दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण से बचने के लिए पर्सनल लोन(Personal Loan) या EMI जैसी स्वैच्छिक वित्तीय प्रतिबद्धताओं का सहारा नहीं ले सकता. जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेनू भटनागर की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत उधारी या दीर्घकालिक वित्तीय दायित्वों का उपयोग पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के लिए नहीं किया जा सकता.

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कोर्ट ने यह टिप्पणी 26 मई को एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसने निचली अदालत के 19 अप्रैल, 2025 के आदेश को चुनौती दी थी. इस आदेश में व्यक्ति को अंतरिम भरण-पोषण के तहत ₹15,000 (पत्नी के लिए ₹8,000 और नाबालिग बेटे के लिए ₹7,000) का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि निचली अदालत ने उसके वित्तीय दायित्वों, जैसे मासिक ईएमआई, पत्नी और बच्चे के मेडिक्लेम प्रीमियम, और उसकी नौकरी की स्थिति पर विचार किए बिना ही यह आदेश पारित किया.

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति जानबूझकर व्यक्तिगत ऋण या दीर्घकालिक वित्तीय दायित्वों के माध्यम से अपनी खर्च करने योग्य आय को कम करके अपने जीवनसाथी और बच्चों की भरण-पोषण की कानूनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता.

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आदेश में स्पष्ट किया गया है कि घर का किराया, बिजली का बिल, व्यक्तिगत ऋण की किस्तें, जीवन बीमा का प्रीमियम, या स्वेच्छा से लिए गए कर्जों (जैसे ईएमआई) को इस संदर्भ में वैध कटौती नहीं माना जा सकता. अदालत ने यह भी बताया कि ये सभी वित्तीय जिम्मेदारियां कमाने वाले जीवनसाथी द्वारा स्वेच्छा से उठाई गई हैं और ये आश्रित जीवनसाथी या बच्चों के भरण-पोषण की प्राथमिक जिम्मेदारी से अधिक नहीं हो सकतीं.

यह मामला एक ऐसे दंपति का है जिनकी शादी फरवरी 2009 में हुई और उनके एक संतान भी है. हालांकि, मार्च 2020 से वे अलग रहने लगे. इसके बाद, पत्नी ने न्यायालय का सहारा लेते हुए हर महीने ₹30,000 का अंतरिम भरण-पोषण मांगा. शहर की अदालत ने पत्नी को ₹15,000 का गुजारा भत्ता प्रदान करते हुए कहा कि एक व्यक्ति, चाहे वह किसी अनुबंध पर काम कर रहा हो, अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों जैसे लोन या ईएमआई का हवाला देकर कानूनी दायित्वों से नहीं बच सकता. पति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया कि निचली अदालत ने उसकी आय का गलत आकलन किया है और यह भी कहा कि ईएमआई और लोन चुकाने के कारण उसकी ‘हाथ में आने वाली तनख्वाह’ काफी कम हो जाती है, जिस पर निचली अदालत ने ध्यान नहीं दिया.