दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High-court) ने राजधानी की नागरिक सुविधाओं की बदहाल व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि पूरे शहर के लिए एक ही एजेंसी बनाई जानी चाहिए, जो सड़क निर्माण, सीवरेज प्रबंधन, कूड़ा निस्तारण और नालों की सफाई जैसे सभी कामों को संभाले. अदालत ने कहा कि जैसे लुटियंस दिल्ली में एनडीएमसी सभी जिम्मेदारियां उठाती है, वैसे ही पूरी दिल्ली में भी एक समेकित एजेंसी होनी चाहिए.

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जस्टिस प्रभा एम. सिंह और जस्टिस मनीत पी.एस. अरोड़ा की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि कई एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी से प्रबंधन में गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं. अदालत ने दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी को निर्देश दिया कि इस आदेश को मुख्यमंत्री या संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखा जाए और उनकी राय समेत स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जाए.

दिल्ली सरकार का पक्ष और कोर्ट की प्रतिक्रिया

दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने दावा किया कि इंटीग्रेटेड ड्रेन मैनेजमेंट सेल (IDMC) राजधानी की सभी नालियों की देखरेख करता है. इस पर कोर्ट ने आपत्ति जताई और कहा कि यह जानकारी सही नहीं लग रही, क्योंकि आईडीएमसी वास्तव में सभी नालों – चाहे वे सीवेज हों या स्टॉर्म वॉटर – का प्रबंधन नहीं करता. अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके पिछले आदेश का मकसद भी यही था कि एनडीएमसी जैसी एकीकृत एजेंसी बने, जो सड़क, सीवरेज, कचरा और नालों की पूरी जिम्मेदारी उठाए.

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पहले भी जताई थी चिंता

दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले भी कई बार एजेंसियों के बीच भ्रम और जिम्मेदारियों के गलत बंटवारे पर नाराज़गी जताई थी. अदालत ने कहा था कि राजधानी में स्टॉर्म वॉटर ड्रेन का जिम्मा नगर निगम के पास है, जबकि सीवेज लाइन दिल्ली जल बोर्ड के अधीन है, जिससे आम जनता परेशान होती है.

किस मामले में सुनवाई?

यह सुनवाई दिल्ली में जलभराव, बारिश के पानी के संरक्षण, मानसून और ट्रैफिक जाम से जुड़ी याचिका पर हो रही है. अदालत का मानना है कि अगर सभी नागरिक सेवाओं को एक ही एजेंसी के अधीन कर दिया जाए तो जवाबदेही तय होगी और लोगों को राहत मिलेगी. फिलहाल, इस मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर को होगी.