दिल्ली हाईकोर्ट ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा गोविंदानंद सरस्वती के खिलाफ दायर दीवानी मानहानि मुकदमे में अंतरिम निषेधाज्ञा अर्जी पर नोटिस जारी किया. अदालत ने इस दौरान कहा कि संतों को मानहानि से परेशान नहीं होना चाहिए और उनका मानना था कि सम्मान और प्रतिष्ठा कानूनी संघर्ष के बजाय उनके कर्मों से प्राप्त होती है.
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सोमवार को गोविंदानंद सरस्वती के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें गोविंदानंद पर आरोप लगाया गया कि वे अविमुक्तेश्वरानंद को “नकली बाबा” बताते हैं और कांग्रेस पार्टी से राजनीतिक समर्थन प्राप्त होने का आरोप लगाते हैं.
अदालत ने टिप्पणी की कि एक संत की सच्ची प्रतिष्ठा ऐसे विवादों से प्रभावित नहीं होती है. इसका तात्पर्य यह है कि मानहानि के लिए कानूनी उपायों की खोज के बजाय, संत की वास्तविकता और आचरण पर ध्यान देना चाहिए.
सुनवाई के अंत में, न्यायालय ने अंतरिम निषेधाज्ञा अर्जी पर नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को निर्धारित की. अदालत ने इस चरण में कोई अस्थायी आदेश नहीं दिया, जिसका मतलब है कि जब तक दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक कोई अस्थायी निषेधाज्ञा नहीं दी जाएगी.
अविमुक्तेश्वरानंद के वकील ने तर्क किया कि गोविंदानंद ने उन्हें “फर्जी बाबा”, “ढोंगी बाबा”, और “चोर बाबा” जैसे अपमानजनक नामों से पुकारा. वकील ने यह भी दावा किया कि गोविंदानंद ने अविमुक्तेश्वरानंद पर अपहरण, हिस्ट्रीशीटर होने, 7000 करोड़ रुपये का सोना चुराने और साध्वियों के साथ अवैध संबंध रखने जैसे गंभीर अपराधों के आरोप लगाए. अगर ये आरोप झूठे और हानिकारक सिद्ध होते हैं, तो वे मानहानि के दावे को समर्थन प्रदान कर सकते हैं.
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अविमुक्तेश्वरानंद के वकील ने स्पष्ट किया कि गोविंदानंद ने आरोप लगाया कि अविमुक्तेश्वरानंद के खिलाफ आपराधिक मामले थे, जबकि अखिलेश यादव सरकार के दौरान दायर एकमात्र मामला बाद में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा वापस ले लिया गया था.
स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने हाल ही में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद को “नकली बाबा” कहा और उन पर हत्या और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों में शामिल होने का आरोप लगाया. उन्होंने मीडिया की आलोचना की जो अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य मानते हैं और कहा कि वे साधु-संत या संन्यासी की उपाधियों के योग्य नहीं हैं.
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