
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि होटल और रेस्टोरेंट अपने खाने के बिल में सर्विस चार्ज को अनिवार्य नहीं कर सकते. ग्राहक अपनी इच्छा से इसे दे सकते हैं, लेकिन इसे अनिवार्य बनाना उचित नहीं है. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने यह फैसला केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनाया. इसके साथ ही कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है.
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कोर्ट ने सीसीपीए के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाले रेस्टोरेंट एसोसिएशन पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जैसा कि बार एंड बेंच की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है. सीसीपीए ने उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और गलत व्यापारिक प्रथाओं को रोकने के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए थे. इन दिशा-निर्देशों में यह स्पष्ट किया गया था
1. होटल या रेस्टोरेंट अपने आप या स्वचालित रूप से खाने के बिल में सर्विस चार्ज नहीं जोड़ सकते हैं.
2. किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर भी सर्विस चार्ज नहीं लिया जा सकता है.
3. कोई भी रेस्टोरेंट या होटल ग्राहकों को सर्विस चार्ज देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता; उन्हें स्पष्ट रूप से बताना होगा कि यह वैकल्पिक है और ग्राहक चाहें तो इसे दे सकते हैं.
4. सर्विस चार्ज के संग्रह के आधार पर ग्राहकों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा, चाहे वह एंट्री हो या सेवाओं का प्रावधान.
5. सर्विस चार्ज को खाने के बिल में जोड़कर और कुल राशि पर जीएसटी लगाकर इकट्ठा नहीं किया जाएगा.
एनआरएआई की याचिका में उल्लेख किया गया है कि रेस्टोरेंट्स को सर्विस चार्ज लगाने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है, और वर्तमान कानूनों में ऐसा कोई बदलाव नहीं किया गया है जो सर्विस चार्ज को अवैध मानता हो.
याचिका में उल्लेख किया गया है कि दिशानिर्देशों के सही प्रमाणीकरण के बिना, इन्हें सरकार के आदेश के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती. याचिकाकर्ता-एसोसिएशन ने यह भी कहा कि ये दिशा-निर्देश मनमाने और अस्थिर हैं, इसलिए इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.
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