दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वाति मालीवाल से जुड़े मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले एक वकील पर नाराजगी जाहिर करते हुए जमकर फटकार लगाई. हाईकोर्ट ने कहा कि यह याचिका केवल पब्लिसिटी पाने के लिए थी और और इसमें “राजनीतिक रंग” दिखाई दे रहा था.

याचिकाकर्ता वकील ने अपनी याचिका में स्वाति मालीवाल का नाम मीडिया को प्रकाशित करने से रोकने की मांग की थी. बता दें कि, बिभव कुमार पर स्वाति मालीवाल को सीएम आवास के अंदर पीटने का आरोप है.

हाईकोर्ट ने कहा कि जब “पीड़िता” (स्वाति मालीवाल) खुद सामने आकर कथित घटना के बारे में बात कर रही है तो याचिकाकर्ता को क्या समस्या है, जो एक तीसरा पक्ष है.

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पी.एस. अरोड़ा की बेंच ने कहा, “जब पीड़िता इस बारे में बात करना चाहती है तो आप कौन होते हैं कुछ कहने वाले. पीड़िता शिकायत नहीं कर रही है, बल्कि आप शिकायत कर रहे हैं. इसमें तीसरे पक्ष की क्या भूमिका है? पीड़िता इस बारे में खुलकर सामने आ रही है. यह बहुत स्पष्ट है कि आपकी दृष्टि रंगीन और धुंधली है. आप पीड़िता को शर्मिंदा करने की बात नहीं कर रहे हैं.”

बेंच ने कहा, “यदि पीड़ित टेलीविजन चैनलों पर जाकर बात कर रही है, तो आप कौन होते हैं जनहित याचिका दायर करने वाले” और कहा कि “इस जनहित याचिका के पीछे एक राजनीतिक रंग है”. अदालत वकील संसार पाल सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मालीवाल पिटाई मामले में मीडिया द्वारा पीड़िता की पहचान उजागर करने पर रोक लगाने तथा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है, जिन्होंने जानबूझकर एफआईआर के कंटेंट के साथ पीड़िता की पहचान उजागर की है.

वकील को बेंच ने चेतावनी दी कि उनके खिलाफ बार काउंसिल में शिकायत दर्ज कराई जाएगी और कहा कि याचिका बिना उचित शोध के दायर की गई है. बेंच ने कहा, “आप यह सब पब्लिसिटी के लिए कर रहे हैं. दिल्ली बार काउंसिल में शिकायत की जानी चाहिए. आप जो कर रहे हैं, वो ठीक नहीं है.”

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील योगेश स्वरूप ने याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता मांगी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा, “कुछ बहस के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की इच्छा जताई. याचिका को वापस लिया गया मानते हुए खारिज किया जाता है.”

जनहित याचिका में उठाए थे ये सवाल

वकील योगेश स्वरूप ने कहा कि आईपीसी की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) सहित संवेदनशील मामलों में पीड़िता का नाम प्रदर्शित या प्रसारित नहीं किया जा सकता है और वर्तमान मामले में समाचार चैनलों और समाचार रिपोर्टों में पीड़िता के नाम के साथ FIR दिखाई गई है, जो दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले और दिशानिर्देशों के खिलाफ है. याचिका में कुछ मीडिया हाउसों को FIR की सामग्री के साथ पीड़िता का नाम आगे प्रसारित या पोस्ट न करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना भी एक यौन अपराध है और ऐसे मामले में पीड़िता के नाम के साथ-साथ मामले के पूरे तथ्यों को उजागर, प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया जाना चाहिए.