दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि बाल विवाह और यौन अपराध के मामलों को केवल पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द करना कानून के खिलाफ होगा। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि ऐसा करने से गैरकानूनी आचरण को न्यायिक स्वीकृति मिल जाएगी, जिसे संसद रोकना चाहती है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समझौता या शादी यौन अपराध से मुक्ति का रास्ता नहीं हो सकता।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर अहम फैसला सुनाया, जिसमें दो आरोपियों ने बाल विवाह और नाबालिग पर यौन हमले के आरोपों में उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी। आरोपियों का तर्क था कि उन्होंने अभियोजन पक्ष के साथ समझौता कर लिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता की उम्र 17 वर्ष थी। उसके पिता ने FIR दर्ज कराई थी। आरोप था कि दिसंबर 2023 में उनकी बेटी अपने पैतृक घर से लापता हो गई थी और दो व्यक्तियों द्वारा अपहरण किए जाने का संदेह था। पुलिस ने बाद में पीड़िता को आरोपी नंबर 2 के पास से बरामद किया, जहां मेडिकल जांच में यौन शोषण और गर्भावस्था की पुष्टि हुई। हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि समझौता या शादी यौन अपराध से मुक्ति का आधार नहीं बन सकती। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि इस तरह का समझौता अपराध को न्यायिक स्वीकृति देने जैसा होगा, जो कानून के खिलाफ है।

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पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, पीड़िता ने बताया कि वह पिछले पांच सालों से आरोपी नंबर 2 के साथ संबंध में थी। 2022 में उसके दादा ने उसकी शादी याचिकाकर्ता संख्या 1 से करवा दी, जिसके बाद वह गर्भवती हो गई। मजिस्ट्रेट के सामने बयान में पीड़िता ने कहा कि शादी के बाद वह अपने ससुराल में रह रही थी, लेकिन दिसंबर 2023 में उसने अपनी मर्जी से याचिकाकर्ता संख्या 2 के साथ राजस्थान चली गई और वहां किराए के मकान में रहने लगी। जनवरी 2024 में पुलिस ने उसे वापस ले लिया।

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि समझौता या शादी यौन अपराध से मुक्ति का आधार नहीं बन सकती। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि ऐसा करने से अपराध को न्यायिक स्वीकृति मिल जाएगी, जो कानून के खिलाफ है।

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कोर्ट में पीड़िता ने स्पष्ट किया कि उसे दोनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने में कोई ऐतराज नहीं है। उसने बताया कि वह याचिकाकर्ता संख्या 1 की पत्नी है और उनके साथ खुशी-खुशी रह रही है। इसके अलावा, पीड़िता वर्तमान में अपने दूसरे बच्चे के साथ गर्भवती हैं और अपने पति के साथ अपने रिश्ते को जारी रखना चाहती हैं।

हालांकि, जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि समझौता या शादी यौन अपराध से मुक्ति का आधार नहीं बन सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के अनुसार बाल विवाह और यौन अपराध के मामलों में अपराधियों को केवल समझौते के आधार पर बचाया नहीं जा सकता।

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कोर्ट का FIR  रद्द करने से इनकार

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता के वर्तमान बयान और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भी, यह देखना जरूरी है कि बाद की घटनाएं कथित अपराधों की गंभीरता या प्रकृति को प्रभावित नहीं कर सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो एक्ट और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बच्चों को मिली वैधानिक सुरक्षा को कमजोर नहीं किया जा सकता।

जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने यह भी कहा कि समझौता या शादी किसी भी तरह से यौन अपराध या बाल विवाह से मुक्ति का आधार नहीं बन सकती। अदालत ने यह फैसला यह सुनिश्चित करने के लिए लिया कि ऐसे गंभीर अपराधों में कानून और न्यायिक प्रक्रिया की शक्ति बनाए रखी जाए।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बाद में शादी या सहवास करने से यौन अपराध के आरोप मिट नहीं जाते। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने स्पष्ट किया कि समझौता या शादी किसी भी यौन अपराध से मुक्ति का रास्ता नहीं हो सकता। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता अपने पति के साथ यौन संबंध के समय नाबालिग थी और जब उसे बरामद किया गया तो वह गर्भवती पाई गई। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि इस मामले में पॉक्सो एक्ट की सख्तियां पूरी तरह लागू होती हैं और यह आरोप अधिनियम के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध में आता है।

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