैसे सम्मान और सुरक्षा) का लाभ ले सकता है। न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया कि ये अधिकार जेल में वैध हिरासत की सीमाओं के भीतर ही लागू होते हैं।
सेशंस कोर्ट से खारिज हुई थी याचिका
दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी शाहिद नासिर को अपनी दिवंगत सास के फातिहा समारोह में शामिल होने के लिए पैरोल देने का आदेश दिया। नासिर ने तीन दिनों के लिए हिरासत पैरोल की मांग की थी। इसके साथ ही उसने अपने परिवार के साथ एक सप्ताह बिताने के लिए जमानत पर रिहाई की भी मांग की थी। सेशंस कोर्ट ने जमानत की मांग खारिज कर दी, लेकिन पैरोल की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने विचार किया। नासिर ने हाई कोर्ट में कहा कि उनकी सास की मृत्यु लगभग दो साल पहले हुई थी और इस प्रकार की अनुमति के लिए कोई पूर्व अनुरोध नहीं किया गया था। इसके बावजूद, फातिहा समारोह में उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य थी।
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